सऊदी अरब-पाकिस्तान रक्षा समझौता क्या है?

क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य में एक बड़े बदलाव को दर्शाते हुए, सऊदी अरब और पाकिस्तान ने 17 सितंबर 2025 को परस्पर रक्षा समझौते (Mutual Defence Agreement) पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “किसी भी एक देश पर किया गया आक्रमण, दोनों देशों पर आक्रमण माना जाएगा।” यह दोनों देशों के बीच गहरी होती सामरिक साझेदारी का संकेत है। पश्चिम एशिया में बढ़ती अस्थिरता, विशेषकर इसराइल और कतर से जुड़े तनावों की पृष्ठभूमि में हुआ यह समझौता, सऊदी–पाकिस्तान संबंधों का एक अहम मोड़ माना जा रहा है। भारत के लिए यह समझौता महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक प्रश्न खड़ा करता है, खासकर क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और कूटनीतिक रणनीति के संदर्भ में।

रक्षा समझौते में क्या है

सऊदी अरब–पाकिस्तान रक्षा समझौता दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही सुरक्षा सहयोग व्यवस्था को औपचारिक रूप देता है और इसे दायरे व प्रतिबद्धता के लिहाज़ से काफी हद तक विस्तृत करता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • परस्पर रक्षा धारा: किसी एक देश पर किया गया सैन्य आक्रमण, दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।

  • संयुक्त निवारक उपाय: खुफिया साझाकरण, रक्षा लॉजिस्टिक्स और सैन्य तैयारी में बेहतर समन्वय।

  • विस्तारित सैन्य सहयोग की संभावना: भविष्य में संयुक्त सैन्य अभ्यास और सेनाओं की आपसी कार्यक्षमता (interoperability)।

  • दीर्घकालिक सामरिक प्रतिबद्धता: लेन-देन आधारित संबंधों से परे एक साझा रक्षा दृष्टि का प्रतिबिंब।

यह स्तर का गठबंधन क्षेत्र की परंपरागत लेन-देन आधारित कूटनीति से आगे बढ़कर संधि-स्तरीय सामरिक गहराई की ओर इशारा करता है।

अभी यह समझौता क्यों हुआ

यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब खाड़ी देश अपनी रक्षा रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं, खासकर पश्चिमी (विशेषकर अमेरिकी) सुरक्षा गारंटी की दीर्घकालिक विश्वसनीयता को लेकर संदेह बढ़ने के बीच।

हाल की प्रमुख वजहें:

  • इसराइली हवाई हमला (दोहा): कतर में हमास ठिकानों पर इसराइल की कार्रवाई से खाड़ी देश चौंके और क्षेत्रीय रक्षा स्वायत्तता पर चर्चा तेज़ हुई।

  • अमेरिकी प्रतिबद्धता पर अनिश्चितता: सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देश अब अपने सामरिक साझेदारों में विविधता लाना चाहते हैं।

  • पाकिस्तान की परमाणु क्षमता: इसे सऊदी अरब के लिए एक रणनीतिक आश्वासन और निवारक शक्ति के रूप में देखा जाता है।

  • ऐतिहासिक रक्षा संबंध: पहले से मौजूद अनौपचारिक सैन्य सहयोग को अब औपचारिक रूप दिया गया है, जिसमें पाकिस्तानी सैन्य बलों की सऊदी में तैनाती भी शामिल है।

सऊदी अरब के लिए इसका महत्व

यह समझौता सऊदी अरब के लिए एक रणनीतिक सुरक्षा कवच (strategic hedge) है और क्षेत्रीय निवारक क्षमता बनाने की दिशा में कदम है। इससे संकेत मिलता है:

  • पश्चिमी शक्तियों पर सुरक्षा के लिए अधिक निर्भरता से दूरी।

  • एक परमाणु-संपन्न मुस्लिम देश के साथ संबंधों की मज़बूती।

  • क्षेत्र में बढ़ते ईरानी प्रभाव का संतुलन।

  • सऊदी अरब के क्षेत्रीय रक्षा केंद्र बनने की महत्वाकांक्षा को बल।

यह ऐसे समय हुआ है जब रियाद, ईरान और इसराइल दोनों के साथ कूटनीति में सक्रिय है, जिससे यह समझौता और अधिक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाता है।

भारत इसे कैसे देख सकता है

भारत ने संतुलित रुख अपनाते हुए कहा है कि वह सतर्क है और अपने हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। हालाँकि यह समझौता किसी तीसरे देश को लक्ष्य नहीं करता, भारत के पास इसे करीब से देखने के कई कारण हैं।

भारत की चिंताएँ:

  • पाकिस्तान की रणनीतिक मज़बूती: अब सऊदी अरब का संधि-स्तरीय समर्थन पाकिस्तान को मिला है।

  • खाड़ी में शक्ति संतुलन: भारत के व्यापार, ऊर्जा और प्रवासी भारतीयों से जुड़े हित यहाँ गहरे हैं।

