प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को अकबरपुर, अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मात्र दो वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी मां को खो दिया, जिसके बाद उनके पिता ने उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने 1929 में कोलकाता विश्वविद्यालय के विद्यासागर कॉलेज से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वे जर्मनी के फ्रेडरिक विलियम विश्वविद्यालय (बर्लिन) गए, जहां से उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएच.डी. पूरी की। उनकी शोध थीसिस भारत में नमक कराधान पर केंद्रित थी, जो महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और ‘कांग्रेस सोशलिस्ट’ पत्रिका के संपादक बने। 1936 में, वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के सचिव बने।
1940 में, उन्होंने युद्ध-विरोधी बयान देने के कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर दो साल की सजा काटी। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान वे एक प्रमुख भूमिगत नेता के रूप में उभरे। 1944 में, उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर किले में यातनाएं दी गईं, लेकिन 1946 में रिहा कर दिया गया।
उन्होंने समाज परिवर्तन के लिए “सप्त क्रांति” (सात क्रांतियाँ) की अवधारणा को आगे बढ़ाया, जो सामाजिक न्याय और समता पर केंद्रित थी।
स्वतंत्रता के बाद का राजनीतिक जीवन
स्वतंत्रता के बाद, डॉ. राम मनोहर लोहिया सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े और 1952 में इसे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) में विलय कर दिया। हालांकि, वैचारिक मतभेदों के कारण 1956 में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) की स्थापना की।
1962 में, उन्होंने फूलपुर सीट से जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन पराजित हुए। 1963 में, वे फर्रुखाबाद उपचुनाव जीतकर सांसद बने।
1967 में, उन्होंने भारतीय जनसंघ के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसी वर्ष, वे कन्नौज से सांसद चुने गए, लेकिन 12 अक्टूबर 1967 को उनका निधन हो गया।
मुख्य राजनीतिक विचारधारा और योगदान
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने आर्थिक समानता, जाति-आधारित आरक्षण और महिलाओं के अधिकारों की जोरदार वकालत की। वे वंशवादी राजनीति और शासन में विशेषाधिकारवाद के कट्टर विरोधी थे।
उन्होंने शक्ति के विकेंद्रीकरण और आत्मनिर्भर आर्थिक नीतियों को बढ़ावा दिया। उनके प्रसिद्ध नारे “रोटी, कपड़ा और मकान” ने आम जनता की बुनियादी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।
जयंती पर श्रद्धांजलि
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: डॉ. राम मनोहर लोहिया को एक दूरदर्शी नेता, प्रखर स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक के रूप में याद किया।
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भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा: लोहिया जी की राष्ट्र निर्माण, सामाजिक सशक्तिकरण और राजनीतिक पारदर्शिता में भूमिका की सराहना की।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह: उन्होंने महिला शिक्षा, सामाजिक समानता और राजनीतिक ईमानदारी में लोहिया जी के योगदान को उजागर किया।
विरासत
डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचार आज भी भारतीय राजनीति, विशेष रूप से समाजवादी और क्षेत्रीय आंदोलनों को प्रभावित करते हैं।
उनका सामाजिक न्याय, आर्थिक सशक्तिकरण और राजनीतिक सुधारों के लिए किया गया कार्य आधुनिक भारत में भी प्रासंगिक बना हुआ है।
उनके लेख और भाषण आज भी लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और शासन पर गहन दृष्टिकोण के लिए अध्ययन किए जाते हैं।
विषय | विवरण |
क्यों चर्चा में? | डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती पर स्मरण |
जन्म | 23 मार्च 1910, अकबरपुर, उत्तर प्रदेश |
शिक्षा | बी.ए., कलकत्ता विश्वविद्यालय; पीएच.डी., बर्लिन विश्वविद्यालय |
स्वतंत्रता आंदोलन | भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका, 1944 में गिरफ्तार |
राजनीतिक विचारधारा | समाजवाद, आर्थिक समानता, जाति-आधारित आरक्षण |
प्रमुख राजनीतिक भूमिका | कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य, बाद में सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) की स्थापना |
चुनाव में भागीदारी | 1962 में नेहरू से हारे (फूलपुर), 1963 में फर्रुखाबाद से जीते, 1967 में कन्नौज से सांसद बने |
योगदान | महिला अधिकारों, विकेंद्रीकरण और आत्मनिर्भरता की वकालत |
नारा | “रोटी, कपड़ा और मकान” |
श्रद्धांजलि | पीएम मोदी, जे.पी. नड्डा, अमित शाह ने उनकी विरासत को नमन किया |
निधन | 12 अक्टूबर 1967 |