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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन के लिए अध्यादेश को दी मंजूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन के लिए अध्यादेश को दी मंजूरी |_3.1
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन के लिए अध्‍यादेश लाने की मंजूरी दे दी है। यह कदम महामारी के दौरान हिंसा के खिलाफ स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और संपत्ति की सुरक्षा, जिसमें उनका रहना/काम करने का परिसर भी शामिल को सुरक्षित करने के लिए उठाया गया है। कैबिनेट द्वारा महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने की मंजूरी, वर्तमान कोविड-19 महामारी के दौरान, सबसे महत्वपूर्ण सर्विस प्रोवाइडर्स यानी स्वास्थ्य सेवाओं के सदस्यों के साथ कई ऐसी घटनाएं को देखते हुए दी गई है जिसमें उन्हें निशाना बनाया गया और शरारती तत्वों द्वारा हमले भी किए गए, साथ ही ऐसा कर उन्हें उनके कर्तव्यों को पूरा करने से भी रोका जा रहा। 



किन “हेल्थकेयर सेवा कर्मियों” को किया जाएगा शामिल?

इसमें हेल्थकेयर सेवा कर्मियों, जिसमें पब्लिक और क्लीनिकल हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल वर्कर और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता; ऐक्ट के तहत बीमारी के प्रकोप या प्रसार को रोकने के लिए काम करने वाला अधिकार प्राप्त कोई अन्य व्यक्ति; और आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा राज्य सरकार द्वारा घोषित ऐसे व्यक्ति शामिल हैं।


महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन का उद्देश्य:

महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन करने वाले इस अध्यादेश में ऐसी हिंसा की घटनाओं को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध घोषित किया गया और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मौजूदा महामारी के दौरान किसी भी स्थिति में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा और संपत्ति को लेकर जीरो टॉलरेंस होगा। उपरोक्त संदर्भ में, इस अध्यादेश में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को चोट लगने या नुकसान या संपत्ति का नुकसान शामिल है, जिसमें महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का सीधा हित जुड़ा हो सकता है।

उल्लंघन करने वालों को सजा:

यह संशोधन हिंसा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाता है। हिंसा के ऐसे कृत्यों को करने या उसके लिए उकसाने पर तीन महीने से लेकर 5 साल तक की जेल और 50 हजार रुपये से लेकर 2 लाख तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। गंभीर चोट पहुंचाने के मामले में कारावास की अवधि 6 महीने से लेकर 7 साल तक होगी और एक लाख से 5 लाख रुपये तक जुर्माना देना होगा। इसके अलावा, पीड़ित की संपत्ति को हुए नुकसान पर अपराधी को बाजार मूल्य का दोगुना हर्जाना भी देना होगा।
इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी द्वारा 30 दिनों के भीतर अपराधों की जांच की जाएगी और सुनवाई एक साल में पूरी होनी चाहिए जबतक कि कोर्ट द्वारा लिखित रूप में कारण बताते हुए इसे आगे न बढ़ाया जाए।

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