  • आतंकवाद-रोधी रणनीति पर असर: सऊदी–पाक सहयोग व्यापक सुरक्षा समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।

  • भू-राजनीतिक संदेश: यह समझौता एक नए ध्रुव (axis) का संकेत देता है जो भारत की मध्य पूर्व में सामरिक भूमिका को चुनौती दे सकता है।

स्थिर तथ्य

  • मुख्य धारा: “किसी भी एक देश पर किया गया आक्रमण, दोनों देशों पर आक्रमण माना जाएगा।”

  • शामिल देश: सऊदी अरब और पाकिस्तान

  • समझौते का प्रकार: परस्पर रक्षा समझौता (Mutual Defence Agreement)

  • प्रभावित क्षेत्र: पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया

इन 7 टियर II शहरों में रहते हैं सबसे ज्यादा करोड़पति

मर्सिडीज़-बेंज हुरुन इंडिया वेल्थ रिपोर्ट 2025 ने भारत की आर्थिक परिदृश्य में एक उल्लेखनीय रुझान उजागर किया है। जहाँ महानगर जैसे मुंबई, नई दिल्ली और बेंगलुरु अभी भी “मिलियनेयर मानचित्र” पर हावी हैं, वहीं टियर-2 शहरों में एक मूक क्रांति आकार ले रही है। रिपोर्ट में पाया गया है कि अब भारत के शीर्ष 10 मिलियनेयर घरानों वाले शहरों में से 7 टियर-2 शहर शामिल हैं। यह संपत्ति के लोकतंत्रीकरण और भारत के वित्तीय भूगोल में बड़े बदलाव का संकेत है।

हुरुन इंडिया वेल्थ रिपोर्ट 2025 : मुख्य बिंदु

  • भारत में अब 8.71 लाख मिलियनेयर घराने हैं, जिन्हें ₹8.5 करोड़ (लगभग 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर) या उससे अधिक निवल संपत्ति वाले घराने के रूप में परिभाषित किया गया है।

  • यह संख्या 2021 की तुलना में 90% की वृद्धि दर्शाती है।

  • भारत के कुल घरानों में मिलियनेयर घरानों की हिस्सेदारी लगभग 0.31% है।

  • शीर्ष 10 राज्य कुल मिलियनेयर घरानों के 79% से अधिक की मेजबानी करते हैं।

  • टियर-2 शहर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और अब शीर्ष 10 में सात स्थान हासिल कर चुके हैं।

वे सात टियर-2 शहर, जहाँ सबसे अधिक मिलियनेयर उभर रहे हैं

भारत के शीर्ष 10 मिलियनेयर घरानों वाले शहरों की सूची में पहली बार ये सात टियर-2 शहर शामिल हुए हैं:

  • अहमदाबाद

  • सूरत

  • जयपुर

  • वडोदरा

  • नागपुर

  • विशाखापट्टनम

  • लखनऊ

इन शहरों ने पारंपरिक टियर-1 शहरों को पीछे छोड़ दिया है या उनकी बराबरी पर पहुँच गए हैं। इनका शामिल होना आर्थिक विकेन्द्रीकरण और महानगरों से बाहर अवसरों के विस्तार का संकेत है।

टियर-2 शहरों में मिलियनेयर क्यों बढ़ रहे हैं?

  1. MSME और उद्यमिता का उभार

    • कई टियर-2 शहर विनिर्माण, वस्त्र, रत्न, रसायन और इंजीनियरिंग के केंद्र हैं।

    • उदाहरण: सूरत हीरा पॉलिशिंग का वैश्विक केंद्र है, जबकि अहमदाबाद और वडोदरा औद्योगिक क्लस्टरों के लिए प्रसिद्ध हैं।

  2. रियल एस्टेट का मूल्यवृद्धि

    • शहरी विस्तार, स्मार्ट सिटी परियोजनाएँ और बुनियादी ढाँचे के विकास ने संपत्ति मूल्यों को बढ़ाया है।

  3. वित्तीय बाज़ारों तक पहुँच

    • डिजिटल बैंकिंग और ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म ने छोटे शहरों के लोगों को म्यूचुअल फंड, शेयर बाज़ार और वैश्विक निवेश तक पहुँच प्रदान की है।

  4. बेहतर कनेक्टिविटी

    • हवाई अड्डे, राजमार्ग और डिजिटल अवसंरचना ने इन शहरों को राष्ट्रीय और वैश्विक बाज़ारों से जोड़ा है।

  5. विविध निवेश संस्कृति

    • वित्तीय साक्षरता और इंटरनेट पहुँच के कारण लोग सोना और ज़मीन से आगे बढ़कर स्टार्टअप्स, स्टॉक मार्केट और वैश्विक पोर्टफोलियो में निवेश कर रहे हैं।

