डीएनए, या डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic Acid), एक विशेष अणु है जो सभी जीवित प्राणियों में पाया जाता है। यह वह अणु है जो प्रत्येक पौधे, पशु और मानव को विशिष्ट बनाता है। डीएनए में वे निर्देश या सूचना होती हैं जो किसी जीव के निर्माण और कार्य को नियंत्रित करती हैं। डीएनए की खोज की कहानी लगभग 150 वर्ष पहले एक स्विस वैज्ञानिक फ्रेडरिक मीज़र (Friedrich Miescher) से शुरू हुई और आगे चलकर अनेक वैज्ञानिकों ने इसके ढांचे और महत्व को समझाया।
साल 1869 में स्विस जीवविज्ञानी योहान्स फ्रेडरिक मीज़र ने सबसे पहले डीएनए की खोज की। जर्मनी के ट्यूबिंगन में एक प्रयोगशाला में काम करते हुए उन्होंने अस्पताल की पट्टियों (bandages) से सफेद रक्त कणों का अध्ययन किया। इसी दौरान उन्होंने कोशिकाओं के नाभिक (nucleus) में एक अजीब पदार्थ पाया जो फॉस्फोरस से भरपूर था। उन्होंने इसे “न्यूक्लिन (nuclein)” नाम दिया — जो आज हम डीएनए के रूप में जानते हैं।
उस समय वैज्ञानिक यह नहीं समझ पाए कि मीज़र की खोज कितनी महत्वपूर्ण थी। उन्हें यह ज्ञान नहीं था कि यही पदार्थ आनुवंशिक जानकारी (genetic information) वहन करता है।
फ्रेडरिक मीज़र का जन्म 13 अगस्त 1844 को स्विट्जरलैंड में हुआ था। उनका परिवार वैज्ञानिक पृष्ठभूमि वाला था — उनके पिता और चाचा दोनों शरीर रचना विज्ञान (anatomy) के प्रोफेसर थे। मीज़र ने चिकित्सा (medicine) की पढ़ाई की, लेकिन श्रवण समस्या (hearing problem) के कारण उन्होंने डॉक्टर बनने के बजाय अनुसंधान का मार्ग चुना।
उन्होंने अत्यंत सावधानी से सफेद रक्त कोशिकाओं के नाभिक को अलग (isolate) किया और पाया कि न्यूक्लिन में फॉस्फोरस और नाइट्रोजन होते हैं, लेकिन सल्फर नहीं — यह विज्ञान में उस समय एक पूरी तरह नई खोज थी।
मीज़र की खोज के कई वर्षों बाद वैज्ञानिकों ने डीएनए पर अनुसंधान जारी रखा। 1953 में जेम्स वॉटसन (James Watson) और फ्रांसिस क्रिक (Francis Crick) ने डीएनए की “डबल हेलिक्स (Double Helix)” संरचना की खोज की — जो एक मुड़ी हुई सीढ़ी (twisted ladder) के समान होती है।
उनके मॉडल ने यह स्पष्ट किया कि डीएनए आनुवंशिक जानकारी को कैसे संग्रहीत और प्रतिलिपि (replicate) करता है।
इस खोज में एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक रोसालिंड फ्रैंकलिन (Rosalind Franklin) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने एक्स-रे विवर्तन (X-ray diffraction) तकनीक का उपयोग करके डीएनए की अत्यंत स्पष्ट तस्वीरें लीं। उनकी प्रसिद्ध “फोटो 51” से वॉटसन और क्रिक को डीएनए की वास्तविक संरचना समझने में मदद मिली। मॉरिस विल्किन्स (Maurice Wilkins) ने भी इस शोध में सहयोग किया।
साल 1962 में वॉटसन, क्रिक और विल्किन्स को फिजियोलॉजी या मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, डीएनए की संरचना की खोज के लिए। दुर्भाग्यवश, उस समय तक रोसालिंड फ्रैंकलिन का निधन हो चुका था, इसलिए उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिल सका — हालांकि उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था।
मीज़र की खोज को उनके जीवनकाल में पूरी तरह समझा नहीं गया, परंतु उनकी खोज ने आधुनिक आनुवंशिकी (modern genetics) की नींव रखी। आज उनके सम्मान में दो अनुसंधान संस्थान कार्यरत हैं —
फ्रेडरिक मीज़र प्रयोगशाला (Friedrich Miescher Laboratory), ट्यूबिंगन
फ्रेडरिक मीज़र इंस्टीट्यूट फॉर बायोमेडिकल रिसर्च (Friedrich Miescher Institute for Biomedical Research), बेसल
उनका कार्य यह साबित करता है कि कभी-कभी सबसे गहरी खोजें शांत प्रयोगशालाओं में जन्म लेती हैं, जो आने वाले समय में जीवन के रहस्यों को उजागर करती हैं।
[wp-faq-schema title="FAQs" accordion=1]मिजोरम के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ अधिवक्ता स्वराज कौशल का 4 दिसंबर 2025 को 73…
भारत विश्व की कुल जैव विविधता का लगभग 8% हिस्सा अपने भीतर समेटे हुए है।…
भारत में आधार का उपयोग लगातार तेजी से बढ़ रहा है। नवंबर 2025 में, आधार…
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने 3 दिसंबर 2025 को घोषणा की कि फ्लिपकार्ट के वरिष्ठ…
पूर्वोत्तर भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण…
भारत की समृद्ध धरोहर, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक विविधता हर वर्ष लाखों यात्रियों को आकर्षित…