RBI ने नियम तोड़ने पर एचडीएफसी बैंक और श्रीराम फाइनेंस पर जुर्माना लगाया

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एचडीएफसी बैंक और श्रीराम फाइनेंस पर नियामकीय नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाया है। 11 जुलाई 2025 को आरबीआई ने एचडीएफसी बैंक पर ₹4.88 लाख और श्रीराम फाइनेंस पर ₹2.70 लाख का जुर्माना लगाया। इन दंडों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी वित्तीय संस्थान निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करें और पारदर्शिता बनाए रखें।

जुर्माने की वजहें

एचडीएफसी बैंक पर विदेशी निवेश से संबंधित नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाया गया। यह उल्लंघन उस समय हुआ जब बैंक ने अपने एक ग्राहक को टर्म लोन (मियादी ऋण) प्रदान किया। जांच में पता चला कि बैंक ने इस तरह के लेनदेन के लिए तय मानकों का पालन नहीं किया।

वहीं, श्रीराम फाइनेंस पर डिजिटल लेंडिंग मानदंडों के उल्लंघन के लिए दंडित किया गया। यह मामला 31 मार्च 2024 की वित्तीय स्थिति के आधार पर की गई नियमित जांच के दौरान सामने आया। आरबीआई ने पाया कि कंपनी ने ऋण चुकौती की राशि उन खातों के माध्यम से प्राप्त की जो निर्धारित नियमों के अनुरूप नहीं थे।

आरबीआई का रुख और निगरानी नीति

भारत के केंद्रीय बैंक के रूप में, आरबीआई लगातार वित्तीय क्षेत्र की निगरानी करता है ताकि प्रणाली में स्थिरता और सुरक्षा बनी रहे। यह जुर्माना जिम्मेदार बैंकिंग व्यवहार को बढ़ावा देने की दिशा में आरबीआई के प्रयासों का हिस्सा है।

हालांकि इन उल्लंघनों से दोनों संस्थानों की वित्तीय मजबूती पर कोई गंभीर सवाल नहीं उठता, फिर भी आरबीआई ने स्पष्ट किया कि ऐसी कार्रवाइयों से अनुशासन बना रहता है और भविष्य में नियमों के उल्लंघन की संभावना कम होती है।

यूनेस्को ने तीन अफ्रीकी स्थलों को संकटग्रस्त विश्व धरोहरों की सूची से हटाया

विश्व धरोहर समिति ने तीन अफ्रीकी धरोहर स्थलों – मेडागास्कर, मिस्र और लीबिया – को संकटग्रस्त स्थलों की यूनेस्को की सूची से हटा दिया है तथा इन स्थलों पर खतरों को कम करने और उनकी सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिक अखंडता को बहाल करने के सफल प्रयासों की सराहना की है।संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने एक बयान में कहा कि यह निर्णय पेरिस में जारी विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) के 47वें सत्र के दौरान नौ जुलाई को लिया गया।

बयान में कहा गया है कि संकटग्रस्त सूची से इन धरोहर स्थलों को हटाया जाना, इन स्थलों के लिए खतरों को उल्लेखनीय रूप से कम करने में सदस्य देशों द्वारा यूनेस्को के सहयोग से किए गए व्यापक प्रयासों का परिणाम हैं। संकटग्रस्त सूची से हटाए गए स्थलों में मेडागास्कर में अत्सिनानाना के वर्षावन, मिस्र में अबू मेना और लीबिया में घदामेस का ‘ओल्ड टाउन’ शामिल हैं।

वे खतरों की सूची में क्यों थे

  • अत्सिनाना के वर्षावनों को 2010 में “खतरे में विश्व धरोहर” सूची में शामिल किया गया था, क्योंकि वहां अवैध कटाई, वनों की अंधाधुंध कटाई और लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे लेमूर के नुकसान की घटनाएं बढ़ रही थीं। ये जंगल उन पौधों और जानवरों का घर हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं पाए जाते।
  • मिस्र में स्थित अबू मेना, जो एक प्राचीन ईसाई तीर्थ स्थल है, को 2001 में इस सूची में डाला गया था क्योंकि सिंचाई के कारण आई बाढ़ ने इसकी नींव को नुकसान पहुंचाया और कई हिस्से ढह गए।
  • लीबिया का पुराना शहर घदामेस 2016 में युद्ध, जंगल की आग और बाढ़ की वजह से गंभीर क्षति के चलते इस सूची में डाला गया था।

