विश्व कुष्ठ दिवस या विश्व कुष्ठ उन्मूलन दिवस हर साल कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। यह दिन दुनियाभर में जनवरी के चौथे रविवार को मनाया जाता है। इसी क्रम में इस साल यह दिवस 29 जनवरी को मनाया जा रहा है, लेकिन भारत में इस दिन को 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के साथ मनाता है। इस दिन को मनाने के शुरुआत साल 1954 में राउल फोलेरो ने की थी। उन्होंने यह दिन गांधी जी को समर्पित किया था।
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दरअसल, गांधी जी कुष्ठ रोगियों के प्रति दया और स्नेह का भाव रखते हैं। यही वजह थी उन्होंने कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सफल प्रयास किया था। उनके इसी प्रयास को ध्यान में रखते हुए भारत में 30 जनवरी को कुष्ठ रोग दिवस मनाया जाता है।
कुष्ठ एक संक्रामक बीमारी है, जिसकी वजह से त्वचा, श्वसन तंत्र, आंखें और तंत्रिकाएं काफी प्रभावित होती हैं। यह रोग विशेष रूप से आपकी त्वचा, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर की नसों को प्रभावित करता है, जिसे परिधीय तंत्रिकाएं कहा जाता है। यह बीमारी मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक बैक्टीरिया के चलते होती है। कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों में इसके मुख्य लक्षणों के रूप में त्वचा में घाव, गांठ आदि दिखाई दे सकते हैं। ये लक्षण कई हफ्तों या महीनों तक रह सकते हैं। त्वचा के यह घाव फीके रंग के दिखते हैं।
कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति में इसके कुछ सामान्य लक्षण नजर आने लगते हैं। इन लक्षणों में कमजोर मांसपेशियां, त्वचा पर दानेदार उभार, उंगलियों के पोरों का सुन्न होना और त्वचा पर घाव होना प्रमुख है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को हुए यह घाव आसानी से ठीक नहीं होते। इस बीमारी के होने पर अगर सही समय पर इलाज न किया जाए, तो इससे कुष्ठ रोग आपकी त्वचा, नसों, हाथ, पैर और आंखों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है। साथ ही गंभीर स्थिति में किडनी खराब, बांझपन, ग्लूकोमा आदि भी हो सकते हैं।
इस दिन की शुरुआत 1954 में फ्रांसीसी परोपकारी और लेखक, राउल फोलेरो (Raoul Follereau) ने महात्मा गांधी के जीवन को श्रद्धांजलि के रूप में की थी, जो कुष्ठ से पीड़ित लोगों के लिए करुणा रखते थे।
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