विश्व मैंग्रोव दिवस, जो हर वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय जागरूकता दिवस है जिसका उद्देश्य मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ावा देना है। यूनेस्को द्वारा 2015 में आधिकारिक मान्यता प्राप्त यह दिवस, मैंग्रोव वनों के विशाल पारिस्थितिक मूल्य की याद दिलाता है — ये तटीय आपदाओं से प्राकृतिक ढाल की तरह काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करते हुए कार्बन सिंक की भूमिका निभाते हैं। चिंता की बात यह है कि 1980 के बाद से दुनिया के लगभग आधे मैंग्रोव वन नष्ट हो चुके हैं, जिससे इनका संरक्षण और पुनर्स्थापन अब पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है।
मैंग्रोव एक विशेष प्रकार के वृक्ष और झाड़ियाँ होती हैं, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नमकीन या खारे पानी वाले तटीय क्षेत्रों में उगती हैं। इनकी जटिल जड़ प्रणालियाँ इन्हें अत्यधिक लवणता, ऑक्सीजन की कमी और नियमित ज्वार-भाटे जैसी कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम बनाती हैं। दुनिया भर में लगभग 110 प्रजातियाँ मैंग्रोव की पाई जाती हैं। इन वृक्षों की विशेष संरचना तटों को कटाव से बचाने और जलीय जीवों के प्रजनन स्थल प्रदान करने में सहायक होती है।
विश्व मैंग्रोव दिवस को यूनेस्को द्वारा जुलाई 2015 में अपनी महासभा के दौरान घोषित किया गया था। यह दिन कोलंबियाई पर्यावरणविद गुइलेर्मो कैनो इसाज़ा की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने मैन्ग्रोव वनों की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवाए थे। इस दिवस की शुरुआत, मैंग्रोव वनों की तेज़ी से हो रही कटाई — जो मुख्यतः जलीय कृषि, शहरीकरण और लकड़ी की कटाई के कारण हो रही थी — के प्रति वैश्विक चिंता के रूप में हुई थी। इसका उद्देश्य लोगों में जागरूकता फैलाना, स्थानीय स्तर पर संरक्षण कार्यों को प्रेरित करना, और वैश्विक नीतियों को प्रोत्साहित करना है, जिससे मैन्ग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा:
मैंग्रोव पेड़ सुनामी, तूफान और ज्वार की लहरों से रक्षा करने वाली प्राकृतिक दीवार की तरह काम करते हैं। उदाहरणस्वरूप, तमिलनाडु का एक गांव 2004 की सुनामी के दौरान लगभग सुरक्षित रहा क्योंकि उसके चारों ओर घने मैन्ग्रोव थे।
‘ब्लू कार्बन’ भंडारण:
मैंग्रोव वन एक हेक्टेयर में उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में पांच गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड संग्रहित करते हैं। ये जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं।
जैव विविधता के केंद्र:
इनकी जटिल जड़ प्रणाली मछलियों, केकड़ों, झींगों, घोंघों और यहां तक कि बाघों और मगरमच्छों जैसे संकटग्रस्त जीवों के लिए आदर्श प्रजनन स्थल है।
आजीविका का साधन:
स्थानीय समुदायों को शहद, रेशम और समुद्री भोजन जैसे संसाधन मैन्ग्रोव से प्राप्त होते हैं जिन्हें स्थायी और जिम्मेदार तरीके से संग्रह किया जा सकता है।
झींगा पालन और जलीय कृषि:
झींगा तालाब बनाने के लिए मैंग्रोव की कटाई होती है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता गिरती है और रासायनिक प्रदूषण होता है।
ईंधन और लकड़ी के लिए कटाई:
मैंग्रोव लकड़ी निर्माण और ईंधन के लिए कीमती मानी जाती है, जिससे अवैध कटाई आम हो गई है।
शहरीकरण और बुनियादी ढांचा:
नदी मोड़ना, सड़क निर्माण और औद्योगिक परियोजनाएँ मैंग्रोव के प्राकृतिक आवास को नष्ट करती हैं।
जलवायु परिवर्तन:
समुद्र स्तर में वृद्धि और लवणता में बदलाव से मैंग्रोव का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है।
मैंग्रोव पौधा लगाएँ:
यदि आप तटीय क्षेत्र में रहते हैं या जा रहे हैं, तो स्थानीय प्रजातियों का पौधारोपण करें।
शिक्षा और जागरूकता फैलाएँ:
स्कूलों, कॉलेजों या सोशल मीडिया पर मैंग्रोव की महत्ता पर कार्यक्रम आयोजित करें।
हरित आजीविका का समर्थन करें:
स्थायी रूप से एकत्रित शहद, मछली जैसे उत्पादों को बढ़ावा दें और स्थानीय व्यापार को समर्थन दें।
जलवायु के प्रति सजग बनें:
प्लास्टिक कम करें, पैदल चलें या साइकिल का प्रयोग करें, ताकि समुद्री पारिस्थितिकी की रक्षा हो सके।
प्राचीन इतिहास:
मैंग्रोव के जीवाश्म बताते हैं कि ये 7.5 करोड़ साल पहले भी अस्तित्व में थे।
सुनदर्शन – विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन:
पश्चिम बंगाल स्थित यह वन यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
लवण निस्सारण क्षमता:
मैंग्रोव पेड़ पत्तियों या छाल के माध्यम से अतिरिक्त नमक बाहर निकाल देते हैं।
ऑक्सीजन प्रदाता:
कठिन परिस्थितियों के बावजूद ये पेड़ ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और वायु की गुणवत्ता सुधारते हैं।
कोरल के मित्र:
मैंग्रोव गाद को छानकर और कोरल के बच्चों को आश्रय देकर कोरल को सफेद होने से बचाते हैं।
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