श्रीलंका के वास्काडुवा में अशोक स्तंभ की प्रतिकृति का अनावरण किया गया

श्रीलंका के कालुतारा ज़िले स्थित प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर वास्काडुवा श्री सुभूति विहाराय में 21 जुलाई 2025 को अशोक स्तंभ की एक प्रतिकृति का अनावरण किया गया। यह पहल भारत और श्रीलंका के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो सम्राट अशोक के श्रीलंकाई बौद्ध धर्म में योगदान को मान्यता देती है। यह विकास क्षेत्र में बौद्ध विरासत और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत के निरंतर प्रयासों को भी दर्शाता है।

पृष्ठभूमि:

अशोक स्तंभ की प्रतिकृति की आधारशिला 28 जनवरी 2024 को भारत के उच्चायुक्त श्री संतोष झा और IBC (इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस) के महासचिव श्रद्धेय शार्टसे खेंसुर जांगचुप चोदेन रिनपोछे द्वारा रखी गई थी। इस परियोजना को तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु और लिंग रिनपोछे वंश के सातवें अवतार, महामहिम क्याबजे लिंग रिनपोछे द्वारा पूर्ण रूप से प्रायोजित किया गया। कोलंबो से मात्र 42 किलोमीटर दक्षिण में स्थित यह मंदिर भगवान बुद्ध के कपिलवस्तु अवशेषों को सुरक्षित रखता है और भारत-श्रीलंका बौद्ध सहयोग का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है।

अशोक स्तंभ का महत्व:

अशोक स्तंभ सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म में योगदान और भारत से बाहर बुद्ध के संदेश को फैलाने के उनके प्रयासों का कालातीत प्रतीक है। वास्काडुवे महिंदवंश महामहायक थेरो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि श्रीलंका में बुद्ध शासन (बुद्ध सासना) की स्थापना में अशोक के योगदान — विशेषकर उनके पुत्र अरहंत महिंद और पुत्री अरहंत संघमित्त के माध्यम से — को ऐतिहासिक रूप से कम आंका गया है। इस स्तंभ की स्थापना उनके श्रीलंका की बौद्ध सभ्यता को आकार देने में किए गए महान योगदान को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है।

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति पहलें:

अशोक स्तंभ का अनावरण भारत द्वारा साझा बौद्ध विरासत को बढ़ावा देने के व्यापक प्रयासों का एक हिस्सा है। प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

  • भारत सरकार द्वारा 2020 में घोषित 1.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि, जिसके अंतर्गत श्रीलंका के 10,000 बौद्ध मंदिरों और मठों को सौर विद्युतीकरण की सुविधा दी जा रही है।

  • वर्ष 2024 में पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके तहत प्राचीन ग्रंथों के पुनर्प्रकाशन और विद्वानों के बीच आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

  • अनुराधापुरा के पवित्र नगर परिसर (Anuradhapura Sacred City Complex) के संरक्षण और देवनीमोरी (गुजरात), सारनाथ और कपिलवस्तु जैसी जगहों से भारत के पवित्र अवशेषों के श्रीलंका में प्रदर्शन हेतु भारत का सहयोग।

  • भारत द्वारा हांगकांग में बुद्ध के पवित्र अवशेषों की नीलामी रोकने हेतु कूटनीतिक हस्तक्षेप, जो धार्मिक धरोहरों की सुरक्षा और पुनःप्राप्ति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

आध्यात्मिक और द्विपक्षीय प्रभाव:

वास्काडुवा श्री सुभूति विहाराय को इसके ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण चुना गया। यह मंदिर भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को संजोए हुए है और इसके प्रमुख महायक थेरो भारत-श्रीलंका बौद्ध एकता के प्रबल समर्थक हैं। अशोक स्तंभ की स्थापना दोनों देशों के हज़ारों वर्षों पुराने सभ्यतागत संबंधों को प्रतीकात्मक रूप से और सशक्त बनाती है। इस आयोजन में भारत और श्रीलंका के गणमान्य व्यक्तियों की भागीदारी ने बौद्ध संस्कृति के संरक्षण और उत्सव के प्रति साझा प्रतिबद्धता को उजागर किया।

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vikash

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