संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसका शीर्षक है — “ट्रेड एंड डेवेलपमेंट फोरसाइट्स 2025: अंडर प्रेशर – अनसर्टेनटी रीशेप्स ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स”। यह रिपोर्ट, अप्रैल 2025 तक के अद्यतन आँकड़ों पर आधारित है और वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और संभावित दिशा का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें विकास दरों, वित्तीय स्थितियों, व्यापार प्रवृत्तियों और विकास संबंधी चुनौतियों की समीक्षा की गई है। यह रिपोर्ट विशेष रूप से उन विद्यार्थियों और अभ्यर्थियों के लिए उपयोगी है जो UPSC, RBI ग्रेड B, SSC जैसे सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि यह उन्हें वैश्विक आर्थिक परिदृश्य की गहरी समझ प्रदान करती है।
वैश्विक विकास दर में मंदी
UNCTAD का अनुमान है कि 2025 में वैश्विक आर्थिक विकास दर घटकर 2.3% रह जाएगी, जो 2024 में 2.8% थी। यह गिरावट वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी (recession) की ओर ले जाने का संकेत है। यह दर 2.5% के उस स्तर से भी कम है, जिसे UNCTAD वैश्विक आर्थिक ठहराव (stagnation) का संकेतक मानता है।
इस मंदी के प्रमुख कारणों में शामिल हैं:
वैश्विक मांग में कमी
व्यापार बाधाओं (trade barriers) में वृद्धि
वित्तीय अस्थिरता और उथल-पुथल
क्षेत्रवार परिदृश्य
लैटिन अमेरिका, यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में आर्थिक विकास धीमा या ठहराव की स्थिति में रहेगा।
उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण और पूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों में घरेलू मांग और व्यापार की मजबूती के चलते अपेक्षाकृत बेहतर वृद्धि देखी जाएगी।
नीतिगत अनिश्चितता अपने उच्चतम स्तर पर
आर्थिक नीतियों में अनिश्चितता 21वीं सदी में अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गई है, जिसे Economic Policy Uncertainty Index के माध्यम से मापा गया है। इसका प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार विवाद हैं, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा नए टैरिफ (शुल्क) लागू करना और भूराजनीतिक तनावों का बढ़ना है।
व्यवसाय निवेश और भर्तियों को टाल रहे हैं क्योंकि भविष्य की नीति स्पष्ट नहीं है।
बार-बार नीति में बदलाव से दीर्घकालिक योजना बनाना कठिन हो गया है।
बाजार में भारी उतार-चढ़ाव और “डर सूचकांक”
UNCTAD ने VIX (Volatility Index) यानी “डर सूचकांक” के ज़रिए यह दिखाया है कि वित्तीय बाज़ार में अस्थिरता तेज़ी से बढ़ रही है। यह सूचकांक अब इतिहास में तीसरे सबसे ऊंचे स्तर पर है—यह स्तर केवल 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी और 2020 की महामारी संकट के समय पार हुआ था।
निवेशकों में वैश्विक मंदी को लेकर भारी चिंता है।
अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी और टैरिफ घोषणाओं ने बाजारों में बिकवाली और जोखिम से बचाव को बढ़ावा दिया है।
अनिश्चितता के समय में निवेशक पारंपरिक रूप से “सेफ हेवन” (सुरक्षित) संपत्तियों की ओर रुख करते हैं। परिणामस्वरूप:
सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं।
अमेरिकी डॉलर और ट्रेजरी बॉन्ड्स की मांग बहुत अधिक बनी हुई है, भले ही मौद्रिक नीतियों में ढील (rate cuts) के दौरान दीर्घकालिक ब्याज दरें बढ़ रही हों, जो एक असामान्य स्थिति है।
यह प्रवृत्ति दो प्रमुख कारणों से प्रेरित है:
केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की भारी खरीद।
निवेशकों की महंगाई और परिसंपत्तियों की अस्थिरता को लेकर चिंता।
हालांकि 2024 के अंत में यूरोप और अमेरिका के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती शुरू की, फिर भी दीर्घकालिक बॉन्ड यील्ड (Bond Yields) बढ़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि निवेशक अब अधिक “टर्म प्रीमियम” (लंबी अवधि के जोखिम के बदले अधिक रिटर्न) की मांग कर रहे हैं।
इससे वैश्विक ब्याज दरों पर दबाव बढ़ रहा है।
विकासशील देशों के लिए यह विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्हें सस्ता कर्ज मिलना मुश्किल हो रहा है और ऋण चुकाने की लागत भी बढ़ रही है।
विकासशील देशों पर असर
अर्धे से अधिक निम्न-आय वाले देश या तो कर्ज संकट में हैं या इसके उच्च जोखिम में हैं।
वैश्विक वित्तीय परिस्थितियाँ सख्त होने के कारण, इन देशों को विकास परियोजनाओं की फंडिंग में कटौती करके ऋण चुकाने पर ध्यान देना पड़ रहा है।
वैश्विक व्यापार में अनिश्चितताओं के बावजूद कुछ रुझान सकारात्मक हैं:
