वाराणसी में नदी संरक्षण हेतु भारत-डेनमार्क और IIT की अनूठी पहल

भारत और डेनमार्क की सरकारों के बीच हरित रणनीतिक साझेदारी से महत्वपूर्ण सहयोग को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वाराणसी में स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला (एसएलसीआर) की स्थापना हुई है।

यह गठबंधन भारत सरकार (जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान – बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (आईआईटी-बीएचयू) और डेनमार्क सरकार के बीच एक अनूठी त्रिपक्षीय पहल है, जिसका उद्देश्य छोटी नदियों के संरक्षण और प्रबंधन में उत्कृष्टता लाना है।

एसएलसीआर का उद्देश्य

एसएलसीआर का उद्देश्य दोनों देशों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर सतत दृष्टिकोण का उपयोग करके वरुणा नदी का संरक्षण करना है। इसके उद्देश्यों में सरकारी निकायों, ज्ञान संस्थानों और स्थानीय समुदायों के लिए अभिज्ञान साझा करने और स्वच्छ नदी जल के लिए समाधान विकसित करने के लिए एक सहयोगी मंच बनाना भी शामिल है। इस पहल में आईआईटी-बीएचयू में एक हाइब्रिड लैब मॉडल और वरुणा नदी पर ऑन-फील्ड लिविंग लैब की स्‍थापना शामिल है, ताकि वास्‍तविक रूप से परीक्षण और मानदंड समाधान किया जा सके। एसएलसीआर में एक सुदृढ़ संस्थागत और मूल्यांकन तंत्र बनाया गया है, ताकि इसके कामकाज में दृढ़ता और नदी प्रबंधन में उत्कृष्टता सुनिश्चित की जा सके।

इंडो-डेनमार्क संयुक्त संचालन समिति

इंडो-डेनमार्क संयुक्त संचालन समिति (जेएससी) एसएलसीआर के लिए सर्वोच्च मंच है जो रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करती है और प्रगति की समीक्षा करती है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी), आईआईटी-बीएचयू और डेनमार्क के शहरी क्षेत्र परामर्शदाता के सदस्यों वाली परियोजना समीक्षा समिति (पीआरसी) परियोजना स्तर पर गुणवत्ता नियंत्रण की देखरेख करेगी।

2-3 साल की परियोजना

प्रतिबद्धता में जल प्रबंधन के लिए निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) विकसित करना शामिल है, ताकि जल विज्ञान मॉडल, परिदृश्य निर्माण, पूर्वानुमान और डेटा विश्लेषण के माध्यम से बेसिन जल गतिशीलता का विश्लेषण किया जा सके। यह 2-3 साल की परियोजना भूजल और जल विज्ञान मॉडल को एकीकृत करके एक व्यापक नदी प्रबंधन योजना बनाएगी, जिसके प्रमुख परिणाम वास्तविक समय की निगरानी, ​​डेटा विज़ुअलाइज़ेशन टूल और परिदृश्य सिमुलेशन होंगे। निर्णय समर्थन प्रणाली समग्र योजना और प्रभावी जल प्रबंधन में सहायता प्रदान करेगा।

इस परियोजना का मुख्‍य उद्देश्य

दूसरी परियोजना उभरते प्रदूषकों और फिंगरप्रिंट विश्लेषण के लक्षण वर्णन पर केंद्रित है। अगले 18 महीनों में, यह पहल प्रदूषकों की पहचान और मात्रा निर्धारित करने के लिए क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी उन्नत विश्लेषणात्मक तकनीकों का उपयोग करेगी। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के नेतृत्व में, इस परियोजना का मुख्‍य उद्देश्य एक विस्तृत फिंगरप्रिंट लाइब्रेरी बनाना, जल गुणवत्ता निगरानी को बेहतर बनाना और प्रभावी उपचार रणनीतियों का प्रस्ताव करना है।

गणितीय मॉडलिंग का उपयोग

श्रृंखला की अंतिम परियोजना, रिचार्ज साइट्स के लिए वरुण बेसिन का हाइड्रोजियोलॉजिकल मॉडल, प्रबंधित जलभृत रिचार्ज (एमएआर) के माध्यम से आधार प्रवाह को बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। अगले 24 महीनों में, परियोजना इष्टतम रिचार्ज साइटों और दरों की पहचान करने के लिए उन्नत भूभौतिकीय तकनीकों और गणितीय मॉडलिंग का उपयोग करेगी। उद्देश्यों में हेलीबोर्न और फ्लोटेम डेटा को एकीकृत करना, जल संचयन प्रभावों के लिए परिदृश्य तैयार करना और सूचित निर्णय लेने और जल संसाधन अनुकूलन का समर्थन करने के लिए एक व्यापक नदी-जलभृत प्रवाह गतिशीलता मॉडल विकसित करना शामिल है।

स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला

स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला से यह अपेक्षा की जाती है कि यह अकादमिक जगत, उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सरकारों का एक अनूठा संगम होगा, जो सामान्य रूप से नदियों की स्‍वच्‍छता के मापदंड और विशेष रूप से छोटी नदियों के संरक्षण से संबंधित पहचानी गई समस्याओं और मुद्दों के लिए मिलकर समाधान तैयार करने के लिए दूसरे देश के साथ संयुक्‍त रूप से काम करेंगे।

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vikash

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