RBI के टी रबी शंकर अंशकालिक सदस्य के रूप में 16वें वित्त आयोग में शामिल हुए

हाल की एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक घोषणा में, भारत के राष्ट्रपति ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर टी. रबी शंकर को 16वें वित्त आयोग (16th Finance Commission) का अंशकालिक सदस्य नियुक्त किया है। यह नियुक्ति अजय नारायण झा के स्थान पर की गई है, जिन्होंने व्यक्तिगत कारणों से पद से इस्तीफा दे दिया था। टी. रबी शंकर का कार्यकाल आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने तक या 31 अक्टूबर 2025 तक, जो भी पहले हो, जारी रहेगा।

क्यों है खबरों में?

टी. रबी शंकर की 16वें वित्त आयोग में नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब आयोग वर्ष 2026–2031 के लिए वित्तीय सिफारिशों को अंतिम रूप देने की तैयारी में है। केंद्रीय बैंकिंग और वित्तीय बाजारों में उनके गहन अनुभव से केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों की रूपरेखा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है।

मुख्य बिंदु

  • नियुक्त व्यक्ति: टी. रबी शंकर, डिप्टी गवर्नर, RBI

  • भूमिका: 16वें वित्त आयोग के अंशकालिक सदस्य

  • कार्यकाल: रिपोर्ट प्रस्तुत होने तक या 31 अक्टूबर 2025 तक (जो पहले हो)

  • स्थानापन्न: अजय नारायण झा (इस्तीफा दिया)

वित्त आयोग की पृष्ठभूमि

  • संवैधानिक निकाय: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठन

  • कार्य: केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे की सिफारिश करना

  • 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष: अरविंद पनगड़िया (पूर्व उपाध्यक्ष, नीति आयोग)

  • गठन की तिथि: 31 दिसंबर 2023

  • रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि: 31 अक्टूबर 2025

  • लागू अवधि: 1 अप्रैल 2026 से 31 मार्च 2031 तक

टी. रबी शंकर – प्रोफाइल अवलोकन

  • वर्तमान पद: डिप्टी गवर्नर, RBI (मई 2024 में पुनर्नियुक्त)

  • प्रारंभिक नियुक्ति: मई 2021

RBI में प्रमुख ज़िम्मेदारियाँ:

13 विभागों के प्रमुख, जैसे:

  • वित्तीय बाज़ार नियमन

  • फिनटेक

  • मुद्रा प्रबंधन

  • विदेशी मुद्रा

  • केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) का विकास

पूर्व पद:

  • कार्यकारी निदेशक, RBI (भुगतान प्रणाली, IT, जोखिम प्रबंधन)

  • IMF के सलाहकार (2005–2011) – ऋण बाज़ार और बांड प्रबंधन

  • IFTAS के चेयरमैन

शिक्षा:

  • जेएनयू (JNU) से अर्थशास्त्र में एम.फिल

महत्त्व

  • वित्त आयोग में तकनीकी विशेषज्ञता को मजबूती

  • वित्तीय संघवाद (Fiscal Federalism) पर संवाद को बल

  • मौद्रिक नीति और सार्वजनिक वित्तीय लक्ष्य के बीच संतुलन

  • कर वितरण (Tax Devolution) और केंद्र-राज्य वित्तीय नीतियों पर प्रभावी योगदान की संभावना

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vikash

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