याद रखने योग्य तथ्य

तथ्य विवरण
रिपोर्ट का नाम मर्सिडीज़-बेंज हुरुन इंडिया वेल्थ रिपोर्ट 2025
शीर्ष टियर-2 शहर अहमदाबाद, सूरत, जयपुर, वडोदरा, नागपुर, विशाखापट्टनम, लखनऊ
मिलियनेयर घराने की परिभाषा ₹8.5 करोड़ (लगभग 1 मिलियन USD) की निवल संपत्ति और उससे अधिक
शीर्ष टियर-1 शहर मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु
अधिकांश मिलियनेयर वाले राज्य शीर्ष 10 राज्य – 79% से अधिक घराने

मरियम फातिमा बिहार की पहली महिला फिडे मास्टर बनीं

मुजफ्फरपुर, बिहार की प्रतिभाशाली युवा शतरंज खिलाड़ी मरीयम फ़ातिमा ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने राज्य से पहली बार वूमन फिडे मास्टर (WFM) का ख़िताब हासिल किया है। यह प्रतिष्ठित उपाधि फ़िडे (Fédération Internationale des Échecs) द्वारा प्रदान की जाती है और यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत करियर के लिए बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार की प्रतिनिधित्व यात्रा के लिए भी एक नया मुकाम है।

उनकी सफलता प्रतिभा, दृढ़ संकल्प और भारतीय खेलों—विशेषकर शतरंज जैसे बौद्धिक खेल—में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की मिसाल है।

मरीयम फ़ातिमा कौन हैं?

मरीयम उत्तर बिहार के शहर मुजफ्फरपुर से आती हैं और कम उम्र से ही शतरंज के प्रति उनका गहरा लगाव रहा है। वर्षों से उन्होंने प्रतियोगिताओं में असाधारण कौशल और रणनीतिक समझ का परिचय दिया है।

  • राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं।

  • हाल ही में वूमन फिडे मास्टर (WFM) की मान्यता मिलने के साथ वे अब भारत की शीर्ष महिला शतरंज खिलाड़ियों की श्रेणी में शामिल हो गई हैं।

  • वह बिहार और देश की नई पीढ़ी की खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हैं।

WFM ख़िताब का महत्व

वूमन फिडे मास्टर (WFM) उपाधि FIDE द्वारा खिलाड़ियों की रेटिंग और मान्यता प्राप्त टूर्नामेंटों में उनके प्रदर्शन के आधार पर दी जाती है। यह एक आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय उपाधि है, जो वूमन इंटरनेशनल मास्टर (WIM) और वूमन ग्रैंडमास्टर (WGM) से ठीक नीचे है।

इस ख़िताब का महत्व:

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल कौशल की पहचान।

  • FIDE रेटिंग सीमा (आमतौर पर 2100+) प्राप्त करना आवश्यक।

  • FIDE द्वारा मान्य प्रतियोगिताओं में लगातार श्रेष्ठ प्रदर्शन का प्रतीक।

मरीयम का यह ख़िताब हासिल करना न केवल उनकी वैश्विक क्षमता को दर्शाता है बल्कि बिहार में उभरते शतरंज पारिस्थितिकी तंत्र की झलक भी प्रस्तुत करता है।


मान्यता और समर्थन

उनकी उपलब्धि पर बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रविन्द्रन शंकरन ने मरीयम फ़ातिमा को बधाई दी। यह आधिकारिक मान्यता न केवल उनकी प्रतिभा को सम्मानित करती है बल्कि बिहार के नवोदित शतरंज खिलाड़ियों को संस्थागत समर्थन देने की दिशा में भी प्रोत्साहन है।

उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि यदि युवा महिलाओं को सही प्रोत्साहन और संसाधन मिलें तो वे खेलों में बड़ी ऊँचाइयों तक पहुँच सकती हैं।

स्थिर तथ्य

तथ्य विवरण
नाम मरीयम फ़ातिमा
मूल स्थान मुजफ्फरपुर, बिहार
उपलब्धि बिहार की पहली वूमन फिडे मास्टर (WFM)
प्रदान करने वाली संस्था FIDE (फ़ेडरेशन इंटरनेशनेल दे एशेक्स – Fédération Internationale des Échecs)

भारत त्रि-सेवा शिक्षा कोर का गठन करेगा, संयुक्त सैन्य स्टेशन स्थापित करेगा

भारतीय सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और एकीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए संयुक्त कमांडर्स सम्मेलन (CCC) 2025 के समापन पर कई महत्वपूर्ण निर्णयों की घोषणा की गई। इनमें सबसे प्रमुख हैं—थल सेना, नौसेना और वायु सेना की शिक्षा शाखाओं का विलय कर एकीकृत त्रि-सेवा शिक्षा कोर (Tri-Services Education Corps) का गठन तथा तीन नए संयुक्त सैन्य स्टेशनों की स्थापना। ये सुधार प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के निर्देशों के अनुरूप भारतीय सेना को अधिक संगठित, कुशल और भविष्य-उन्मुख बनाने की व्यापक दृष्टि का हिस्सा हैं।

त्रि-सेवा शिक्षा कोर क्या है?