यूनेस्को की भूमिका और बयान

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ुले ने कहा कि इन तीनों स्थलों को खतरे की सूची से हटाया जाना “पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी जीत” है। उन्होंने यह भी कहा कि यूनेस्को अफ्रीका को विशेष प्राथमिकता दे रहा है और वहां के विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने और विरासत संरक्षण में देशों की मदद करने के लिए काम कर रहा है।

2021 के बाद से, अफ्रीका के तीन और देश – डीआर कांगो, युगांडा और सेनेगल – के स्थल भी इस सूची से हटाए गए हैं। यह दिखाता है कि अफ्रीकी देशों की सहायता के लिए बनाई गई रणनीति सफल हो रही है।

अब आगे क्या होगा

किसी स्थल को “खतरे में विश्व धरोहर” सूची से हटाया जाना दर्शाता है कि अब वह पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित है। हालांकि, इन स्थलों पर नजर रखी जाती रहेगी। अब ये स्थल और अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग व फंडिंग प्राप्त कर सकते हैं, जिससे इनके संरक्षण के प्रयासों को और मजबूती मिलेगी। यह अन्य देशों को भी प्रेरित करेगा कि वे अपनी धरोहरों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं।

‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल

भारत के ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया गया है। इस प्रस्ताव का मूल्यांकन 6 से 16 जुलाई के बीच पेरिस में चल रहे यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) के 47वें सत्र में किया गया। इस सत्र में दुनिया भर से कुल 32 नए स्थलों के नामांकन पर चर्चा की गई, जिनमें भारत का यह ऐतिहासिक सैन्य तंत्र भी शामिल है। भारत की ओर से यह नामांकन 2024-25 चक्र के लिए प्रस्तुत किया गया।

क्या है ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’?

‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ में 12 किले और किलेबंद क्षेत्र शामिल हैं जो 17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच विकसित किए गए थे। यह किले मराठा साम्राज्य की सैन्य शक्ति, रणनीति और निर्माण कला का अद्भुत उदाहरण माने जाते हैं। ये किले न केवल सुरक्षा के लिए बल्कि रणनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण थे।

महाराष्ट्र और तमिलनाडु के ये किले शामिल

इन 12 स्थानों में महाराष्ट्र का साल्हेर किला, शिवनेरी किला, लोहगढ़, खांदेरी किला, रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला किला, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और तमिलनाडु का जिन्जी किला शामिल है। इन किलों को देश के कई भौगोलिक और प्राकृतिक क्षेत्रों में इस तरह से बनाया गया था कि वे मराठा शासन की सैन्य ताकत को दर्शाते हैं। इनमें पहाड़ी क्षेत्रों, समुद्र के किनारे और अंदरूनी मैदानों पर बने किलों का अनोखा संगम देखने को मिलता है।

कैसे चली मूल्यांकन प्रक्रिया?

विश्व धरोहर समिति की बैठक में 11 से 13 जुलाई के बीच 32 स्थलों की समीक्षा की गई। भारत के इस नामांकन के साथ-साथ कैमरून का डीआईवाई-जीआईडी-बीआईवाई (Diy-Gid-Biy) सांस्कृतिक क्षेत्र, मलावी का माउंट मुलंजे सांस्कृतिक परिदृश्य, और यूएई का फाया पैलियोलैंडस्केप जैसे स्थलों पर भी चर्चा की गई। इसके अलावा दो पहले से ही यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की सीमाओं में संभावित बदलाव के प्रस्तावों पर भी विचार किया गया।

एक देश से एक नामांकन नियम

यूनेस्को के ‘ऑपरेशनल गाइडलाइंस 2023’ के अनुसार, हर देश एक बार में केवल एक ही नामांकन जमा कर सकता है। भारत ने इस चक्र के लिए ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स” को चुना।

क्यों महत्वपूर्ण है नामांकन?

