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ग्रीन जीडीपी: पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करना

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बढ़ती पर्यावरण संबंधी चिंताओं को देखते हुए हरित राष्ट्रीय लेखाओं (Green National Account) की मांग शुरू हुई है जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य की स्थिति और इसके पारंपरिक राष्ट्रीय लेखाओं में समाज द्वारा इसके उपयोग एवं इसमें कमी को उजागर करते हैं। हरित सकल घरेलू उत्पाद या ग्रीन जीडीपी (Green GDP) में पर्यावरण के लिये लाभप्रद एवं हानिकारक, दोनों तरह के उत्पादों और उनके सामाजिक मूल्य का लेखा-जोखा होना चाहिये। यह उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर उनके वर्गीकरण तथा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के आपूर्ति एवं उपयोग तालिका का प्रयोग कर डेटा संग्रहण एवं विश्लेषण की एक पद्धति का भी प्रस्ताव करता है।

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ग्रीन जीडीपी और ग्रीन नेशनल अकाउंट

 

ग्रीन जीडीपी: ग्रीन जीडीपी एक संकेतक है जो किसी देश के पारंपरिक जीडीपी से प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पर्यावरणीय क्षति की लागत का घटाव करता है। इसे पर्यावरणीय रूप से समायोजित घरेलू उत्पाद (environmentally adjusted domestic product) के रूप में भी जाना जाता है। ग्रीन जीडीपी दर्शा सकता है कि किसी देश का आर्थिक विकास कितना संवहनीय है और यह उसके लोगों की रहन-सहन को कैसे प्रभावित करता है।

ग्रीन नेशनल अकाउंट: ग्रीन नेशनल अकाउंट एक ऐसा ढाँचा है जो पर्यावरण संबंधी विचारों को राष्ट्रीय लेखा ढाँचों में एकीकृत करता है। इसका उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों से संलग्न पर्यावरणीय लागतों एवं लाभों को मापना और उनका लेखा-जोखा करना है। हरित लेखांकन विधियाँ (Green accounting methods) प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य, प्रदूषण एवं पर्यावरणीय क्षति की लागत और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के लाभों को शामिल करने का प्रयास करती हैं।

 

ग्रीन जीडीपी का क्या महत्त्व है?

ग्रीन जीडीपी प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के मूल्यांकन को शामिल करती है, जो आमतौर पर पारंपरिक जीडीपी गणनाओं में बाह्य कारण (externalities) होते हैं। इन पर्यावरणीय कारकों के आर्थिक मूल्य की मात्रा निर्धारित करने से, यह आर्थिक गतिविधियों की वास्तविक लागतों एवं लाभों का अधिक सटीक मापन प्रदान करता है। ग्रीन जीडीपी आर्थिक आकलन में पर्यावरणीय कारकों पर स्पष्ट रूप से विचार करते हुए सतत् विकास लक्ष्यों की अवधारणा के साथ संरेखित होती है। यह नीति निर्माताओं को आर्थिक विकास एवं पर्यावरणीय स्थिरता के बीच के समंजन (trade-offs) को बेहतर ढंग से समझने की अनुमति देता है, जिससे अधिक सूचना-संपन्न नीतियों एवं रणनीतियों के निर्माण में सुगमता होती है।

ग्रीन जीडीपी के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

पर्यावरणीय लागत, लाभ और प्राकृतिक संसाधन मूल्य पर अविश्वसनीय डेटा के कारण हरित जीडीपी की गणना करना कठिन है। अनुमान में धारणाएँ एवं व्यक्तिपरक निर्णय शामिल होते हैं, जो विश्वसनीयता एवं तुलनीयता (comparability) को प्रभावित करते हैं। पर्यावरणीय वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक संदर्भ में मूल्य निर्धारण एक विवादास्पद विषय रहा है। आलोचकों का तर्क है कि पर्यावरण के कुछ पहलुओं, जैसे कि जैव विविधता या सांस्कृतिक विरासत, का अंतर्निहित मूल्य होता है जिसे आर्थिक मूल्यांकन विधियों द्वारा पर्याप्त रूप से ग्रहण नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण को आर्थिक मूल्य प्रदान करने की प्रक्रिया को अत्यधिक सरलीकरण और वस्तुकरण प्रकृति का माना जा सकता है।

 

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FAQs

ग्रीन जीडीपी से क्या तात्पर्य है?

ग्रीन जीडीपी (Green GDP in Hindi) की गणना सकल घरेलू उत्पाद से शुद्ध प्राकृतिक पूंजी खपत को घटाकर की जाती है। इसमें संसाधनों की कमी, पर्यावरण क्षरण और पर्यावरण संरक्षण गतिविधियां शामिल हैं। इन गणनाओं का उपयोग शुद्ध घरेलू उत्पाद (एनडीपी) के लिए भी किया जा सकता है, जो सकल घरेलू उत्पाद से पूंजी मूल्यह्रास घटाता है।