भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 19 मई 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों — स्थायी हों या अतिरिक्त — को पूर्ण पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त होंगे, चाहे उनकी नियुक्ति का समय या पदनाम कुछ भी रहा हो। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) को सुदृढ़ करता है और न्यायपालिका में सेवानिवृत्ति लाभों से जुड़ी असमानताओं को समाप्त करता है।
यह निर्णय राष्ट्रीय महत्व रखता है क्योंकि:
यह नियुक्ति की तारीख या स्थायी/अतिरिक्त न्यायाधीश की स्थिति के आधार पर पेंशन में हो रहे भेदभाव को समाप्त करता है।
बार (वकीलों) और ज़िला न्यायपालिका से आए न्यायाधीशों के सेवा और योगदान को समान रूप से मान्यता देता है।
संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी के लिए समानता के अधिकार को सुदृढ़ करता है।
उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति दो प्रकार से होती है: स्थायी और अतिरिक्त।
अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति अस्थायी कार्यभार की वृद्धि से निपटने के लिए की जाती है।
अब तक केवल स्थायी न्यायाधीशों को पूर्ण पेंशन का लाभ मिलता था।
सभी उच्च न्यायालय न्यायाधीशों को, चाहे वे अतिरिक्त रहे हों या स्थायी, पूर्ण पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त होंगे।
कोई भेद नहीं किया जाएगा:
नियुक्ति की तिथि के आधार पर
पद की प्रकृति (स्थायी या अतिरिक्त) के आधार पर
न्यायपालिका में प्रवेश के मार्ग (बार से या ज़िला न्यायपालिका से) के आधार पर
मृतक अतिरिक्त न्यायाधीशों के परिवारों को भी पूर्ण लाभ मिलेगा।
नई पेंशन योजना (NPS) के तहत आने वाले न्यायाधीशों को भी पूर्ण पेंशन दी जाएगी।
निर्णय अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) पर आधारित है।
अनुच्छेद 200 का भी उल्लेख किया गया, जो उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की पेंशन से संबंधित है।
पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को ₹15 लाख वार्षिक पेंशन मिलेगी।
अन्य उच्च न्यायालय न्यायाधीशों को ₹13.5 लाख वार्षिक पेंशन मिलेगी।
मामला: याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जो जिला न्यायपालिका से पदोन्नत हुए थे और एनपीएस के अंतर्गत आते थे उन्हें बार से सीधे पदोन्नत हुए न्यायाधीशों की तुलना में कम पेंशन मिल रही है।
निर्णय सुरक्षित किया गया: 28 जनवरी 2025
निर्णय सुनाया गया: 19 मई 2025
याचिकाकर्ताओं ने बार और ज़िला न्यायपालिका से आए न्यायाधीशों के बीच पेंशन में असमानता को चुनौती दी थी।
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