अगर इस नामांकन को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में स्थान मिलता है, तो यह भारत के लिए गर्व का विषय होगा। इससे इन ऐतिहासिक स्थलों की वैश्विक मान्यता बढ़ेगी, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, और इनके संरक्षण के प्रयासों को और गति मिलेगी।

यूनेस्को की मान्यता और समिति की बैठक

पेरिस में आयोजित यूनेस्को विश्व धरोहर समिति की 47वीं बैठक में इन किलों को विश्व धरोहर सूची (World Heritage List) में शामिल किया गया। यह नामांकन भारत द्वारा 2024–25 विश्व धरोहर चक्र के तहत किया गया था। भारतीय अधिकारियों और इतिहासकारों ने इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को वैश्विक मंच पर प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया।

भारत का गौरव और ऐतिहासिक महत्व

ये किले केवल स्थापत्य संरचनाएं नहीं थे, बल्कि रणनीतिक सोच, आत्मरक्षा और एकता के प्रतीक थे। छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे मराठा शासकों ने इनका उपयोग साम्राज्य की नींव और रक्षा के लिए किया। विशेष रूप से रायगढ़ और प्रतापगढ़ जैसे किले भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उदाहरण के लिए, महाबलेश्वर से 22 किमी दूर स्थित प्रतापगढ़ किला कई प्रसिद्ध युद्धों का गवाह रहा है।

अधिक रिफंड के कारण सरकार के कर संग्रह में गिरावट

चालू वित्त वर्ष में 10 जुलाई तक शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 1.34 प्रतिशत घटकर लगभग 5.63 लाख करोड़ रुपये रह गया। हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों में इसकी पुष्टि हुई। इस दौरान शुद्ध कॉरपोरेट कर संग्रह 3.67 प्रतिशत घटकर लगभग 2 लाख करोड़ रुपये रह गया, जो एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में 2.07 लाख करोड़ रुपये था। गैर-कॉर्पोरेट कर (जिसमें व्यक्ति, एचयूएफ और फर्म शामिल हैं) संग्रह 1 अप्रैल से 10 जून, 2025 के बीच 3.45 लाख करोड़ रुपये पर स्थिर रहा। प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) संग्रह 10 जुलाई तक 17,874 करोड़ रुपये था।

आंकड़े क्या दिखाते हैं

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में 10 जुलाई तक सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह (रिफंड से पहले) 3.2% बढ़कर ₹6.6 लाख करोड़ हो गया है। इसमें कॉरपोरेट और गैर-कॉरपोरेट दोनों वर्गों से प्राप्त कर शामिल हैं। हालांकि, रिफंड में 38% की वृद्धि हुई, जिससे रिफंड के बाद की शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह की राशि कम हो गई। शुद्ध संग्रह वह वास्तविक राजस्व होता है जो सरकार को रिफंड देने के बाद प्राप्त होता है — यानी वह राशि जो सरकार अंततः अपने पास रखती है। रिफंड की मात्रा अधिक होने के कारण, इस साल शुद्ध संग्रह पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में कम रहा है।

गिरावट का कारण

शुद्ध संग्रह में कमी का कारण कॉरपोरेट टैक्स (कंपनियों द्वारा भुगतान किया गया कर) और गैर-कॉरपोरेट टैक्स (व्यक्तियों व अन्य संस्थाओं द्वारा भुगतान किया गया कर) दोनों में कमी है। साथ ही, टैक्स रिफंड में तेजी से बढ़ोतरी — जो संभवतः तेज प्रोसेसिंग या पहले किए गए अतिरिक्त भुगतान के कारण हुई — ने सरकार के पास बची राशि को घटा दिया। अधिकारियों ने बताया कि भले ही सकल संग्रह में हल्की वृद्धि दर्ज हुई है, लेकिन रिफंड की बड़ी मात्रा का सीधा असर शुद्ध राजस्व पर पड़ा है।

