महाराष्ट्र सरकार ने 29 अप्रैल 2025 को लंदन में हुई नीलामी में मराठा योद्धा रघुजी भोसले प्रथम की ऐतिहासिक तलवार को ₹47.15 लाख में खरीदा। यह तलवार मराठा वीरता और विरासत की प्रतीक है। इसे ‘फिरंगी’ शैली में बनाया गया है, जिसमें यूरोपीय प्रकार की एक धार वाली ब्लेड, सोने की सजावट, और देवनागरी लिपि में शिलालेख हैं। रघुजी भोसले प्रथम ने मराठा साम्राज्य को सुदृढ़ करने और पूर्व-मध्य भारत में उसका विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह ऐतिहासिक अधिग्रहण मराठा संस्कृति और धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
क्यों है यह खबर में?
मराठा साम्राज्य के प्रतिष्ठित योद्धा और नागपुर भोसले वंश के संस्थापक रघुजी भोसले प्रथम की तलवार को महाराष्ट्र सरकार ने लंदन में हुई एक नीलामी में ₹47.15 लाख में खरीदा है। यह तलवार मराठा विरासत का एक अहम प्रतीक मानी जाती है। महिला शैली की मूठ (हिल्ट) और सोने की कलाकृति से सजी यह तलवार ऐतिहासिक और औपचारिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
रघुजी भोसले की तलवार की विशेषताएं
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तलवार का प्रकार: बास्केट हिल्ट के साथ फिरंगी-शैली की तलवार
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ब्लेड की विशेषताएं: एक धार, थोड़ी मुड़ी हुई, दो फुलर (धार के साथ चलने वाली लंबी नालियां)
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हिल्ट (मूठ): महिला-शैली की मूठ, सोने की सजावट सहित
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शिलालेख: देवनागरी में लिखा है— “श्रिमंत रघुजी भोसले सेना साहेब सुबाह फिरंग”
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ऐतिहासिक महत्व: यह तलवार संभवतः छत्रपति शाहू महाराज द्वारा रघुजी भोसले को ‘सेना साहेब सुबाह’ की उपाधि मिलने पर उपहार स्वरूप दी गई थी।
नागपुर भोसले कौन थे?
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नागपुर भोसले परिवार एक शाही क्षत्रिय कुल था और मराठा साम्राज्य का प्रमुख अंग था।
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यह वंश उदयपुर के सिसोदिया राजपूतों का वंशज माना जाता है।
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यह ‘हिंगणिकर’ कुल से संबंधित था, जिनकी पैतृक जड़ें पुणे जिले से थीं।
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रघुजी भोसले प्रथम ने 1730 में अपने नेतृत्व को सुनिश्चित करके नागपुर भोसले वंश की स्थापना की।
रघुजी भोसले प्रथम की मराठा इतिहास में भूमिका
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पृष्ठभूमि: रघुजी भोसले प्रथम 1728 में छत्रपति शाहू महाराज के समर्थन से प्रमुखता में आए।
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प्रमुख उपलब्धियां:
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अपने चाचा कान्होजी भोसले के साथ पारिवारिक संघर्षों का सामना किया।
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बरार, गोंडवाना और ओडिशा पर मराठा नियंत्रण का विस्तार किया।
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1751 में नवाब अलीवर्दी खान के साथ हुई संधि के बाद ओडिशा की पुनः प्राप्ति में भूमिका निभाई।
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श्री जगन्नाथ मंदिर का पुनरुद्धार किया और तीर्थयात्रा व्यवस्था को बढ़ावा दिया।
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बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तक मराठा साम्राज्य का विस्तार किया।
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बंगाल में मराठा सैन्य अभियानों में योगदान दिया।
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तलवार भारत से कैसे बाहर गई?
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यह तलवार संभवतः 1817 की सिताबुल्दी की लड़ाई के बाद लूटी गई वस्तुओं में से थी, जब नागपुर भोसले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से हार गए थे।
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ब्रिटिश सेनाओं का नेतृत्व जनरल सर अलेक्जेंडर कैंपबेल ने किया था, जिन्होंने भोसले खजाने से अनेक वस्तुएं जब्त कीं।
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नागपुर स्थित भोसले महल को आग के हवाले कर दिया गया था और यह तलवार या तो लूट ली गई या फिर ब्रिटिश अधिकारियों को उपहार में दे दी गई।
सारांश / स्थिर जानकारी | विवरण |
क्यों है खबर में? | रघुजी भोसले की ऐतिहासिक तलवार की भारत वापसी |
तलवार की खरीद | महाराष्ट्र सरकार द्वारा लंदन की नीलामी में ₹47.15 लाख में खरीदी गई |
तलवार का प्रकार | फिरंगी शैली, बास्केट हिल्ट, सोने की सजावट सहित |
शिलालेख | “श्रिमंत रघुजी भोसले सेना साहेब सुबाह फिरंग” |
ऐतिहासिक महत्व | मराठा वीरता का प्रतीक; विरासत को संरक्षित करने हेतु अधिग्रहण |
रघुजी भोसले प्रथम कौन थे? | नागपुर भोसले वंश के संस्थापक; मराठा साम्राज्य का विस्तार किया |
मुख्य योगदान | साम्राज्य का विस्तार, जगन्नाथ मंदिर का पुनरुद्धार, सामरिक सैन्य विजय |