नया त्रि-सेवा शिक्षा कोर थल सेना, नौसेना और वायु सेना की अलग–अलग शिक्षा शाखाओं को एकीकृत करेगा। इन शाखाओं की जिम्मेदारियाँ हैं:

  • कार्मिकों (personnel) के शैक्षिक मानकों को बढ़ाना।

  • प्रशिक्षण केंद्रों, गैरीसनों, सैन्य विद्यालयों, सैनिक स्कूलों, चयन केंद्रों और अन्य संस्थानों में स्टाफ की नियुक्ति।

  • साक्षरता, शैक्षणिक प्रशिक्षण और अधिकारी शिक्षा में सहयोग।

विलय का उद्देश्य:

  • सेवाओं के बीच दोहराव (redundancy) से बचना।

  • शैक्षिक संसाधनों और श्रेष्ठ प्रथाओं का साझा उपयोग।

  • प्रारंभिक प्रशिक्षण स्तर से ही संयुक्त मानसिकता (joint mindset) को बढ़ावा देना।

  • पाठ्यक्रम निर्माण, भाषा प्रशिक्षण और शैक्षिक विकास में दक्षता लाना।

यह कदम संयुक्त सैन्य सिद्धांत (joint military doctrine) और संयुक्त युद्धक क्षमता (joint warfighting capabilities) की दिशा में भी अनुकूल है।

संयुक्त सैन्य स्टेशन की स्थापना

शैक्षिक सुधारों के साथ-साथ यह घोषणा भी की गई कि तीन नए संयुक्त सैन्य स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। इनका उद्देश्य है:

  • तीनों सेनाओं के कार्मिकों और उपकरणों को एक ही स्थान पर रखना।

  • संयुक्त प्रशिक्षण, रसद (logistics) और अभियानों को सक्षम बनाना।

  • समन्वय और संयुक्त युद्ध तत्परता (combat readiness) को बढ़ाना।

  • परिवारों, सहायक इकाइयों और सैन्य–नागरिक सहयोग हेतु आधारभूत संरचना उपलब्ध कराना।

ये संयुक्त ठिकाने भारत की रक्षा संरचना में एक बड़ा परिवर्तन हैं और शांति काल तथा युद्ध दोनों स्थितियों में तीनों सेवाओं के बीच की खाई (inter-service silos) को कम करने का प्रयास करते हैं।

सामरिक महत्व: यह सुधार क्यों अहम है?

ये निर्णय शीर्ष सैन्य नेतृत्व की सिफारिशों और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के मार्गदर्शन में लिए गए हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय रक्षा निर्देशों के आधार पर इनके कार्यान्वयन की समयसीमा की समीक्षा की।

प्रमुख लाभ:

  • थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच बेहतर तालमेल।

  • संसाधनों और जनशक्ति का अधिकतम उपयोग।

  • संयुक्त अभियानों (joint operations) में सहयोग और पारस्परिक क्षमता का विकास।

  • भारत जिस थिएटर कमांड संरचना (Theatre Command Structure) की ओर अग्रसर है, उसकी दिशा में महत्वपूर्ण कदम।

  • हाइब्रिड युद्ध, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), ड्रोन और साइबर युद्ध जैसी नई चुनौतियों से निपटने में सहायता।

स्थिर तथ्य

तथ्य विवरण
आयोजन संयुक्त कमांडर्स सम्मेलन (CCC) 2025
मुख्य घोषणा 1 त्रि-सेवा शिक्षा कोर (Tri-Services Education Corps) का गठन
मुख्य घोषणा 2 तीन संयुक्त सैन्य स्टेशनों की स्थापना
घोषणा किसके द्वारा थल सेना, नौसेना और वायु सेना प्रमुख; समीक्षा – CDS द्वारा
उद्देश्य संयुक्तता (jointness), एकीकरण और सशस्त्र बलों की भविष्यगत तैयारी

भारतीय रक्षा इंजीनियर्स सेवा ने अपना 76वां स्थापना दिवस मनाया

भारतीय रक्षा अभियंता सेवा (IDSE) ने 17 सितंबर 2025 को दिल्ली छावनी स्थित मानेकशॉ सेंटर में अपना 76वाँ स्थापना दिवस मनाया। रक्षा सचिव श्री राजेश कुमार सिंह ने इस अवसर पर अधिकारियों को संबोधित किया और भारत की सैन्य अवसंरचना को मज़बूत बनाने में IDSE अधिकारियों के योगदान की सराहना की। उन्होंने नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उभरती सुरक्षा चुनौतियों के प्रति सजग रहने की आवश्यकता पर बल दिया तथा बदलते वैश्विक परिदृश्य में रक्षा अभियंत्रण के बढ़ते सामरिक महत्व को रेखांकित किया।

