भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2025–26 से प्रभावी होने वाले स्मॉल फाइनेंस बैंकों (SFBs) के लिए प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) मानदंडों में एक महत्वपूर्ण संशोधन की घोषणा की है। इस बदलाव का उद्देश्य ऋण दक्षता बढ़ाना, लक्षित ऋण को प्रोत्साहित करना, और वित्तीय समावेशन के बदलते परिदृश्य के अनुरूप SFBs की भूमिका को मजबूत करना है।
पृष्ठभूमि: वर्तमान PSL मानदंड
वर्तमान दिशा-निर्देश (27 नवंबर 2014 को जारी और 5 दिसंबर 2019 को अद्यतन):
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प्रत्येक SFB को अपने समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (ANBC) का 75% प्राथमिकता क्षेत्र में देना अनिवार्य है।
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इस 75% में से कम से कम 40% ANBC को RBI द्वारा निर्धारित उप-क्षेत्रों में (जैसे: कृषि, MSME, शिक्षा, आवास, कमजोर वर्ग) देना आवश्यक है।
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शेष 35% ANBC (या ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोज़र का ऋण समतुल्य) को SFB अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता के अनुसार किसी भी प्राथमिकता क्षेत्र में दे सकता है।
संशोधित PSL प्रावधान (वित्त वर्ष 2025–26 से)
1. कुल PSL दायित्व में कमी
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अब से SFBs के लिए PSL लक्ष्य को 75% से घटाकर 60% कर दिया गया है (ANBC या CEOBE में से जो अधिक हो)।
2. नई आवंटन रूपरेखा
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40% ANBC या CEOBE (जो अधिक हो) अभी भी अनिवार्य रूप से RBI द्वारा निर्दिष्ट प्राथमिकता उप-क्षेत्रों को दिया जाएगा।
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शेष 20% को बैंक अपनी प्रतिस्पर्धात्मक विशेषज्ञता के आधार पर किसी भी एक या अधिक प्राथमिकता उप-क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं।
यह परिवर्तन पूर्ववर्ती लचीलापन (35%) को घटाकर 20% कर देता है, जिससे SFBs का ध्यान मुख्य विकासात्मक क्षेत्रों पर केंद्रित रहेगा, जबकि उन्हें कुछ रणनीतिक स्वतंत्रता भी मिलेगी।
कानूनी आधार
यह निर्देश बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 22(1) के तहत RBI द्वारा जारी किए गए हैं, जो भारत में बैंकों को लाइसेंस देने और उनके कार्य संचालन को विनियमित करने का अधिकार देता है।
बदलाव के प्रभाव
1. लक्षित ऋण को प्रोत्साहन
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40% अनिवार्य आवंटन से SFBs का ध्यान छोटे किसानों, ग्रामीण क्षेत्रों और लघु उद्योगों पर बना रहेगा।
2. रणनीतिक ऋण अवसर
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शेष 20% लचीले हिस्से के माध्यम से SFBs उन क्षेत्रों में ऋण दे सकेंगे जहां उनकी पहुँच और विशेषज्ञता अधिक है।
3. जोखिम विविधीकरण और बैलेंस शीट प्रबंधन
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PSL दायित्व को 75% से घटाकर 60% करना, बैंकों को बेहतर बैलेंस शीट प्रबंधन और जोखिम विविधीकरण में मदद करेगा, साथ ही उनके विकासपरक उद्देश्यों से समझौता किए बिना।
यह संशोधन भारतीय SFBs के लिए संतुलित ऋण वितरण का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिसमें विकास, वित्तीय समावेशन, और बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता का समावेश होगा।