सरकार की प्राथमिकताएं और आगे की राह

इस गिरावट के बावजूद सरकार का ध्यान टैक्स अनुपालन सुधारने और रिटर्न व रिफंड की समय पर प्रोसेसिंग पर बना रहेगा। कर विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में जब व्यापार गतिविधियां बढ़ेंगी और टैक्स फाइलिंग की समय-सीमा नजदीक आएगी, तो शुद्ध संग्रह में सुधार हो सकता है। सरकार, राजकोषीय संतुलन बनाए रखने के लिए अपनी रणनीतियों में आवश्यक बदलाव कर सकती है, ताकि कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचा विकास में निवेश जारी रखा जा सके।

 

DRDO और वायुसेना ने किया ‘अस्त्र’ मिसाइल का सफल परीक्षण

डीआरडीओ और भारतीय वायुसेना ने ओडिशा के तट पर स्वदेशी बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (BVRAAM) ‘अस्त्र’ का सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल में स्वदेशी रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर लगा हुआ है और इसे सुखोई -30 Mk-I फाइटर जेट से दागा गया। परीक्षण के दौरान दो मिसाइलें अलग-अलग दूरी, दिशा और हालात में उड़ रहे तेज रफ्तार ड्रोन टारगेट्स पर दागी गईं। दोनों ही बार मिसाइलों ने अपने टारगेट को बेहद सटीकता से मार गिराया।

ओडिशा तट पर सफल परीक्षण

बंगाल की खाड़ी में भारत ने एक और बड़ी सैन्य उपलब्धि हासिल की। सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से दो बार अस्त्र मिसाइल का परीक्षण किया गया। ये परीक्षण अलग-अलग दूरी और दिशाओं में उड़ रहे तेज़ रफ्तार मानव रहित हवाई लक्ष्यों पर किए गए। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, दोनों मिसाइलें अपने-अपने लक्ष्यों पर सटीकता से लगीं, जिससे इस मिसाइल की उन्नत क्षमता सिद्ध हो गई।

अस्त्र मिसाइल और RF सीकर के बारे में

अस्त्र एक ‘बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल’ (BVRAAM) है, जिसे दुश्मन के विमान को लॉन्चिंग विमान से काफी दूर मार गिराने के लिए बनाया गया है। इस बार जो संस्करण परीक्षण में इस्तेमाल हुआ, उसमें देश में विकसित किया गया रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सीकर लगा था।

यह RF सीकर लक्ष्य पर लॉक करने और उड़ान के दौरान मार्गदर्शन देने में मदद करता है। इसका स्वदेशी विकास ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत की रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।

आत्मनिर्भर रक्षा निर्माण के लक्ष्य

यह परीक्षण भारत की रक्षा तैयारियों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इससे भारतीय वायुसेना के लिए पूरी तरह से स्वदेशी एयर-टू-एयर मिसाइलों के उपयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ है। अधिकारियों ने बताया कि ऐसे सफल परीक्षणों से भारत की विदेशी मिसाइल प्रणालियों पर निर्भरता कम होगी और आत्मनिर्भर रक्षा निर्माण के लक्ष्य को बल मिलेगा। मिसाइल को नियमित रूप से वायुसेना के बेड़े में शामिल करने से पहले और भी परीक्षण किए जाएंगे।

भारत पांडुलिपि विरासत पर पहले वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी करेगा

भारत 11 से 13 सितंबर 2025 तक नई दिल्ली के भारत मंडपम में अपनी पहली वैश्विक पांडुलिपि विरासत पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेज़बानी करेगा। संस्कृति मंत्रालय द्वारा घोषित यह ऐतिहासिक आयोजन भारत की प्राचीन पांडुलिपि-ज्ञान परंपरा को संरक्षित, प्रचारित और वैश्विक मंच पर साझा करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। इसकी घोषणा गुरु पूर्णिमा के अवसर पर की गई, जो भारत की गुरु-शिष्य परंपरा और ज्ञान-संस्कृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है।

प्राचीन ज्ञान को संरक्षित करने की वैश्विक पहल

“पांडुलिपि विरासत के माध्यम से भारत की ज्ञान परंपरा की पुनर्प्राप्ति” शीर्षक वाले इस तीन दिवसीय सम्मेलन में भारत और विदेशों से 500 से अधिक प्रतिनिधि, जिनमें 75 प्रतिष्ठित विद्वान और सांस्कृतिक विशेषज्ञ शामिल होंगे, भाग लेंगे। यह आयोजन हाइब्रिड प्रारूप में होगा, जिससे विश्वभर के प्रतिभागी ऑनलाइन या प्रत्यक्ष रूप से जुड़ सकें।

