भारत और ज़र्मन हाइड्रोजन टास्क फोर्स पर केंद्रीय ऊर्जा, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री, आर. के. सिंह और ज़र्मन आर्थिक और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. रॉबर्ट हेबेक ने एक आशय की संयुक्त घोषणा (Joint Declaration of Intent – JDI) पर हस्ताक्षर किए। भारत अक्षय ऊर्जा क्षमता में विस्तार की दुनिया की उच्चतम गति के साथ, ऊर्जा संक्रमण में एक वैश्विक नेतृत्व के रूप में उभरा है। मंत्री आर.के. सिंह ने अपने ज़र्मन समकक्ष को सूचित किया कि भारत के पास एक स्पष्ट बोली की प्रक्रिया (bidding procedure), एक खुला बाज़ार (open market), एक त्वरित विवाद समाधान प्रणाली (quick dispute resolution system) और व्यापक रूप से सबसे आकर्षक आरई निवेश स्थलों (RE investment destinations) में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
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प्रमुख बिंदु (Key Points):
- ऊर्जा संक्रमण के मामले में भारत के पास ऊंचे लक्ष्य हैं। वर्ष 2030 तक, इसमें 500 GW ग़ैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता जुड़ जाएगी।
- भारत ने हरित हाइड्रोजन के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैं।
- ज़र्मन कंपनियां भारत में इस पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं।
- परियोजनाओं, विनियमों और मानकों, व्यापार, और संयुक्त अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) परियोजनाओं के लिए सक्षम ढांचे का निर्माण करके ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग, भंडारण और वितरण में आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए हस्ताक्षरित समझौते के तहत दोनों देश एक इंडो-ज़र्मन ग्रीन हाइड्रोजन टास्क फोर्स की स्थापना करेंगे।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को भारत में हरित हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाने के उद्देश्य से बनाया गया था। ज़र्मनी ने हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता बनने के लक्ष्य के साथ एक साहसिक राष्ट्रीय हाइड्रोजन रणनीति भी तैयार की है।
- भारत अपनी समृद्ध अक्षय ऊर्जा क्षमता और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने के अनुभव के कारण, उद्योग क्षेत्रों की एक श्रृंखला को धीरे-धीरे डीकार्बोनाइज करने के लिए कम लागत वाली ग्रीन हाइड्रोजन बना सकता है, साथ ही वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए इसका निर्यात भी कर सकता है। जर्मनी पहले से ही अनुसंधान और उद्योग में अपनी क्षमताओं की बदौलत विभिन्न हाइड्रोजन पहल कर रहा है।
दोनों देश एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं। दीर्घकालिक उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करते हुए उत्सर्जन को कम करना है। इसके लिए हरित हाइड्रोजन उत्पादन और ख़पत में वैश्विक वृद्धि की आवश्यकता है। नतीज़तन, भारत और ज़र्मनी पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने के लिए एक वैश्विक हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के निर्माण का समर्थन करते हैं। दोनों पक्षों को विश्वास है कि समान लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है जो व्यक्तिगत शक्तियों और क्षमताओं पर आधारित हो।