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पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रधान का निधन

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. देवेंद्र प्रधान का सोमवार को नई दिल्ली में एक संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे और अपने पीछे पत्नी और दो पुत्रों को छोड़ गए हैं। डॉ. प्रधान ने अपने अंतिम सांस अपने पुत्र और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के आधिकारिक आवास पर ली।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. देवेंद्र प्रधान का जन्म 16 जुलाई 1941 को हुआ था। उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त की और 1966 में एससीबी मेडिकल कॉलेज, कटक से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने तालचेर में एक मेडिकल अधिकारी के रूप में कार्यभार संभाला। हालांकि, सामाजिक सेवा और कृषि के प्रति उनके गहरे लगाव के कारण उन्होंने सरकारी सेवा छोड़कर जनकल्याण के कार्यों को अपना जीवन समर्पित कर दिया।

राजनीतिक सफर और योगदान

प्रारंभिक राजनीतिक करियर

डॉ. प्रधान भाजपा के ओडिशा में विस्तार के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक थे। उन्होंने 1983 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और उसी वर्ष तालचेर मंडल के अध्यक्ष बने, जहां वे 1985 तक कार्यरत रहे।

उनकी चुनावी राजनीति में शुरुआत 1984 में देवगढ़ लोकसभा सीट से हुई, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, वे राजनीति में सक्रिय रहे और 1985 में अविभाजित ढेंकानाल जिला भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।

ओडिशा भाजपा में नेतृत्व भूमिका

1988 से 1993 और फिर 1995 से 1997 तक वे लगातार तीन बार भाजपा के ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस दौरान, उन्होंने राज्य में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए व्यापक प्रयास किए।

चुनावी सफलता और मंत्री पद

1991 और 1996 के लोकसभा चुनावों में हार के बावजूद, 1998 के आम चुनावों में उन्होंने देवगढ़ संसदीय सीट से जीत दर्ज की। इस जीत के बाद, उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री बनाया गया।

1999 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने फिर से देवगढ़ सीट से जीत दर्ज की और वाजपेयी सरकार में सड़क परिवहन और कृषि मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी संभाली। उनके नेतृत्व में बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण और कृषि क्षेत्र को मजबूती देने की दिशा में महत्वपूर्ण नीतियां बनाई गईं।

बाद का राजनीतिक जीवन और मार्गदर्शक की भूमिका

2001-02 में वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने और पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी। हालांकि, 2004 के विधानसभा चुनाव में पल्लहारा सीट से हारने के बाद उनका सक्रिय चुनावी करियर समाप्त हो गया।

इसके बावजूद, वे ओडिशा भाजपा के लिए एक प्रमुख मार्गदर्शक बने रहे। उन्होंने एक मार्गदर्शक (Mentor) के रूप में पार्टी की नीतियों और रणनीतियों को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।

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