भारत के पास 1 करोड़ से अधिक पांडुलिपियाँ हैं, जो विभिन्न लिपियों और भाषाओं में दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य, अनुष्ठान और कला जैसे क्षेत्रों की जानकारी समेटे हुए हैं। यह सम्मेलन इन दुर्लभ ग्रंथों को संरक्षित करने और उन्हें नई पीढ़ी व अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को समर्पित

यह आयोजन स्वामी विवेकानंद के 11 सितंबर 1893 को ‘धर्म संसद’ में दिए गए ऐतिहासिक भाषण को भी श्रद्धांजलि स्वरूप है। इसी तिथि पर सम्मेलन आयोजित करके भारत के विश्व शांति व ज्ञान-साझाकरण के संकल्प को रेखांकित किया जाएगा।

इस सम्मेलन में यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल दुर्लभ पांडुलिपियाँ प्रदर्शित की जाएंगी, साथ ही संरक्षण का जीवंत प्रदर्शन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कार्यशालाएं और पांडुलिपि नवाचार से जुड़े स्टार्टअप्स की प्रस्तुतियाँ भी होंगी।

प्रमुख पहलें और कार्यक्रम

सम्मेलन के दौरान ‘पांडुलिपि अनुसंधान भागीदार (MRP)’ कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी, जिसमें युवा विद्वानों के लिए प्रशिक्षण, लिपि प्रयोगशालाएं और व्यावहारिक कार्यशालाएं आयोजित होंगी। इसके अतिरिक्त, ‘नई दिल्ली घोषणा पत्र’ जारी किया जाएगा, जो पांडुलिपियों के संरक्षण, अनुवाद और डिजिटलीकरण के भविष्य के रोडमैप को दिशा देगा।

सम्मेलन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित अभिलेखन, नैतिक संरक्षण, पांडुलिपि विज्ञान (पेलियोग्राफी), डिजिटलीकरण और शिक्षा में पारंपरिक ज्ञान के उपयोग जैसे आधुनिक विषयों पर भी सत्र होंगे। रुचि रखने वाले शोधकर्ता 10 अगस्त 2025 तक अपने शोध-पत्र या केस स्टडी https://gbm-moc.in वेबसाइट पर भेज सकते हैं। प्रश्न या संपूर्ण लेख भेजने के लिए ईमेल: gbmconference@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

भारत ने पहली इलेक्ट्रिक ट्रक प्रोत्साहन योजना शुरू की

भारत सरकार ने 12 जुलाई 2025 को पीएम ई-ड्राइव (PM E-DRIVE) पहल के तहत अपना पहला इलेक्ट्रिक ट्रक (ई-ट्रक) प्रोत्साहन योजना शुरू की, जिसके तहत प्रति वाहन अधिकतम ₹9.6 लाख की सब्सिडी दी जाएगी। इस योजना की घोषणा केंद्रीय मंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने की। इसका उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और स्वच्छ माल परिवहन (फ्रेट ट्रांसपोर्ट) को बढ़ावा देना है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हरित गतिशीलता (ग्रीन मोबिलिटी) और 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

ई-ट्रक योजना की प्रमुख विशेषताएं:

  • यह योजना N2 और N3 श्रेणियों के इलेक्ट्रिक ट्रकों के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है, जिनका सकल वाहन भार (GVW) 3.5 टन से लेकर 55 टन तक है।

  • अधिकतम ₹9.6 लाख प्रति ट्रक की सब्सिडी अग्रिम छूट (upfront discount) के रूप में मिलेगी।

  • निर्माता कंपनियों को यह राशि पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर पीएम ई-ड्राइव पोर्टल के माध्यम से वापस मिलेगी।

गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए योजना में सख्त वारंटी नियम भी शामिल हैं:

