ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता अक्कई पद्मशाली को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित उस पैनल में शामिल किया गया है जो ट्रांसजेंडर अधिकारों की रक्षा के लिए समान अवसर नीति तैयार करेगा। वह ऐसी समिति में शामिल होने वाली कर्नाटक की पहली ट्रांसजेंडर सदस्य बनी हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व और समावेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
नियुक्ति का महत्व
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राष्ट्रीय स्तर पर अवसर: यह नियुक्ति ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़ी नीतियों को आकार देने में प्रत्यक्ष योगदान का अवसर देती है।
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प्रतिनिधित्व में मील का पत्थर: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति में पहली बार ट्रांसजेंडर समुदाय का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ है।
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समानता की दिशा में पहल: अक्कई पद्मशाली ने कहा है कि वह डॉ. भीमराव अंबेडकर के समानता और सामाजिक न्याय के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करेंगी।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
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NALSA बनाम भारत संघ (2014): सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को “तीसरा लिंग” के रूप में मान्यता दी और आत्म-पहचान के अधिकार को संवैधानिक दर्जा दिया।
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2018 का फैसला: समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाया गया, जिससे लैंगिक और यौन अल्पसंख्यकों को वैधानिक समर्थन मिला।
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चुनौती: इन ऐतिहासिक फैसलों के जमीनी क्रियान्वयन में अब भी कई बाधाएँ बनी हुई हैं।
लक्ष्य और योजनाएँ
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समुदाय आधारित परामर्श, बैठकें और चर्चाएँ आयोजित करना।
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न्यायालय के निर्णयों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
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आंदोलन का दायरा बढ़ाना ताकि ट्रांसमेन और इंटरसेक्स समुदायों को भी प्रतिनिधित्व मिले।
समिति की संरचना
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अध्यक्ष: न्यायमूर्ति आशा मेनन (सेवानिवृत्त), दिल्ली उच्च न्यायालय
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अन्य सदस्य:
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ग्रेस बानू – दलित एवं ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता
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वैजयंती वसंथा मोगली – तेलंगाना की ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता
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सौरव मंडल – एसोसिएट प्रोफेसर, जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी
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नित्या राजशेखर – सीनियर एसोसिएट, सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी, बेंगलुरु
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संजय शर्मा – सेवानिवृत्त सीईओ, एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ इन इंडिया
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