राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस हर वर्ष 11 अप्रैल को भारत में मनाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभियान है जिसका उद्देश्य गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए मातृत्व स्वास्थ्य सेवा के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है।
यह दिन कस्तूरबा गांधी की जयंती को चिन्हित करता है, जो महात्मा गांधी की पत्नी थीं। यह उनके सम्मान में मनाया जाता है और यह दर्शाता है कि हर महिला को सम्मानपूर्वक, समुचित और समय पर स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिए।
हालाँकि भारत ने मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) को कम करने में काफी प्रगति की है, फिर भी ग्रामीण, जनजातीय और वंचित समुदायों की कई महिलाएँ आज भी गुणवत्तापूर्ण और समय पर देखभाल से वंचित हैं।
इसलिए, राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है:
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नीति-निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए
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सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए
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और सुरक्षित मातृत्व की आवश्यकता को समाज के हर हिस्से तक पहुँचाने के लिए।
यह दिन सुरक्षित मातृत्व को एक अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने की दिशा में एक सशक्त पहल है।
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस
मुख्य उद्देश्य
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मातृत्व स्वास्थ्य, अधिकारों और प्रजनन देखभाल के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाना
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गर्भावस्था से लेकर प्रसव और प्रसवोत्तर तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना
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सुरक्षित प्रसव और हस्तक्षेप के ज़रिए मातृ मृत्यु दर को रोकना
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कुपोषण से लड़ना, जो गर्भवती महिलाओं और भ्रूण विकास को प्रभावित करता है
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स्वास्थ्य साक्षरता और प्रजनन निर्णय क्षमता के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना
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हर प्रसव में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी की उपस्थिति को बढ़ावा देना
2025 की थीम
“स्वस्थ शुरुआतें, आशावान भविष्य”
उद्देश्य: गर्भावस्था की शुरुआत से ही सुलभ और गुणवत्तापूर्ण मातृत्व देखभाल को बढ़ावा देना ताकि माँ और शिशु दोनों के लिए सुरक्षित परिणाम सुनिश्चित किए जा सकें।
इतिहास
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2003 में व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (WRAI) द्वारा शुरू किया गया
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कस्तूरबा गांधी की 90वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है
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कस्तूरबा गांधी ने महिलाओं और बच्चों के जीवन सुधार के लिए प्रतिबद्धता दिखाई थी
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इसका उद्देश्य है मातृ मृत्यु दर को कम करना और महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की वकालत करना
सुरक्षित मातृत्व के 5 स्तंभ
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परिवार नियोजन – योजनाबद्ध गर्भधारण और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच
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गर्भावस्था देखभाल – माँ और भ्रूण की नियमित स्वास्थ्य जांच
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प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी की उपस्थिति – प्रत्येक प्रसव में कुशल चिकित्सकीय निगरानी
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आपातकालीन देखभाल – प्रसव के समय जटिलताओं में तुरंत चिकित्सा सहायता
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प्रसवोत्तर देखभाल – प्रसव के बाद माँ और नवजात के स्वास्थ्य का ध्यान रखना
भारत में सुरक्षित मातृत्व की चुनौतियाँ
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ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में सीमित स्वास्थ्य सुविधाएं
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प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी, जिससे प्रसव में जटिलताएँ बढ़ती हैं
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गरीबी और कुपोषण, जो गर्भावस्था को जोखिम में डालते हैं
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सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएं, जो स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में अड़चन बनती हैं
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स्वास्थ्य जागरूकता की कमी, खासकर मातृत्व और बाल देखभाल में
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आपातकालीन प्रसूति देखभाल की अनुपलब्धता
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प्रसवोत्तर उपेक्षा, जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और संक्रमण
सरकारी पहल
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जननी सुरक्षा योजना (JSY) – संस्थागत प्रसव के लिए आर्थिक सहायता
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प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) – निःशुल्क गर्भावस्था जांच
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पोशन अभियान – मातृ और बाल पोषण पर ध्यान
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लक्ष्य (LaQshya) – प्रसव कक्षों और मातृत्व ऑपरेशन थिएटरों की गुणवत्ता सुधार
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) – ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना
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मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम (MCTS) – गर्भवती महिलाओं और शिशुओं की निगरानी
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का महत्व
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मातृत्व स्वास्थ्य को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में स्थापित करता है
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सरकार, नागरिक समाज और समुदायों के सहयोग की माँग करता है
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महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों में निवेश को प्रोत्साहित करता है
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स्थायी विकास को बढ़ावा देता है – स्वस्थ माँ, स्वस्थ राष्ट्र
आगे का रास्ता – समग्र दृष्टिकोण
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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) को मजबूत बनाना
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गुणवत्ता आश्वासन – सम्मानजनक और वैज्ञानिक-आधारित देखभाल
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मानसिक स्वास्थ्य का समावेश, विशेषकर प्रसवोत्तर अवसाद के लिए
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सामुदायिक सहभागिता – परिवारों और स्थानीय नेताओं की भूमिका
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तकनीक का प्रयोग – टेलीमेडिसिन और मोबाइल स्वास्थ्य सेवाएं
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किशोरियों पर ध्यान – यौन व प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा
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डाटा-आधारित नीतियाँ – योजनाओं और सेवाओं को प्रभावी बनाना
मातृत्व स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अंतरविभागीय कारक
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जाति और जातीयता – वंचित महिलाएं भेदभाव का सामना करती हैं
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भौगोलिक असमानताएं – ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन व सुविधाएं नहीं
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कम साक्षरता दर – जागरूकता और निर्णय क्षमता प्रभावित होती है
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आर्थिक सीमाएं – गरीब महिलाओं के लिए पोषण व देखभाल कठिन
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लैंगिक भेदभाव – निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं
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जलवायु परिवर्तन – प्राकृतिक आपदाएं स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बाधित करती हैं
सारांश / स्थिर जानकारी | विवरण |
क्यों चर्चा में? | राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस 2025: तिथि, थीम, महत्व, चुनौतियाँ |
तिथि | 11 अप्रैल (हर वर्ष) |
महत्व | कस्तूरबा गांधी की जयंती; मातृत्व स्वास्थ्य देखभाल के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना |
आरंभकर्ता | व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (WRAI), वर्ष 2003 में |
2025 की थीम | “स्वस्थ शुरुआतें, आशावान भविष्य” |
थीम का फोकस | गर्भावस्था की शुरुआत से सुलभ और गुणवत्तापूर्ण मातृत्व देखभाल सुनिश्चित करना |
मुख्य उद्देश्य | जागरूकता, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच, मातृ मृत्यु दर की रोकथाम, कुपोषण से लड़ना, महिलाओं को सशक्त बनाना, प्रशिक्षित प्रसव सहायता को बढ़ावा देना |
सुरक्षित मातृत्व के 5 स्तंभ | परिवार नियोजन, प्रसवपूर्व देखभाल, पेशेवर प्रसव सहायता, आपातकालीन देखभाल, प्रसवोत्तर देखभाल |
चुनौतियाँ | सीमित पहुँच, प्रशिक्षित स्टाफ की कमी, गरीबी, कुपोषण, सामाजिक बाधाएँ, कम जागरूकता, आपातकालीन/प्रसवोत्तर देखभाल की कमी |
सरकारी पहल | जननी सुरक्षा योजना (JSY), प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA), पोषण अभियान, लक्ष्य (LaQshya), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम (MCTS) |
महत्त्व | मातृत्व स्वास्थ्य को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में प्रस्तुत करता है, सहयोग को प्रोत्साहित करता है, स्वास्थ्य में निवेश को बढ़ावा देता है, सतत विकास से जुड़ा हुआ है |