  • बैटरी के लिए 5 साल या 5 लाख किलोमीटर की वारंटी।

  • वाहन और मोटर के लिए 5 साल या 2.5 लाख किलोमीटर की वारंटी।

इसके साथ ही, खरीदारों को पुराने प्रदूषणकारी डीज़ल ट्रकों को स्क्रैप करना होगा, जिससे पर्यावरण को और लाभ मिलेगा।

भारत के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है:

हालांकि डीज़ल ट्रक कुल वाहनों का केवल 3% हैं, लेकिन ये परिवहन से संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 42% हिस्सा बनाते हैं। ऐसे में यह योजना वायु गुणवत्ता सुधारने, कार्बन उत्सर्जन कम करने और भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाएगी।

इस योजना के तहत ₹100 करोड़ के बजट से 5,600 ई-ट्रकों को बढ़ावा देने की योजना है, जिसमें से 1,100 ट्रक दिल्ली में तैनात किए जाएंगे। यह योजना सीमेंट, स्टील, पोर्ट और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जहां भारी ट्रकों का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है।

उद्योग की भागीदारी और सरकारी प्रयास:

भारत की अग्रणी कंपनियां जैसे टाटा मोटर्स, अशोक लेलैंड और वोल्वो-आईशर पहले से ही इलेक्ट्रिक ट्रकों पर काम कर रही हैं। यह योजना आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत घरेलू ईवी उद्योग को गति देगी।

सरकारी उपक्रम सेल (SAIL) ने पहले ही 150 ई-ट्रक खरीदने की प्रतिबद्धता जताई है और वह अपने किराए के बेड़े का 15% विद्युतीकरण करना चाहता है। यह पहल अन्य सरकारी कंपनियों के लिए भी एक मिसाल बनेगी कि वे हरित परिवहन को बढ़ावा दें।

स्विट्ज़रलैंड ने छोटे बच्चों के लिए पहली मलेरिया दवा को मंज़ूरी दी

स्विट्जरलैंड ने नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए पहली बार मलेरिया के उपचार की दवा ‘Coartem’ को मंजूरी दे दी है। यह दवा नोवार्टिस द्वारा विकसित की गई है। यह दवा उन नवजात शिशुओं के लिए बनाई गई है जिनका वजन 2 से 5 किलोग्राम के बीच है। यह कदम बेहद अहम है, क्योंकि मलेरिया खासकर अफ्रीका में बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण है। यह मलेरिया से होने वाली मौतों को रोकने में अहम भूमिका निभाएगी, विशेषकर अफ्रीका में जहां वर्ष 2023 में मलेरिया से 5 लाख से अधिक मौतें हुईं, जिनमें अधिकांश बच्चे शामिल थे।

शिशु स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा कदम

यह दवा स्विट्ज़रलैंड के बासेल स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी नोवार्टिस द्वारा बनाई गई है। यह बहुत छोटे शिशुओं के लिए अनुमोदित होने वाली पहली मलेरिया की दवा है, जो सबसे कमज़ोर और नवजात बच्चों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। स्विसमेडिक ने इस दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया के तहत मंज़ूरी दी है। इस विशेष प्रक्रिया का उद्देश्य विकासशील देशों में जीवनरक्षक दवाओं की उपलब्धता को तेज़ी से सुनिश्चित करना है।

अफ्रीका के लिए क्यों है यह महत्वपूर्ण

साल 2023 में मलेरिया से दुनियाभर में लगभग 5,97,000 लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें से 95% मौतें अफ्रीका में हुईं। इनमें से अधिकांश शिकार पांच साल से छोटे बच्चे थे। हालांकि मलेरिया आमतौर पर 3 से 6 महीने के बच्चों में अधिक देखा जाता है, लेकिन नवजात शिशुओं के लिए भी सुरक्षित इलाज के विकल्प बेहद ज़रूरी हैं। अभी तक बच्चों के लिए बनी दवाओं की खुराक को सावधानीपूर्वक शिशुओं के लिए समायोजित करना पड़ता था, जिसे विशेषज्ञों ने “अपर्याप्त समाधान” बताया।

