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स्वतंत्रता दिवस…आज़ादी का दिवस!!!

स्वतंत्रता दिवस…आज़ादी का दिवस!!! |_2.1


स्वतंत्रता दिवस आ गया….मैं पूछता हूँ आखिर यह दिवस है क्या!!!!
मैंने इस दिवस के बारे में वयस्कों से पूछा तो बोले छुट्टी का दिन है…..थोड़ा आराम करने का दिन है!!! बच्चों से पूछा तो बोले पतंग उड़ाने का दिन है…खेलने और पकोड़े खाने का दिन है…क्या वाकई ऐसा है?????
बस इस दिन के महत्व की तलाश में, मैं सड़कों पर निकल गया और अपने भारत की जनता और लोकतंत्र जिसका आज अलग ही अर्थ निकल गया है-उससे रू-ब-रू हुआ. बहुत घुमने के बाद मुझे एक वृद्ध महिला मिली जिसकी हालत कुछ ठीक नहीं थी ऐसा लगा जैसे वो ठगी गयी हो…मुख पर एक उम्मीद, आँखों में एक तलाश, और होंठो पर सुखापन, जिसे शायद एकजुटता की प्यास हो…उधड़े-बुने से कपड़े…. कुल मिलाकर कहा जाए तो उसकी हालत बदहाल थी परन्तु उसके व्यक्तित्व में एक विशेषता भी थी, वह था… कभी हार न मानने वाला जज़्बा- जो उसे आगे बढ़ा रहा था और यही देख मैं जिज्ञासु बनकर उसके पास जा पहुंचा और पूछा…. आपकी ऐसी हालत कैसे हो गयी जबकि आपको देखकर आप एक उच्च कोटि की महिला मालूम पड़ती हैं..यह सुनकर वह शांत हो गयी और थोड़ा रुककर मुझे जवाब दिया….
हाँ मैं कभी सोने से लदी महिला थी जिसे सब लोग सोने की चिड़ियाँ भी कहा करते थे…. सब लोग मुझे बहुत सम्मान और स्नेह देते थे लेकिन एक बार कुछ लोगों ने जबरन मुझ पर कब्ज़ा करना चाहा और लगभग 200 वर्षों तक मुझे अपनी कैद में भी रखा जहां मुझपर ऐसे-ऐसे अत्याचार किए जो मैं अपनी जुबान से बयां भी नहीं कर सकती, लेकिन मैं अकेली नहीं थी मेरा परिवार मेरे साथ था जिसमें मेरे पराक्रमी पुत्र और पुत्रियाँ मेरे साथ थीं….जिन्होंने मुझे उस कैद से आज़ाद कराने के लिए जी-तोड़ मेहनत की और कुछ मेरे लाल तो मेरे लिए सूली तक चढ़ गए….मैं आज भी उनके वियोग में हूँ….मुझे उनका बलिदान आज भी याद है…. उनके मुख का गौरव याद है….भय क्या होता है उन्हें नहीं पता था उन्हें केवल अपनी मां सम्मान सहित वापिस चाहिए थी…वह मेरी आज़ादी का सपना लिए गहरी नींद सो गए…अब मैं थोड़ा चुप-सा हो गया… और मैंने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उनसे उनका नाम पूछा…
उन्होंने बहुत-ही हारे हुए स्वर में कहा मैं हूँ भारत….मां….. मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ गयी और मैंने सत्य को अपने सामने पाया…और उनके साथ उनकी ही धारा में बहने लगा…और कहा क्या मैं आपके लिए कुछ कर सकता हूँ…तब पहली बार मैंने उनके मुख पर एक चमक देखी जैसे उनका खोया हुआ उन्हें फिर से मिल गया हो… और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और कहा तुम एक जिम्मेदार नागरिक हो और तुम्हें इस धारा में नहीं बहना है, इसमें एक मोड़ लाना होगा और उसी रास्ते पर चलना होगा जो मेरे शहीद सिपाहियों ने बनाया था. और यह कहकर वह आगे चलने लगी मैं वहीँ सहमा सा बैठा रहा और फिर समर्थन के स्वर में उनसे पूछा कि अब आप कहां जा रही हैं आप मेरे साथ रहें मैं आपकी देखभाल करना चाहता हूँ…इस पर वह मुस्कुराकर आगे बढ़ गयीं जैसे वह अपने अस्तित्व की तलाश में हों….
तो विद्यार्थियों यह कहानी स्वरूप बताया गया वर्तमान भारत है. आज हमें आज़ादी तो मिल गयी पर इसका वास्तविक अर्थ और महत्व किया है यह हमें नहीं पता…आज सारी सुविधाएं मौजूद हैं लेकिन इनका उपयोग करना हमें नहीं आ रहा है, हमें आता है तो केवल नियम तोड़ना…किसी के सम्मान को मिट्टी में मिलाना…तिरस्कार और बदले की भावना रखना….और ऐसे अनगिनत कृत्य जो हम दैनिक रूप से करते चले जा रहे हैं. 
आज़ादी का महत्व: 
भारत का स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन हम राजनीतिक तौर पर आजाद हुए थे. भारत का असली गौरव, इसकी सीमाओं में नहीं, बल्कि इसकी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सार्वभौमिकता में है.
हम आज आज़ादी से कहीं भी आ-जा सकते हैं, अपनी भावनाओं को सबके सामने रख सकते हैं…इन सबका अधिकार हमें हमारे स्वतंत्रता सैनानियों ने दिया है…मैं इतनी आशा तो आपसे कर ही सकता हूँ कि मुझे उनके नाम आपको गिनाने न पढ़ें…तो आइए उनके सम्मान में हम आज उनका सजदा करें और गर्व से अपने भारतीय झंडे को सलाम कर बुलंद आवाज़ में अपना राष्ट्रीय गान गाएं….   
आज़ादी के उपलक्ष्य में हम जवाहरलाल नेहरु जी के सर्वोत्तम भाषणों में से एक को फिर से दोहराना चाहेंगे जो उन्होंने 14 अगस्त को दिल्ली के संविधान हॉल में दिया था:
कई सालों पहले, हमने नियति से एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।… आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके? कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।
— ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण के अंश, जवाहरलाल नेहरू[22]
धन्यवाद जयहिंद….

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