स्वतः संज्ञान: सुप्रीम कोर्ट के स्ट्रीट डॉग्स मामले की व्याख्या

भारत में अदालतें जनहित की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कई बार वे तब भी दखल देती हैं जब कोई औपचारिक याचिका दायर नहीं की गई होती—इसे स्वप्रेरणा से संज्ञान (Suo Moto Cognizance) कहते हैं। इसके तहत अदालतें स्वयं किसी मुद्दे पर कार्रवाई शुरू कर सकती हैं, खासकर तब जब मामला मौलिक अधिकारों या लोगों की सुरक्षा से जुड़ा हो।

हाल ही में इसका उदाहरण सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या पर उठाया गया कदम है। बच्चों पर बढ़ते हमलों की खबर पढ़ने के बाद अदालत ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लिया। इस लेख में इस अवधारणा को इसी मामले के जरिए समझाया गया है, जो परीक्षार्थियों के लिए उपयोगी है।

स्वप्रेरणा से संज्ञान क्या है?

Suo Moto लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है—“अपने ही बल पर”। भारतीय न्याय व्यवस्था में इसका मतलब है कि अदालत बिना किसी व्यक्ति या संस्था के पास आए, खुद ही कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकती है।

संविधान में यह शक्ति दी गई है—

  • अनुच्छेद 32 – सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए।

  • अनुच्छेद 226 – हाई कोर्ट को समान शक्तियां।

यह शक्ति प्रायः जनहित, मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण या सरकारी विफलताओं से जुड़े मामलों में इस्तेमाल की जाती है।

अदालतें यह शक्ति कब और क्यों इस्तेमाल करती हैं?

आमतौर पर अदालतें तब स्वप्रेरणा से संज्ञान लेती हैं जब—

  • कोई गंभीर सार्वजनिक समस्या हो, जिसे तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता हो।

  • प्रभावित लोग इतने कमजोर, गरीब या अनजान हों कि अदालत तक न पहुंच पाएं।

  • सरकारी या सार्वजनिक संस्थाओं को जवाबदेह ठहराना जरूरी हो।

उदाहरण के तौर पर, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए खुद मामला उठाया। पहले भी प्रदूषण, पुलिस हिरासत में मौत जैसे मामलों में यह शक्ति इस्तेमाल हुई है।

2025 का सड़क कुत्ता मामला: एक वास्तविक उदाहरण

28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने “City hounded by strays, kids pay price” शीर्षक वाली खबर पढ़ी, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के हमलों के बढ़ते मामलों और बच्चों को हो रहे नुकसान का उल्लेख था।

मामले की गंभीरता देखते हुए, अदालत ने खुद संज्ञान लिया और स्वप्रेरणा से मामला दर्ज किया। 11 अगस्त 2025 को इस पर विस्तृत आदेश जारी किया गया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश

अदालत ने दिल्ली सरकार और नगर निकायों को निर्देश दिए—

  • 8 सप्ताह में दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर हटाएं।

  • सभी कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी कर उन्हें आश्रयों में रखें, सड़कों पर न छोड़ें।

  • 1 सप्ताह में कुत्ता काटने की शिकायतों के लिए हेल्पलाइन शुरू करें।

  • सभी आश्रयों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं ताकि उचित देखभाल सुनिश्चित हो।

  • कार्रवाई में बाधा डालने वालों के खिलाफ कानूनी कदम उठाएं।

अदालत ने स्पष्ट किया कि लोगों—विशेषकर बच्चों—की सुरक्षा अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत आती है।

प्रतिक्रियाएं और विवाद

जहां कई नागरिकों ने इस आदेश का स्वागत किया, वहीं पशु कल्याण संगठनों ने इसे अवैज्ञानिक और अमानवीय बताया। उनका कहना था कि सड़कों से कुत्तों को पूरी तरह हटाना अन्य समस्याएं पैदा कर सकता है और यह पशु संरक्षण कानूनों का उल्लंघन है।

दिल्ली में प्रदर्शन हुए, कुछ कार्यकर्ताओं को कुत्ता पकड़ने की कार्रवाई रोकने पर हिरासत में लिया गया। मुख्य न्यायाधीश ने संकेत दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो आदेश की समीक्षा की जा सकती है।

यह मामला परीक्षार्थियों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है

  • स्वप्रेरणा से संज्ञान का वास्तविक उदाहरण।

  • संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 32 और 21) को जननीति और कानून-व्यवस्था से जोड़ता है।

  • अदालत द्वारा मानव सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन साधने का उदाहरण।

  • वर्तमान घटनाओं, विधिक जागरूकता और UPSC/न्यायिक परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न का स्रोत।

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vikash

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