यह आयोजन अभ्यर्थियों को रक्षा सेवाओं की संरचना, सैन्य–नागरिक समन्वय तथा राष्ट्रीय सुरक्षा में अवसंरचना की भूमिका को समझने के लिए महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है।

IDSE का इतिहास और संरचना

पृष्ठभूमि

  • IDSE का औपचारिक गठन 17 सितंबर 1949 को एक संगठित ग्रुप ‘ए’ अभियंत्रण संवर्ग के रूप में रक्षा मंत्रालय के अधीन किया गया था।

  • इसके अधिकारी मिलिट्री इंजीनियर सर्विसेज़ (MES) के माध्यम से सेवा देते हैं, जिसका गठन 26 सितंबर 1923 को हुआ था और जो सेना के इंजीनियर-इन-चीफ़ के अधीन कार्य करती है।

संगठनात्मक भूमिका
IDSE अधिकारियों की प्रमुख ज़िम्मेदारियाँ हैं:

  • थल सेना, नौसेना, वायु सेना, तटरक्षक बल और DRDO के लिए रक्षा अवसंरचना की योजना बनाना, निर्माण और रखरखाव करना।

  • तकनीकी, प्रशासनिक और आवासीय भवनों, हवाई अड्डों, घाटों और अस्पतालों का प्रबंधन करना।

  • दीर्घकालिक सामरिक परियोजनाओं का निष्पादन सुनिश्चित करना ताकि सैन्य तैयारियों को बल मिले।

76वें स्थापना दिवस की प्रमुख झलकियाँ

समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया और IDSE की राष्ट्रीय रक्षा में भूमिका को पुनः पुष्ट किया गया। मुख्य विषय थे:

  • बदलते खतरों की पृष्ठभूमि में अवसंरचना की तत्परता पर बल।

  • तकनीकी आधुनिकीकरण और नवाचार की आवश्यकता।

  • उच्च मूल्य वाली रक्षा परियोजनाओं के क्रियान्वयन में उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता।

प्रमुख तथ्य

  • IDSE की स्थापना: 17 सितंबर 1949

  • MES की स्थापना: 26 सितंबर 1923

  • संवर्ग का प्रकार: ग्रुप ‘ए’ अभियंत्रण (नागरिक)

  • भर्ती का माध्यम: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) अभियंत्रण सेवा परीक्षा

  • निगरानी प्राधिकरण: इंजीनियर-इन-चीफ़, भारतीय सेना

  • मुख्य कार्य: रक्षा अवसंरचना का निर्माण एवं रखरखाव

  • अधीनस्थ विभाग: रक्षा मंत्रालय

हॉलीवुड वेटरन एक्टर रॉबर्ट रेडफोर्ड का निधन

हॉलीवुड के स्क्रीन आइकन और सिनेमैटिक फ्रीडम को बढ़ावा देने वाले सनडांस फिल्म फेस्टिवल के संस्थापक रॉबर्ट रेडफोर्ड का 89 वर्ष की आयु में अमेरिका के यूटा में निधन हो गया। रेडफोर्ड ने मुख्यधारा और स्वतंत्र सिनेमा दोनों में छह दशकों से अधिक लंबे करियर से फिल्मकारों और दर्शकों की पीढ़ियों को प्रभावित किया।

हॉलीवुड के स्वर्णिम सितारे से इंडी सिनेमा के संरक्षक तक

1960 के दशक में करियर की शुरुआत करने वाले रेडफ़ोर्ड 1970 के दशक तक घर-घर में पहचाने जाने लगे। उन्होंने कई यादगार फ़िल्मों में अभिनय किया, जैसे :

  • द कैंडिडेट (1972)

  • द वे वी वेयर (1973)

  • ऑल द प्रेसिडेंट्स मेन (1976)

  • द स्टिंग (1973) — (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का ऑस्कर विजेता)

1980 में उन्होंने निर्देशन की शुरुआत ऑर्डिनरी पीपल से की, जिसने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का ऑस्कर जीता। आकर्षक व्यक्तित्व और अभिनय क्षमता से आगे बढ़कर उनका जुनून हमेशा कहानी कहने और कलात्मक नवाचार पर केंद्रित रहा।

सनडांस की शुरुआत और विरासत

1970 के दशक में हॉलीवुड के बढ़ते व्यवसायीकरण से व्यथित होकर रेडफ़ोर्ड ने सनडांस इंस्टीट्यूट और सनडांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल की स्थापना की ताकि स्वतंत्र फिल्मकारों को समर्थन मिल सके।

यह फ़ेस्टिवल कई मशहूर निर्देशकों के करियर की शुरुआत का मंच बना, जिनमें शामिल हैं :

