केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में हाल ही में दुनिया का ताड़ के पत्तों का पहला पांडुलिपि संग्रहालय खोला गया है, जिससे राज्य सांस्कृतिक और शैक्षणिक रूप से और अधिक समृद्ध हुआ है। यह संग्रहालय भारत की धरती पर यूरोपीय शक्तियों को हराने वाले एशिया के पहले साम्राज्य त्रावणकोर की लोकप्रिय कहानियों का खजाना समेटे हुए है। दुनिया के पहले, ताड़ के पत्तों वाले पांडुलिपि संग्रहालय की उपलब्धि पाने वाले इस संस्थान में, 19वीं सदी के आखिर तक लगभग 650 बरस राज करने वाले त्रावणकोर साम्राज्य के प्रशासनिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं के साथ-साथ राज्य के मध्य में कोच्चि की सीमाओं और आगे उत्तर में मालाबार की झलक मिलती है।
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यह संग्रहालय राज्य की सांस्कृतिक संपदा बढ़ाने के अलावा शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक विद्वानों के लिए भी महत्वपूर्ण है। संग्रहालय में पांडुलिपियों के अलावा कोलाचेल के प्रसिद्ध युद्ध की भी जानकारी उपलब्ध है, जिसमें त्रावणकोर के वीर राजा अनिजाम तिरुनल मार्तंड वर्मा (1729-58) ने डच ईस्ट इंडिया कंपनी को पराजित किया था। कोलाचेल वर्तमान में तमिलनाडु के कन्याकुमारी से 20 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। सन् 1741 में त्रावणकोर के राजा की जीत से डच का भारत में विस्तार रुक गया और मार्तंड वर्मा के राज में त्रावणकोर एशिया का पहला ऐसा राज्य बन गया, जिसने किसी यूरोपीय ताकत की विस्तारवादी सोच को रोका हो।
पिछले सप्ताह खुले इस संग्रहालय में 187 पांडुलिपियां हैं, जो प्राथमिक स्रोतों पर आधारित कहानियों की खान हैं। ये दस्तावेज ताड़ के साफ और स्पष्ट पत्तों पर लिखे गए हैं, जो रिकॉर्ड कक्षों के कोनों पर सुसज्जित हैं। उस दौर में विवरण लिखने से पहले ताड़ के इन पत्तों को उपचारित किया गया था। पहले चरण में पूरे राज्य से इकट्ठे किए गए 1.5 करोड़ ताड़ के पत्तों के विशाल भंडार से छंटाई करने के बाद यह अभिलेख सामग्री चुनी गई थी। संग्रहालय में बांस की खपच्चियां और तांबे की प्लेटें भी हैं। यह संग्रहालय तीन सौ साल पुरानी इमारत में स्थित है।
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