21 मई 2024 को लंदन में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की घोषणा हुई। इस बार यह पुरस्कार ‘कैरोस’ (Kairos) किताब की लेखिका जेनी एर्पेनबेक और अनुवादक माइकल हॉफमैन को मिला है। जेनी एर्पेनबेक पहली जर्मन लेखिका हैं, जिन्हें बुकर मिला है। वहीं माइकल हॉफमैन ये पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष हैं।
इंटरनेशनल बुकर अवार्ड, जिसे पहले मैन बुकर इंटरनेशनल अवार्ड के नाम से जाना जाता था, वर्ष 2005 में शुरू किया गया था। इसे अंग्रेजी में प्रस्तुत किया गया और यूनाइटेड किंगडम या आयरलैंड में अलग-अलग तरह से एक पुस्तक प्रकाशित की गई।
इस पुरस्कार का उद्देश्य वैश्विक कथा साहित्य को बढ़ावा देना और दानवों के कार्यों की देखरेख करना है। इस पुरस्कार में 50,000 पाउंड (64,000 अमेरिकी डॉलर) की राशि दी जाती है, जिसे लेखक और दानक के बीच समान रूप से साझा किया जाता है। शॉर्टलिस्ट्स द्वारा बनाए गए लेखकों और दानवों में से प्रत्येक को धूप स्वरुप 2,500 पाउंड दिए गए हैं।
जेनी एर्पेनबेक 57 साल की हैं। जर्मनी के बर्लिन में पैदा हुईं। लेखक बनने से पहले ओपेरा की निर्देशक थीं। उन्होंने ‘The End of Days’ और ‘Go, Went, Gone’ जैसी किताबें लिखी हैं। वहीं, माइकल हॉफमैन की उम्र 66 साल है। उन्हें “जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद करने वाला दुनिया का सबसे प्रभावशाली अनुवादक” कहा गया है। कविता और साहित्यिक आलोचना लिखने के साथ-साथ, वे फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में पार्ट-टाइम पढ़ाते हैं।
वर्ष | लेखक | कार्य |
1971 | वी. एस. नायपॉल | इन अ फ्री स्टेट |
1981 | सलमान रुश्दी | नाइट्स चिल्ड्रेन |
1997 | अरुंधती रॉय | द गॉड ऑफ स्माॅल थिंग्स |
2006 | किरण देसाई | द इनहेरिटेंस लाॅस |
2008 | अरविंद अडिग | द वाइट टाइगर |
2022 | गीतांजलि श्री | टॉम्ब ऑफ सैंड |
भारत के कई लेखकों को भी बुकर पुरस्कार मिल चुका है। जैसे 1971 में वी. एस. नायपॉल को उनकी किताब, ‘In a Free State’ के लिए. 1997 में अरुंधती रॉय को उनकी पुस्तक, ‘The God of Small Things’ के लिए. और 2022 में गीतांजली श्री को उनकी किताब, ‘Tomb of Sand’ के लिए।
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