पश्चिम बंगाल ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। राज्य के सात पारंपरिक उत्पादों को हाल ही में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त हुआ है, जिनमें प्रसिद्ध नोलें गुड़र संदेश और बारुईपुर अमरूद शामिल हैं। इस मान्यता से इन पारंपरिक वस्तुओं को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी, जिससे राज्य की स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा और इसकी सांस्कृतिक पहचान और सशक्त होगी।
नवप्राप्त GI टैग से सम्मानित उत्पादों में नोलें गुड़ से बना संदेश, कामारपुकुर का सफेद बोंदे जैसी क्षेत्रीय मिठाइयाँ, कृषि उत्पाद, वस्त्र और हस्तशिल्प शामिल हैं। यह पहल पश्चिम बंगाल द्वारा अपनी अनूठी पारंपरिक वस्तुओं को संरक्षित करने और उन्हें वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के निरंतर प्रयास का हिस्सा है। इन सात नए उत्पादों के साथ, राज्य में अब कुल 33 GI टैग प्राप्त वस्तुएँ हैं, जो खाद्य पदार्थों से लेकर वस्त्र कला और हस्तकला तक के विविध क्षेत्रों को समेटे हुए हैं।
GI टैग प्राप्त उत्पादों का विस्तृत विवरण – पश्चिम बंगाल
नोलें गुड़र संदेश
यह एक लोकप्रिय बंगाली शीतकालीन मिठाई है, जो छेना (फटे हुए दूध से) और नोलें गुड़ (खजूर के पेड़ का गुड़) से बनाई जाती है।
नोलें गुड़ इस मिठाई को गाढ़ा, कारमेल जैसा स्वाद और सुनहरा रंग प्रदान करता है।
यह मिठाई बंगाल के घरों में सर्दियों के मौसम में खास स्थान रखती है।
गुड़ इसका मुख्य स्वाद घटक है — इसके बिना संदेश अपना विशिष्ट स्वाद खो देता है।
अन्य नवप्राप्त GI टैग वाले उत्पाद
कामारपुकुर का सफेद बोंदे
पारंपरिक मिठाई, जो इस क्षेत्र की विशिष्ट पहचान है।
मुर्शिदाबाद का छानाबोरा
छेना से बना एक प्रसिद्ध बंगाली मिष्ठान्न, जो स्वाद और बनावट के लिए जाना जाता है।
बिष्णुपुर का मोतीचूर लड्डू
यह क्षेत्र अपने खास स्वाद वाले लड्डुओं के लिए प्रसिद्ध है।
राधुनिपागल चावल
यह चावल अपनी अनोखी खुशबू, स्वाद और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
मालदा का निस्तारी रेशम यार्न
यह रेशमी धागा चिकनाहट और चमक के लिए प्रसिद्ध है, जो खास तौर पर मालदा में उत्पादित होता है।
GI टैग के प्रभाव
इन उत्पादों को वैश्विक मंच पर पहचान मिलेगी और ये घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में नई संभावनाएं खोलेंगे।
इससे कारीगरों, किसानों और लघु उद्योगों को आर्थिक मजबूती मिलेगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
GI टैग यह सुनिश्चित करता है कि इन उत्पादों का नाम क्षेत्र विशेष से बाहर कोई और नहीं इस्तेमाल कर सकता, जिससे ब्रांड की मौलिकता बनी रहती है।
मिठाई निर्माताओं की चुनौतियाँ
नोलें गुड़र संदेश जैसे पारंपरिक मिष्ठानों की शेल्फ लाइफ सिर्फ 7–10 दिन होती है, जो इनके निर्यात में बड़ी बाधा है।
एयर कार्गो महंगा होने के कारण इन्हें विदेशों में भेजना मुश्किल और लागतपूर्ण होता है।
आधुनिक पैकेजिंग के बावजूद इन मिठाइयों की लंबी उम्र बनाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
प्रचार एवं जागरूकता प्रयास
FACSI (फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ कॉटेज एंड स्मॉल इंडस्ट्रीज) पारंपरिक उत्पादों को GI टैग दिलाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
मिष्टि उद्योग और बारुईपुर फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी जैसे संगठनों ने GI आवेदन के लिए पहल की है।
राज्य के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया है ताकि और भी क्षेत्रीय उत्पादों को GI टैग मिल सके।
भविष्य की योजनाएँ
राज्य सरकार अब शक्तिगढ़ का लंगचा, कृष्णनगर का स्वर पुरिया, राणाघाट का पंतुआ और मोगराहाट की सिल्वर क्राफ्ट जैसे उत्पादों के लिए भी GI टैग दिलाने की कोशिश में जुटी है।
श्री गुहा के अनुसार, ये उत्पाद केवल खाद्य या शिल्प वस्तुएँ नहीं हैं, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।
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