  • क्वेंटिन टैरेंटिनो

  • स्टीवन सोडरबर्ग

  • डैरेन एरोनोफ़्स्की

  • पॉल थॉमस एंडरसन

फ़ेस्टिवल की शुरुआत पार्क सिटी, यूटा में हुई थी, लेकिन इसके विस्तार को देखते हुए 2027 में इसे बोल्डर, कोलोराडो स्थानांतरित किया जाएगा।
रेडफ़ोर्ड की रचनात्मक स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता ने वैश्विक सिनेमा पर गहरी छाप छोड़ी।

बहुमुखी फिल्मोग्राफी और सहयोग

पॉल न्यूमैन के साथ उनकी जोड़ी विशेष रूप से यादगार रही —

  • बुच कैसिडी एंड द संडांस किड (1969)

  • द स्टिंग (1973)

अन्य उल्लेखनीय फ़िल्में :

  • जेरमायाह जॉनसन (1972)

  • आउट ऑफ़ अफ्रीका (1985)

  • ऑल इज़ लॉस्ट (2013) — लगभग मौन सर्वाइवल ड्रामा

  • द ओल्ड मैन एंड द गन (2018) — उनकी अंतिम फ़िल्म

उन्होंने आधुनिक ब्लॉकबस्टर में भी अभिनय किया, जैसे मार्वल की कैप्टन अमेरिका: द विंटर सोल्जर, जिसमें वे प्रमुख खलनायक की भूमिका में नज़र आए।

SEBI ने दीर्घकालिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए स्वागत-एफआई लॉन्च किया

वैश्विक फंडों के लिए भारत को एक अधिक आकर्षक निवेश स्थल बनाने के उद्देश्य से, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने “स्वागत-एफआई” नामक एक नया नियामक ढांचा शुरू किया है – विदेशी निवेशकों के लिए गिफ्ट-आईएफएससी तक पहुँच को सुगम बनाने हेतु सरलीकृत आवरण ढाँचा। 16 सितंबर, 2025 को घोषित इस पहल का उद्देश्य कम जोखिम वाले विदेशी निवेशकों, जैसे सॉवरेन वेल्थ फंड, पेंशन फंड और दीर्घकालिक संस्थागत निवेशकों के लिए प्रवेश बाधाओं को कम करना है।

SWAGAT-FI की मुख्य विशेषताएँ

लंबी पंजीकरण अवधि

  • अब योग्य विदेशी निवेशक 10 वर्षों के लिए पंजीकरण कर सकते हैं, जबकि पहले यह अवधि केवल 3 वर्ष थी।

  • इससे प्रशासनिक झंझट कम होगा और स्थिर, निरंतर निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।

तेज़ ऑनबोर्डिंग और सरल पहुँच

  • एक डिजिटल पोर्टल लॉन्च किया गया है, जिससे ऑनबोर्डिंग का समय महीनों से घटकर लगभग एक सप्ताह रह गया है।

  • निवेशक अब एक ही डीमैट खाता (Demat Account) के माध्यम से अपने सभी निवेशों का प्रबंधन कर सकेंगे।

  • यह ढाँचा गिफ्ट सिटी IFSC (अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र) पारिस्थितिकी तंत्र के साथ एकीकृत है, जिससे वैश्विक निवेशकों की सुविधा बढ़ेगी।

सार्वजनिक बाज़ारों में पारदर्शिता

  • IPO (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) और बाज़ार डेटा तक पहुँच से जुड़ी जानकारी और पारदर्शिता मानक बेहतर होंगे।

  • इससे भारत संस्थागत निवेश के लिए और अधिक भरोसेमंद और पूर्वानुमेय वातावरण बनेगा।

रणनीतिक उद्देश्य और वैश्विक महत्व

  • यह नीति दीर्घकालिक पूँजी (Patient Capital) आकर्षित करने के लिए है, जो बाज़ार की अस्थिरता को घटाती है और पूँजी बाज़ार की गहराई एवं मजबूती को बढ़ाती है।

  • सरल, किफ़ायती और पारदर्शी पंजीकरण प्रक्रिया प्रदान करके भारत अब सिंगापुर, दुबई और लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से और प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा कर पाएगा।

स्थैतिक तथ्य 

  • घोषणा करने वाला संगठन : भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • ढाँचे का नाम : SWAGAT-FI

  • लक्षित निवेशक : कम-जोखिम वाले विदेशी निवेशक जैसे सॉवरेन वेल्थ फंड्स, पेंशन फंड्स

  • SEBI अध्यक्ष : तुहिन कांता पांडे

भारतीय डाक 1.65 लाख डाकघरों के माध्यम से बीएसएनएल सिम बेचेगा

ग्रामीण दूरसंचार कनेक्टिविटी को मज़बूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, डाक विभाग (DoP) और भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) ने 17 सितंबर 2025 को नई दिल्ली में एक रणनीतिक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का उद्देश्य भारत के विशाल डाकघर नेटवर्क को अंतिम चरण (Last-Mile) सेवा बिंदु में बदलना है, जहाँ SIM बिक्री और मोबाइल रिचार्ज सेवाएँ उपलब्ध होंगी। यह पहल डिजिटल इंडिया और वित्तीय समावेशन के लक्ष्यों के अनुरूप है।

