महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित कास पठार इन दिनों फिर चर्चा में है। इसका कारण अगरकर अनुसंधान संस्थान, पुणे की ताजी रिसर्च है. यह शोध भारत के ग्रीष्मकालीन मानसून के बदलाव पर केंद्रित है। शोध में अनेक संकेत मिले हैं, जो मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ताजी रिसर्च अतीत और भविष्य को समझने में भी मददगार है।
कास पठार सातारा से 25 किलोमीटर, महाबलेश्वर से 37 किलोमीटर और पंचगनी से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक बहुत ही मनोरम स्थान है। इसकी नेचुरल ब्यूटी और जैव विविधता के मद्देनजर साल 2012 में यूनेस्को ने इसे विश्व प्राकृतिक विरासत स्थल घोषित किया था। पुणे से करीब 140 किलोमीटर दूर स्थित इस पठार में अगस्त और सितंबर के महीने में शानदार फूल खिलते हैं। यहां फूलों की आठ सौ से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। यह पठार लगभग एक हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान के रूप में स्थापित अगरकर रिसर्च संस्थान पृथ्वी विज्ञान केंद्र, तिरुवनंतपुरम के साथ मिलकर कास पठार में पिछले समय के जलवायु को समझने के लिए यहां स्थित एक झील की तलछट को अपने शोध का केंद्र बिंदु बनाया। इसमें आठ हजार सालों तक फैली तलछट प्रोफाइल की डेटिंग शामिल थी। इसी डेटिंग ने जलवायु परिवर्तन के अनेक संकेत दिए हैं।
कास पठार, कोयना वन्यजीव अभयारण्य से सटा हुआ है। यहां बेहद खूबसूरत झील भी है। इस पठार में बमुश्किल तीन-चार सेमी पतली मिट्टी है। उसके नीचे पत्थर है। यहां बारिश खूब होती है। भीड़ को देखते हुए सरकार ने यहां तीन हजार रोज की संख्या तय कर दी है। यहां पाए जाने वाले फूल और अन्य प्रजाति के पौधे बहुत मूल्यवान हैं। इसे फूलों की घाटी नाम से भी जाना जाता है। इस पठार और कास झील में बहुत सी ऐसी वनस्पतियां हैं, जो कहीं और नहीं पाई जातीं। बड़ी संख्या में वनस्पति विज्ञानी यहां देखे जाते हैं। पर्यटन की दृष्टि से यहां सितंबर-अक्तूबर सर्वोत्तम माना जाता है।
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