साउथ-साउथ ट्रेड (विकासशील देशों के बीच व्यापार) लगातार बढ़ रहा है, जिसमें चीन अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
एशिया के भीतर व्यापार (Intra-Asian Trade) तेज़ी से बढ़ा है और यह वैश्विक आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभा रहा है।
2024 में, पूर्वी और दक्षिण एशिया ने वैश्विक आर्थिक वृद्धि में 40% से अधिक का योगदान दिया।
भारत को 2024 और 2025 में वैश्विक विकास के प्रमुख योगदानकर्ताओं में गिना गया है, चीन और इंडोनेशिया के साथ।
भारत की बढ़ती घरेलू मांग और क्षेत्रीय व्यापारिक साझेदारियों ने इसे वैश्विक बाजारों में एक मजबूत स्थान दिलाया है।
निर्यात प्रदर्शन और सेवाओं की मजबूती
भारत ने डिजिटल रूप से प्रदान की जाने वाली सेवाओं, विशेष रूप से आईटी (IT) और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की।
इन सेवाओं ने वैश्विक वस्तु व्यापार में आई गिरावट के प्रभाव को कम करने में मदद की।
मौद्रिक स्थिरता
भारत ने मुद्रास्फीति दर को अपेक्षाकृत स्थिर बनाए रखा।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने संतुलित मौद्रिक नीति अपनाई।
विदेशी मुद्रा भंडार और चालू खाता संतुलन (Current Account Balance) ने बाज़ार की स्थिरता और निवेशक विश्वास को बनाए रखा।
नीतिगत दिशा और वैश्विक स्थिति
भारत क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के माध्यम से अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है।
देश अपनी तकनीकी सेवाओं पर आधारित अर्थव्यवस्था और युवा कार्यबल का उपयोग कर वैश्विक आर्थिक प्रभाव बढ़ाने की दिशा में अग्रसर है।
2024 के अंत और 2025 की शुरुआत में वैश्विक व्यापार में जो थोड़ी वृद्धि देखी गई थी, वह टैरिफ बढ़ोतरी की आशंका में किए गए अग्रिम भंडारण (pre-emptive stockpiling) के कारण थी।
अप्रैल 2025 के बाद से, व्यापारिक तनाव के चलते वैश्विक व्यापार में तेज़ गिरावट दर्ज की गई है।
बाल्टिक ड्राई इंडेक्स (Baltic Dry Index) और शंघाई फ्रेट इंडेक्स (Shanghai Freight Index) जैसे संकेतक नीचे गए हैं, जो निम्न शिपिंग मांग और धीमे व्यापार की ओर इशारा करते हैं।
वस्तु व्यापार की तुलना में सेवा व्यापार ने मजबूती और लचीलापन (resilience) दिखाया है, विशेषकर डिजिटल क्षेत्रों में।
इंडोनेशिया और मॉरिशस जैसे विकासशील देशों ने कंप्यूटर और आईटी सेवाओं के निर्यात में मजबूत वृद्धि दर्ज की है।
चिली, अर्जेंटीना, और पेरू जैसे लैटिन अमेरिकी देशों ने सेवा निर्यात में 20% से अधिक वृद्धि दर्ज की है।
कई G7 देशों ने अपने राजकोषीय संसाधनों को सामाजिक क्षेत्रों से हटाकर रक्षा क्षेत्र में लगाने का फैसला किया है:
यूके ने घोषणा की है कि वह 2027 तक सैन्य खर्च को GDP का 2.5% तक बढ़ाएगा।
जर्मनी, फ्रांस और इटली भी अपने रक्षा बजट में वृद्धि कर रहे हैं।
यूरोपीय संघ (EU) ने €800 अरब का ‘री-आर्म यूरोप’ योजना शुरू की है, जिसमें रणनीतिक बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
यह प्रवृत्ति सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) — विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और जलवायु — पर वैश्विक प्रगति को प्रभावित कर सकती है।
2023 से 2025 के बीच विकासशील देशों को दी जाने वाली ODA में 18% की गिरावट की आशंका है।
आर्थिक अवसंरचना (infrastructure) के लिए सहायता घटी है, जबकि मानवीय सहायता बढ़ी है।
Programmable Aid, जो दीर्घकालिक योजनाओं के लिए आवश्यक है, उसमें भी भारी गिरावट आई है। इससे विकासशील देशों की दीर्घकालिक रणनीति बनाने और लागू करने की क्षमता सीमित हो गई है।
नवोदित बाजारों (emerging markets) में निजी पूंजी प्रवाह घट रहा है, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा नए टैरिफ की घोषणा के बाद।
फ्रंटियर मार्केट बॉन्ड्स की उपज (yield) लगभग 8% पर स्थिर हो गई है और अप्रैल 2025 के नीति परिवर्तनों के बाद 150 बेसिस पॉइंट्स और बढ़ गई है।
इससे विकासशील देशों पर ऋण भार और ब्याज भुगतान का दबाव और बढ़ गया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
अर्जेंटीना, मिस्र, नाइजीरिया और तुर्किये जैसे देश, हालिया सुधारों के बावजूद, गंभीर वित्तीय दबाव में हैं।
वैश्विक बॉन्ड यील्ड (Global Bond Yields) में वृद्धि के कारण विकासशील देशों को कर्ज लेने के लिए अधिक ब्याज दरें चुकानी पड़ रही हैं।
इससे इन देशों की सामाजिक और विकास कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध संसाधनों में कमी आ रही है।
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