MoU के प्रमुख उद्देश्य

BSNL की पहुँच का विस्तार

इस समझौते से BSNL को देशभर के 1.65 लाख+ डाकघरों का लाभ मिलेगा, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। इन डाकघरों के माध्यम से प्रदान की जाएँगी—

  • BSNL सिम कार्ड बिक्री

  • मोबाइल रिचार्ज सेवाएँ

  • BSNL सेवाओं के लिए ग्राहक ऑनबोर्डिंग

यह कदम विशेषकर दूरस्थ और पिछड़े क्षेत्रों में डिजिटल विभाजन (Digital Divide) को कम करने के लिए उठाया गया है।

शर्तें और क्रियान्वयन 

  • समझौता 17.09.2025 से एक वर्ष के लिए मान्य रहेगा।

  • प्रदर्शन (Performance) के आधार पर इसे नवीनीकृत किया जा सकेगा।

  • संयुक्त निगरानी, मासिक मिलान (Reconciliation), और डेटा गोपनीयता प्रावधान इसमें शामिल हैं।

पायलट सफलता और राष्ट्रीय विस्तार

असम पायलट : प्रमाण के रूप में सफलता

यह पहल असम में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चलाई गई थी, जहाँ इसे बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली।
अब इस मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का निर्णय लिया गया है, जिससे नागरिकों की डिजिटल सेवाओं तक पहुँच और मज़बूत होगी।

प्रत्येक भागीदार की भूमिका

  • BSNL प्रदान करेगा :

    • सिम कार्ड स्टॉक

    • तकनीकी सहयोग और प्रशिक्षण

  • इंडिया पोस्ट :

    • बिक्री केंद्र (Point of Sale – PoS) के रूप में कार्य करेगा

    • ग्राहकों के सुरक्षित लेन-देन को सुनिश्चित करेगा

स्थैतिक तथ्य 

  • हस्ताक्षर तिथि : 17 सितंबर 2025

  • स्थान : नई दिल्ली

  • हस्ताक्षरकर्ता :

    • सुश्री मनीषा बंसल बादल, डाक विभाग (DoP)

    • श्री दीपक गर्ग, BSNL

  • नेटवर्क कवरेज : 1.65 लाख+ डाकघर (India Post)

  • पायलट क्षेत्र : असम

SBI ने यस बैंक में 13.18% हिस्सेदारी जापान की एसएमबीसी को बेची

भारत के बैंकिंग क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सीमा-पार लेन-देन (Cross-Border Transaction) के तहत भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने यस बैंक में अपनी 13.18% हिस्सेदारी जापान की सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (SMBC) को कुल ₹8,889 करोड़ में बेच दी। यह सौदा भारत के बैंकिंग सुधारों में वैश्विक निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है और भारतीय बैंकों तथा वैश्विक वित्तीय संस्थानों के बीच गहरे रणनीतिक संबंधों की नींव रखता है।

सौदे का विवरण और समयरेखा

  • बेची गई हिस्सेदारी : 13.18%

  • शेयरों की संख्या : 413.44 करोड़ इक्विटी शेयर

  • कुल सौदे का मूल्य : ₹8,889 करोड़

नियामकीय मंजूरी

  • RBI की मंजूरी : 22 अगस्त 2025

  • CCI की मंजूरी : 2 सितंबर 2025

  • SBI बोर्ड की मंजूरी : मई 2025

सभी आवश्यक मंजूरियों के बाद, समझौते की शर्तों के अनुरूप शेयरों का हस्तांतरण पूरा हुआ।

सौदे का रणनीतिक महत्व

भारत का सबसे बड़ा सीमा-पार बैंकिंग सौदा

यह लेन-देन सार्वजनिक-निजी सहयोग का एक बड़ा उदाहरण है, जिसकी जड़ें 2020 में RBI द्वारा संचालित यस बैंक पुनर्गठन योजना से जुड़ी हैं। उस समय सार्वजनिक और निजी बैंकों ने मिलकर संकटग्रस्त यस बैंक को बचाया था।

SMBC का भारत में विस्तार

  • SMBC, जापान की सुमितोमो मित्सुई फाइनेंशियल ग्रुप की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।

  • अब उसके पास यस बैंक में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।

  • SMBC को RBI ने अपनी हिस्सेदारी 24.99% तक बढ़ाने की मंजूरी दी है, जिसके लिए वह Advent, Carlyle से खरीद या वरीयता आवंटन (Preferential Allotment) कर सकता है।

