श्रीलंका आज पवित्र पोसन पोया (Poson Poya) पर्व मना रहा है, जो द्वीप राष्ट्र में बौद्ध धर्म के आगमन की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व जून माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इस दिन को विशेष इसलिए माना जाता है क्योंकि आज से लगभग 2,000 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक के पुत्र अरहत महिंदा ने मिहिंतले (Mihintale) में राजा देवनंपिय तिस्स (King Devanampiyatissa) को पहला उपदेश दिया था। इस पर्व पर श्रद्धालु मिहिंतले और अनुराधापुर जैसे पवित्र स्थलों पर एकत्र होते हैं। मंदिरों और सड़कों को रंग-बिरंगी लालटेन और सजावट से सजाया जाता है। पर्व को भक्ति, सांस्कृतिक प्रदर्शनों और विशेष यातायात व्यवस्थाओं के साथ मनाया जा रहा है।
समाचार में क्यों?
पोसन पोया 2025 आज पूरे श्रीलंका में श्रद्धा से मनाया जा रहा है। यह दिन अरहत महिंदा द्वारा दिया गया पहला बौद्ध उपदेश और श्रीलंका में बौद्ध धर्म के आगमन की स्मृति को चिह्नित करता है। राष्ट्रपति अनुर कुमार डिसानायके ने इस अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं और राष्ट्रीय एकता एवं आध्यात्मिक पुनरुत्थान का संदेश दिया। भारत के उच्चायोग द्वारा कोलंबो में भारतीय बौद्ध विरासत पर एक प्रदर्शनी आयोजित की गई है। मिहिंतले और अनुराधापुर की यात्रा हेतु तीर्थयात्रियों के लिए विशेष और नि:शुल्क रेल सेवाएं चलाई जा रही हैं।
ऐतिहासिक महत्व
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पोसन पोया 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व श्रीलंका में बौद्ध धर्म के आगमन की स्मृति में मनाया जाता है।
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अरहत महिंदा, जो सम्राट अशोक के पुत्र थे, मिहिंतले आए और राजा देवनंपिय तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
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मिहिंतले को श्रीलंका में बौद्ध धर्म की जन्मस्थली माना जाता है।
2025 में आयोजन की झलकियाँ
धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ प्रमुख रूप से इन स्थलों पर:
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मिहिंतले पर्वत
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पवित्र शहर अनुराधापुर
सजावट और व्यवस्थाएँ:
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सफेद कपड़े (सिल बैनर)
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लालटेन (वेसाक कुडु)
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रोशनी और दानशालाएँ (दानसाल)
विशेष सुविधाएँ
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मिहिंतले और अनुराधापुर के बीच नि:शुल्क शटल ट्रेनों की सेवा पोसन सप्ताह के दौरान।
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कोलंबो फोर्ट से अनुराधापुर के लिए विशेष रेलगाड़ियाँ तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु।
भारत की भागीदारी
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कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग द्वारा राष्ट्रीय संग्रहालय में भारतीय बौद्ध विरासत पर प्रदर्शनी आयोजित।
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यह भारत और श्रीलंका के साझे बौद्ध मूल्यों और सांस्कृतिक कूटनीति को मजबूत करता है।
राष्ट्रपति का संदेश
राष्ट्रपति अनुर कुमार डिसानायके ने इस अवसर पर बल दिया:
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राष्ट्रीय एकता
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नैतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान का मार्ग
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बौद्ध धर्म की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका
यह पर्व न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि भारत और श्रीलंका के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी जीवंत करता है।