केंद्र सरकार ने हाल ही में राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया है जिसका उद्देश्य देश के मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को संशोधित करना है। प्रस्तावित विधेयक में इन नियुक्तियों के लिए जिम्मेदार चयन समिति की संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश को चयन पैनल से बाहर करना
विधेयक द्वारा प्रस्तावित उल्लेखनीय परिवर्तनों में से एक भारत के मुख्य न्यायाधीश को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों का निर्धारण करने वाली चयन समिति से हटाना है। इस बदलाव को पिछली व्यवस्था से विचलन के रूप में देखा जाता है और इसने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के निहितार्थों के बारे में चर्चा शुरू कर दी है।
चयन पैनल की नई संरचना
नए विधेयक में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार चयन पैनल में अब तीन सदस्य होंगे:
- प्रधानमंत्री: सरकार का मुखिया, कार्यकारी निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार।
- लोकसभा में विपक्ष के नेता: संसद के निचले सदन में विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक प्रमुख व्यक्ति।
- कैबिनेट मंत्री: सरकार के मंत्रिमंडल का एक सदस्य, जिसे विशिष्ट प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं।
पृष्ठभूमि:
विधेयक की शुरूआत मार्च में सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले के बाद हुई है, जिसका उद्देश्य चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वायत्तता सुनिश्चित करना है। इस फैसले से पहले, चुनाव आयोग में नियुक्तियाँ सरकार की सिफारिशों के आधार पर की जाती थीं और अंततः राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित की जाती थीं।
मार्च 2023 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया कि CEC और EC की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर की जाएगी। उनकी नियुक्तियों पर संसद द्वारा एक कानून बनाया जाता है। यह निर्णय नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली वर्ष 2015 की जनहित याचिका (PIL) से सामने आई थी।
आलोचना और प्रतिक्रिया
प्रस्तावित विधेयक की विभिन्न हलकों से आलोचना हुई है, जिसमें कांग्रेस पार्टी विशेष रूप से इसके विरोध में मुखर है। कांग्रेस ने इस विधेयक को चुनाव आयोग की स्वायत्तता को कम करने और इसे केवल प्रधान मंत्री द्वारा नियंत्रित उपकरण में बदलने का एक खुला प्रयास करार दिया है।
विधायी आशय
विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया। विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच उन्होंने यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया। यह चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्य संचालन की शर्तें अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है।
विधेयक में प्रमुख प्रावधानों में कहा गया है कि चयन समिति अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से रेगुलेट करेगी। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक जो पहले पूरा हो, रहेगा। चुनाव आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के समान होगा। विधेयक में कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त दोबारा नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।