विशेषज्ञों की राय और कंपनी की योजना

आईएसग्लोबल (ISGlobal – बार्सिलोना ग्लोबल हेल्थ संस्थान) के मलेरिया विशेषज्ञ किकी बासट (Quique Bassat) ने कहा कि यह दवा सुरक्षित और प्रभावी दोनों है, और इससे नवजातों का इलाज अधिक आसान और सुरक्षित तरीके से किया जा सकेगा। नोवार्टिस के प्रवक्ता रुइरीड विल्लार (Ruairidh Villar) ने बताया कि आठ अफ्रीकी देश इस दवा की समीक्षा प्रक्रिया में शामिल थे और अगले 90 दिनों में इसके मंज़ूरी देने की उम्मीद है। कंपनी की योजना है कि यह दवा मलेरिया प्रभावित देशों में बिना लाभ (नो प्रॉफिट) के आधार पर उपलब्ध कराई जाए।

उद्योग जगत के समक्ष मक्का उत्पादन और उपभोग बढ़ाने की योजना

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 7 जुलाई, 2025 को नई दिल्ली में फिक्की और भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) द्वारा आयोजित 11वें भारत मक्का शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होंने किसानों की आय में सुधार, मक्का उत्पादन को बढ़ावा देने और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए “मक्का क्रांति” के लिए सरकार के नए दृष्टिकोण को साझा किया। इस कार्यक्रम में भारत के मक्का क्षेत्र को आकार देने वाले प्रमुख कार्यक्रमों और साझेदारियों पर प्रकाश डाला गया।

मक्का उत्पादन के लिए एक दूरदर्शी योजना

शिखर सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सरकार का प्रमुख ध्यान “किसान पहले” पर है। उन्होंने बेहतर अनुसंधान, किसान शिक्षा और आधुनिक कृषि तकनीकों के माध्यम से मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिए एक विस्तृत रोडमैप साझा किया।

भारत का मक्का उत्पादन 1990 में 1 करोड़ टन से बढ़कर हाल के वर्षों में 4.2 करोड़ टन हो गया है। 2047 तक इसे 8.6 करोड़ टन तक पहुंचाने का लक्ष्य है। हालांकि, भारत की औसत मक्का उत्पादकता 3.7 टन प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत से अभी भी कम है।

प्रयोगशाला से खेत तक: विज्ञान को किसानों से जोड़ना

विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत लगभग 11,000 वैज्ञानिकों और कृषि अधिकारियों को 7,000–8,000 गांवों में भेजा गया ताकि वे सीधे किसानों के साथ काम कर सकें। इसका उद्देश्य प्रयोगशालाओं में विकसित वैज्ञानिक समाधानों को खेतों तक पहुंचाना और किसानों को बेहतर तकनीक अपनाने में मदद करना है।

उत्तर प्रदेश में मक्का को बढ़ावा

उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने राज्य की तेज मक्का विकास योजना की सफलता साझा की। यह एक पांच वर्षीय राज्य योजना है, जिसमें मक्का को फसल विविधीकरण के हिस्से के रूप में बढ़ावा दिया गया।

इस वर्ष राज्य के 24 ज़िलों में 5.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर मक्का की बुवाई हुई। सैटेलाइट सर्वेक्षण से इस विस्तार की पुष्टि हुई है।

  • राज्य की औसत उपज अब 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है

  • इस वर्ष यह 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पार कर सकती है

  • लगभग 15 कंपनियां मक्का प्रसंस्करण में सक्रिय हैं

  • सरकार रेशा (फाइबर) और पर्यावरण-अनुकूल प्लास्टिक विकल्पों जैसे वैल्यू-एडेड उत्पादों पर काम कर रही है

विशेषज्ञों की राय और बाज़ार की प्रवृत्तियां

डॉ. एच.एस. जाट, निदेशक, ICAR-IIMR ने कहा कि 2030 तक ई30 एथनॉल मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने के लिए मक्का उत्पादन में हर साल 8–9% की वृद्धि ज़रूरी है। उनका कहना है कि उच्च स्टार्च और किण्वनीय सामग्री वाली नई मक्का किस्में विकसित की जा रही हैं, जिससे एथनॉल उत्पादन बढ़ाया जा सके।