अन्य बैंकों की भूमिका

  • 2020 में RBI की योजना के तहत SBI और अन्य 7 निजी बैंक (HDFC बैंक, ICICI बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, एक्सिस बैंक, IDFC फर्स्ट बैंक, फेडरल बैंक, और बंधन बैंक) ने मिलकर ₹10 प्रति शेयर की दर से यस बैंक में निवेश किया था।

  • कुल बिकने वाली हिस्सेदारी : 20%

    • निजी बैंकों ने : 6.81% हिस्सेदारी ₹4,594 करोड़ में बेची।

    • SBI ने : 13.18% हिस्सेदारी ₹8,889 करोड़ में बेची।

  • इस बिक्री के बाद भी SBI यस बैंक में अल्पांश (Minority Stake) बनाए रखेगा।

स्थैतिक तथ्य 

  • बेची गई हिस्सेदारी : 13.18% (SBI द्वारा)

  • खरीदार : सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (SMBC), जापान

  • सौदे का मूल्य : ₹8,889 करोड़

  • SBI अध्यक्ष : चल्ला श्रीनिवासुलु सेटी

MNRE ने भारत की पहली राष्ट्रीय भूतापीय ऊर्जा नीति शुरू की

भारत के स्वच्छ ऊर्जा पोर्टफोलियो को विस्तार देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए नव और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने राष्ट्रीय भू-ऊर्जा नीति लॉन्च की है। यह भारत की पहली नीति है जो विशेष रूप से पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा से प्राप्त भू-ऊर्जा (Geothermal Energy) के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है।

यह पहल नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य, ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। प्रतियोगी परीक्षा के दृष्टिकोण से यह विषय पर्यावरण, ऊर्जा क्षेत्र, जलवायु लक्ष्य और सरकारी पहल के अंतर्गत अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भू-ऊर्जा (Geothermal Energy) क्या है?

भू-ऊर्जा वह ऊष्मा है जो पृथ्वी की सतह के नीचे संग्रहित होती है। इसका उपयोग —

  • बिजली उत्पादन,

  • हीटिंग व कूलिंग सिस्टम,

  • ग्रीनहाउस कृषि,

  • समुद्री जल के लवण-निर्मूलन (Desalination) — आदि में किया जा सकता है।

सौर या पवन ऊर्जा के विपरीत, भू-ऊर्जा 24×7 उपलब्ध रहती है, इसलिए इसे एक विश्वसनीय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत माना जाता है।

राष्ट्रीय भू-ऊर्जा नीति की मुख्य विशेषताएँ

इस नीति का उद्देश्य विभिन्न प्रयासों को एकीकृत करना, अनुसंधान एवं विकास (R&D) को प्रोत्साहित करना और भू-ऊर्जा परियोजनाओं में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना है।

प्रमुख प्रावधान

  • नियामक भूमिका : नियमन और विकास के लिए नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) केंद्रीय निकाय होगा।

  • सहयोग पर बल : अंतःमंत्रालयी समन्वय, संयुक्त उद्यम और वैश्विक साझेदारी पर फोकस।

  • प्रौद्योगिकी विकास : हाइब्रिड सिस्टम (जैसे भू-ऊर्जा + सौर ऊर्जा), उन्नत R&D और छोड़े गए तेल कुओं का भू-ऊर्जा निष्कर्षण के लिए पुनः उपयोग।

  • पब्लिक-प्राइवेट इकोसिस्टम : स्टार्टअप्स, शोध संस्थानों और उद्योगों को जोड़ने वाला मज़बूत ढाँचा।

  • स्थानीय नवाचार को बढ़ावा : स्वदेशी तकनीकों, पायलट प्रोजेक्ट्स और अकादमिक-उद्योग संबंधों के लिए प्रोत्साहन।

भारत में पहचाने गए भू-ऊर्जा प्रांत 

भारत ने लगभग 10 भू-ऊर्जा प्रांतों की पहचान की है जिनमें ऊष्मीय क्षमता अधिक है:

  • हिमालय

  • कंबे बेसिन

  • अरावली श्रृंखला

  • महानदी बेसिन

  • गोदावरी बेसिन

  • अन्य क्षेत्र : सोहाना, पश्चिमी तट, सोन-नर्मदा-ताप्ती, दक्षिण भारत के क्रैटॉन

भारत की अनुमानित भू-ऊर्जा क्षमता लगभग 10 गीगावाट (GW) आंकी गई है।

स्थैतिक तथ्य 

  • नीति का नाम : राष्ट्रीय भू-ऊर्जा नीति (National Geothermal Energy Policy)

  • लॉन्च करने वाला : नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)

  • नीति का लक्ष्य : विभिन्न क्षेत्रों में भू-ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना

  • अनुमानित क्षमता : 10 गीगावाट (GW)

  • पहचाने गए प्रांत : हिमालय, कंबे, अरावली, महानदी, गोदावरी आदि

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