अंतरराष्ट्रीय छात्र दिवस (International Students’ Day), जो हर वर्ष 17 नवंबर को मनाया जाता है, अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सेमिनारों और कैंपस समारोहों से जुड़ा हुआ लगता है। लेकिन इसकी वास्तविक उत्पत्ति कहीं अधिक दर्दनाक, साहसपूर्ण और प्रेरणादायक है। इस दिन की नींव द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1939 में प्राग (चेकोस्लोवाकिया) में नाज़ी अत्याचारों के ख़िलाफ़ खड़े हुए छात्रों के प्रतिरोध में रखी गई थी — एक ऐसा संघर्ष जिसने कई छात्रों की जान और स्वतंत्रता छीन ली, लेकिन दुनिया को छात्र एकता और प्रतिरोध का एक अमर प्रतीक भी दे गया।
यह कहानी अक्टूबर 1939 से आरंभ होती है, जब चेकोस्लोवाकिया नाज़ी कब्ज़े में था। विश्वविद्यालय छात्रों द्वारा किए गए एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के दौरान जैन ओप्लेटल, एक मेडिकल छात्र, की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनकी मौत छात्रों के लिए एक प्रतिरोध का आह्वान बन गई।
15 नवंबर 1939 को हज़ारों छात्रों ने उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया, जहाँ शोक विद्रोह में परिवर्तित हो गया।
17 नवंबर 1939 को नाज़ियों ने आधुनिक शैक्षिक इतिहास की सबसे निर्मम कार्रवाइयों में से एक को अंजाम दिया:
बिना मुकदमे 9 छात्र नेताओं को गोली से मार दिया गया
1,200 से अधिक छात्रों को गिरफ्तार कर कंसंट्रेशन कैंप्स भेज दिया गया
सभी चेक विश्वविद्यालयों को जबरन बंद कर दिया गया
यह केवल विरोध को दबाने का प्रयास नहीं था — यह स्वतंत्र शिक्षा और बौद्धिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला था।
1939 की त्रासदी के दो वर्ष बाद, 1941 में लंदन में इंटरनेशनल स्टूडेंट्स काउंसिल ने आधिकारिक रूप से 17 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय छात्र दिवस घोषित किया। इस घोषणा को 50 से अधिक देशों के छात्र संगठनों का समर्थन मिला। इसका उद्देश्य प्राग के छात्रों के बलिदान को कभी भुलाए न जाने देना था।
दुनिया के तमाम अंतरराष्ट्रीय दिवसों में यह एकमात्र दिन है जो सिर्फ छात्रों को समर्पित है — वह भी शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि अत्याचार के विरुद्ध उनके संघर्ष और न्याय की मांग के लिए।
अंतरराष्ट्रीय छात्र दिवस केवल एक ऐतिहासिक स्मरण नहीं है, बल्कि यह आज के छात्रों की चुनौतियों, आकांक्षाओं और संघर्षों का प्रतीक भी है।
यह दिन दर्शाता है:
निर्भय और भेदभाव-रहित शिक्षा का अधिकार
शांतिपूर्ण विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
संघर्ष क्षेत्रों और दमनकारी शासन में रहने वाले छात्रों की सुरक्षा का महत्व
राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख एजेंट के रूप में युवाओं की भूमिका
चाहे वह ईरान, म्यांमार या कोई और देश हो — आज भी छात्र दुनिया भर में लोकतांत्रिक आंदोलनों के अग्रणी हैं। यह दिवस उनके साहस, आवाज़ और बलिदान को सम्मानित करता है।
मनाया जाता है: हर वर्ष 17 नवंबर
पहली घोषणा: 1941, लंदन
समर्पित: 1939 में चेक छात्रों पर नाज़ी दमन
मुख्य घटनाएँ: जैन ओप्लेटल की मौत, छात्र विरोध, सामूहिक गिरफ्तारियाँ, विश्वविद्यालय बंद
फाँसी दिए गए छात्र: 9
कैंप भेजे गए छात्र: 1,200 से अधिक
विशेष तथ्य: यह दुनिया का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय दिवस है जो पूरी तरह छात्रों के अधिकारों और सक्रियता को समर्पित है
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