केरल के वायनाड जिले में जुलाई 2024 में विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलनों के कारण 200 से अधिक लोगों की जान जाने के बाद, संघीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने आपदा तैयारियों को मजबूत करने के लिए क्षेत्र में एक X-बैंड रडार लगाने की मंजूरी दी। भारी बारिश ने मुंडक्काई क्षेत्र के पास पंचिरिमट्टम के ऊपर एक विशाल भूस्खलन को जन्म दिया, जिससे तबाही बढ़ी।
विवरण
रडार कैसे काम करता है?
- रडार का अर्थ है ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग’।
- यह वस्तुओं का पता लगाने, दूरी, गति और विशेषताओं को मापने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करता है।
- एक ट्रांसमीटर एक सिग्नल को किसी वस्तु (जैसे, मौसम में बादल) की ओर भेजता है।
- यह सिग्नल वस्तु से परावर्तित होकर रडार के रिसीवर पर वापस आता है, जहां इसका विश्लेषण किया जाता है।
- यह प्रकार का रडार डॉप्लर प्रभाव का उपयोग करता है, जो कि उस स्थिति में तरंगों की आवृत्ति में परिवर्तन है जब स्रोत श्रोता के करीब या दूर जाता है।
- यह बादलों की गति, दिशा और गति को आवृत्ति परिवर्तनों के आधार पर ट्रैक करता है।
- यह वर्षा की तीव्रता को मापता है, जिससे हवा के पैटर्न और तूफानों की निगरानी होती है।
X-बैंड रडार
- X-बैंड विशेषताएँ: X-बैंड रडार 8-12 GHz रेंज में काम करता है, जिसमें तरंग दैर्ध्य 2-4 सेंटीमीटर होता है, जो छोटी तरंग दैर्ध्य का उपयोग कर उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेज प्रदान करता है।
- मौसम विज्ञान में उपयोग: ये रडार छोटे कणों, जैसे वर्षा की बूंदों या धुंध का पता लगाने में सक्षम होते हैं।
- सीमाएँ: X-बैंड रडार की रेंज छोटी होती है क्योंकि उच्च आवृत्ति की विकिरण तेजी से कमजोर होती है।
- वायनाड में उपयोग: यह मिट्टी की गति की निगरानी करेगा, जिससे भूस्खलनों की भविष्यवाणी में मदद मिलेगी।
भारत का रडार नेटवर्क
- भारत ने 1950 के दशक में मौसम रडार का उपयोग करना शुरू किया।
- पहला स्वदेशी X-बैंड रडार 1970 में नई दिल्ली में स्थापित किया गया।
- X-बैंड रडार नेटवर्क: भारत में तूफान और हवा का पता लगाने के लिए X-बैंड रडार का उपयोग किया जाता है। कुछ रडारों में दोहरी क्षमताएँ होती हैं।
- S-बैंड रडार: 2-4 GHz पर काम करते हैं और लंबी दूरी की पहचान के लिए उपयोग किए जाते हैं। पहला चक्रवात पहचानने वाला S-बैंड रडार 1970 में विशाखापत्तनम में स्थापित किया गया।
- रडार विस्तार: भारत ₹2,000 करोड़ की ‘मिशन मौसम’ योजना के तहत 56 अतिरिक्त डॉप्लर रडार स्थापित करने जा रहा है। इसमें 2026 तक 60 मौसम रडार शामिल हैं।
- उत्तर पूर्व रडार स्थापना: सरकार उत्तर पूर्वी राज्यों और हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिलों में मौसम पूर्वानुमान में सुधार के लिए 10 X-बैंड डॉप्लर रडार खरीद रही है।
NISAR: एक संयुक्त NASA-ISRO प्रोजेक्ट
- NISAR अवलोकन: NASA और ISRO NISAR उपग्रह (NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार) पर सहयोग कर रहे हैं, जो पृथ्वी की भूमि क्षेत्रों का रडार इमेजिंग का उपयोग करके मानचित्रण करेगा।
- L- और S-बैंड रडार: उपग्रह NASA का L-बैंड रडार (1.25 GHz, 24 cm) और ISRO का S-बैंड रडार (3.2 GHz, 9.3 cm) ले जाएगा, जिससे पृथ्वी पर प्राकृतिक परिवर्तनों का पता लगाया जा सकेगा।
- अपेक्षित लॉन्च: उपग्रह का लॉन्च 2025 में ISRO GSLV Mk II रॉकेट पर $1.5 बिलियन की कुल लागत पर किया जाएगा, जिसमें से अधिकांश निधि NASA द्वारा दी जाएगी।
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