केंद्र सरकार ने भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 15 दिसंबर 2025 को संसद में ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025‘ पेश किया। इस विधेयक का मकसद उच्च शिक्षा के नियमन, मान्यता और प्रशासन की मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह बदलना है। सरकार ने बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया है, जहां चर्चा के बाद अंतिम फैसला लिया जाएगा। इस विधेयक के तहत उच्च शिक्षा के लिए एक कानूनी आयोगबनाया जाएगा, जो नीति निर्धारण और समन्वय की सर्वोच्च संस्था होगी। यह आयोग सरकार को सलाह देगा, भारत को शिक्षा का वैश्विक केंद्र बनाने पर काम करेगा और भारतीय ज्ञान परंपरा व भाषाओं को उच्च शिक्षा से जोड़ेगा।
वर्तमान में भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र कई नियामक संस्थाओं द्वारा संचालित होता है, जिनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) प्रमुख हैं। यद्यपि प्रत्येक संस्था की अपनी विशिष्ट भूमिका है, लेकिन इनके अधिकार क्षेत्रों के आपसी टकराव के कारण नियामक व्यवस्था खंडित हो गई है। इससे एक ही संस्थान के लिए कई स्वीकृतियों की आवश्यकता, शैक्षणिक मानकों में असंगति और विश्वविद्यालयों पर अत्यधिक अनुपालन बोझ जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। VBSA विधेयक, 2025 का उद्देश्य एक एकीकृत और समन्वित नियामक ढाँचे के माध्यम से इन संरचनात्मक कमियों को दूर करना है।
यह विधेयक विश्वविद्यालयों को शिक्षण-अधिगम, अनुसंधान एवं नवाचार तथा शैक्षणिक शासन के क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने हेतु सक्षम बनाने का स्पष्ट लक्ष्य रखता है। इसके प्रमुख उद्देश्यों में नियामक कार्यों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना, स्पष्ट एवं समान शैक्षणिक मानक सुनिश्चित करना तथा उच्च शिक्षा के लिए एकीकृत शासन व्यवस्था विकसित करना शामिल है। विधेयक के उद्देश्य एवं कारणों का वक्तव्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के “हल्का लेकिन सख्त” नियामक ढाँचे के सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है, जिसका आशय नौकरशाही हस्तक्षेप को कम करते हुए मजबूत जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
शीर्ष छत्र आयोग
विधेयक के केंद्र में विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (VBSA) है, जो 12 सदस्यीय एक शीर्ष छत्र आयोग के रूप में कार्य करेगा और भारत में उच्च शिक्षा नियमन के लिए सर्वोच्च प्राधिकरण होगा।
VBSA में निम्नलिखित शामिल होंगे:
शिक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधि
राज्य उच्च शिक्षा संस्थानों से सदस्य
प्रतिष्ठित शिक्षाविद् एवं नीति विशेषज्ञ
यह संरचना केंद्र–राज्य समन्वय, अकादमिक विशेषज्ञता और नीति संतुलन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार की गई है।
कार्यात्मक स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए, विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (VBSA) के अधीन तीन अलग-अलग परिषदें गठित की जाएँगी, जिनमें प्रत्येक में अधिकतम 14 सदस्य होंगे:
1. विकसित भारत विनियमन परिषद (Regulatory Council)
2. विकसित भारत गुणवत्ता परिषद (Accreditation Council)
3. विकसित भारत मानक परिषद (Standards Council)
यह विधेयक उच्च शिक्षा के व्यापक दायरे को कवर करता है, जिनमें शामिल हैं:
छूट प्राप्त व्यावसायिक कार्यक्रम
कुछ पेशेवर पाठ्यक्रमों को इस विधेयक से बाहर रखा गया है और वे अपने मौजूदा नियामकों के अंतर्गत ही संचालित होते रहेंगे:
वास्तुकला के क्षेत्र में Council of Architecture पेशेवर मानकों के लिए उत्तरदायी बना रहेगा, हालांकि उसे नियामक शक्तियाँ प्राप्त नहीं होंगी।
1. मौजूदा नियामक संस्थाओं का एकीकरण
इस विधेयक के तहत UGC, AICTE और NCTE को समाप्त कर उनकी भूमिकाओं को एक एकीकृत ढांचे के अंतर्गत समाहित करने का प्रस्ताव है। इसका उद्देश्य है—
2. विनियमन और वित्त पोषण का पृथक्करण
यह एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधार है, जिसके तहत UGC से अनुदान वितरण की शक्तियाँ हटाई जाएंगी। नए तंत्र में—
यह व्यवस्था राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की उस सिफारिश के अनुरूप है, जिसमें विनियमन को वित्तीय नियंत्रण से अलग करने पर बल दिया गया है।
3. उच्च शिक्षा के वैश्वीकरण को बढ़ावा
विनियामक परिषद द्वारा—
यह प्रावधान भारत को एक वैश्विक शिक्षा केंद्र बनाने की दिशा में सहायक है।
4. प्रत्यायन (अक्रेडिटेशन) प्रणाली को सशक्त बनाना
प्रत्यायन परिषद एक आउटकम-आधारित प्रत्यायन ढांचा विकसित करेगी, जिससे ध्यान केंद्रित होगा—
इससे संस्थानों को प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं के बजाय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इस विधेयक में सशक्त प्रवर्तन प्रावधान किए गए हैं—
इन प्रावधानों का उद्देश्य उच्च शिक्षा में घटिया और अनैतिक प्रथाओं पर रोक लगाना है।
2018 के HECI विधेयक जैसे पूर्व सुधार प्रयासों की तरह, VBSA विधेयक को लेकर भी कुछ आपत्तियाँ सामने आई हैं—
हालाँकि, एक महत्वपूर्ण सुधार यह है कि तीनों परिषदों में राज्य प्रतिनिधित्व को अनिवार्य किया गया है, जिससे संघीय चिंताओं को आंशिक रूप से संबोधित किया गया है।
यदि इसे प्रभावी रूप से लागू किया गया, तो VBSA विधेयक—
साथ ही, संस्थागत स्वायत्तता, वित्त पोषण की स्पष्टता और केंद्र-राज्य संतुलन से जुड़े मुद्दों पर व्यापक हितधारक परामर्श के माध्यम से सावधानीपूर्वक समाधान आवश्यक होगा।
विजय दिवस, जिसे विक्ट्री डे या बिजॉय डिबोस भी कहा जाता है, भारत और बांग्लादेश…
भारत की प्रमुख आर्थिक नीति थिंक टैंक संस्था — नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च…
पर्यावरण-संवेदनशील अवसंरचना विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण…
देश की पारदर्शिता और जवाबदेही व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, कानून एवं न्याय…
केंद्र सरकार ने रवि रंजन को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का नया प्रबंध निदेशक (Managing…
वैश्विक मोटरस्पोर्ट तकनीक के क्षेत्र में भारत की मौजूदगी को बड़ी मजबूती मिली है, जब…