सुब्रतो गीड, सह-अध्यक्ष, FICCI कृषि समिति ने कहा: “मक्का सिर्फ एक फसल नहीं है — यह भारत की खाद्य सुरक्षा, जैव ईंधन, और पशु आहार का एक महत्वपूर्ण आधार है।” उन्होंने बेहतर तकनीक, बीज प्रणाली, और डिजिटल कृषि उपकरणों को अपनाने पर ज़ोर दिया ताकि भारत को जलवायु-स्मार्ट मक्का अर्थव्यवस्था बनाया जा सके।

सुंजय वुप्पुलुरी, यस बैंक से, ने बताया कि मक्का भारत का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ अनाज है।

  • पिछले 10 वर्षों में मक्का क्षेत्रफल में 31% वृद्धि हुई है

  • उत्पादन में 75% वृद्धि दर्ज की गई

  • लेकिन मांग, आपूर्ति से कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ रही है

  • पोल्ट्री फीड (51%) और एथनॉल (18%) इसके मुख्य उपयोग हैं

मुंबई में कार्नेक पुल का नाम ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर रखा गया

दक्षिण मुंबई में पुनर्निर्मित कार्नेक रोड ओवर ब्रिज (आरओबी) का नाम बदलकर ‘सिंदूर ब्रिज’ कर दिया गया है। यह नाम पहलगाम आतंकवादी हमले का बदला लेने के लिए मई में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई से प्रेरित है। पूर्व को पश्चिम से जोड़ने वाले पुल को पहले कार्नेक ब्रिज के नाम से जाना जाता था। नाम बदलने का उद्देश्य ब्रिटिश गवर्नर जेम्स रिवेट-कार्नाक की औपनिवेशिक विरासत को हटाना भी है, जिन्होंने उत्पीड़न के समय में शासन किया था।

पुल का नामकरण और उद्घाटन

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 10 जुलाई 2025 को नव-निर्मित सिंदूर पुल का उद्घाटन किया। पहले यह पुल कार्नेक ब्रिज के नाम से जाना जाता था, जिसका नाम अब ऑपरेशन सिंदूर की वीरता के सम्मान में बदल दिया गया है। इस बदलाव का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के उस दौर की यादों को मिटाना है, जब गवर्नर कार्नेक जैसे अधिकारी भारतीयों पर दमन करते थे।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि यह नामकरण औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने प्रबोधनकार ठाकरे के लेखनों का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह कर्नैक ने सातारा के छत्रपति प्रताप सिंह राजे और रंगो बापूजी के खिलाफ षड्यंत्र रचा था।

पुल निर्माण की जानकारी और देरी का कारण

328 मीटर लंबा यह पुल चार लेन का है और यह क्रॉफर्ड मार्केट, कालबादेवी और धोबी तालाओ जैसे भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में यातायात को आसान बनाएगा। पुराना दो लेन वाला कार्नेक ब्रिज 1868 में बना था, जिसे 2022 में संरचनात्मक ऑडिट में असुरक्षित पाए जाने के बाद गिरा दिया गया था।

निर्माण कार्य 13 जून 2025 को पूरा हो गया था, लेकिन संकेतक बोर्ड, रेलवे की एनओसी जैसी औपचारिकताओं के कारण उद्घाटन में देरी हुई। 2 जुलाई को उद्धव ठाकरे गुट और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस देरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया था।

इतिहास और नाम बदलने की पृष्ठभूमि

पुराने पुल का नाम जेम्स रिवेट-कार्नेक, बॉम्बे के गवर्नर (1839–1841) के नाम पर रखा गया था। वह उन औपनिवेशिक प्रशासकों में से एक थे जिनके नाम अब भी भारत के कई सार्वजनिक ढांचों पर हैं। नया नाम ‘सिंदूर’, भारत की सैन्य शक्ति और वर्तमान गौरव का प्रतीक है। सीएम फडणवीस ने कहा कि “सिंदूर” शब्द सिर्फ सैन्य विजय का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह इतिहास के उन काले अध्यायों को मिटाने का प्रतीक भी है, जिन्हें ब्रिटिश राज में लिखा गया था।

Recent Posts

about | - Part 195_12.1