हर साल 29 जून को अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह इसका नवां वार्षिक आयोजन है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2016 में इस दिवस को घोषित किया था, ताकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की असीम विविधता और वैश्विक भविष्य को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता दी जा सके। यह दिन उन विशिष्ट चुनौतियों की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है, जिनका सामना ये क्षेत्र जलवायु, भूगोल और विकासीय असमानताओं के कारण कर रहे हैं। अन्य अंतर्राष्ट्रीय दिवसों के विपरीत, यह दिवस किसी वार्षिक थीम का अनुसरण नहीं करता, जिससे इस पर व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण से विचार संभव होता है।
इस दिवस की नींव 29 जून 2014 को प्रकाशित ‘स्टेट ऑफ द ट्रॉपिक्स रिपोर्ट’ से पड़ी।
यह रिपोर्ट 12 प्रमुख उष्णकटिबंधीय अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से तैयार की गई थी, जिसमें उष्णकटिबंधीय दुनिया की पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का व्यापक विश्लेषण था।
इस रिपोर्ट के प्रभाव को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2016 में प्रस्ताव A/RES/70/267 पारित कर 29 जून को अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय दिवस घोषित किया।
इस रिपोर्ट का दूसरा संस्करण वर्ष 2020 में प्रकाशित हुआ, जिससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की निगरानी और सहयोग की महत्ता और पुष्ट हुई।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पृथ्वी पर कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच फैले होते हैं।
इन क्षेत्रों में सालभर गर्म मौसम रहता है, तापमान में ज्यादा अंतर नहीं होता, लेकिन वर्षा का पैटर्न भिन्न होता है।
भूमध्य रेखा के समीप वर्षा प्रचुर और नियमित होती है, जबकि दूर के क्षेत्रों में यह मौसमी होती है।
यह क्षेत्र जैव विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि का केंद्र हैं, जहां हजारों प्रजातियाँ, आदिवासी समुदाय और भाषाएँ पाई जाती हैं।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पृथ्वी की सतह का लगभग 40% भाग घेरते हैं और यहाँ विश्व की 80% जैव विविधता पाई जाती है।
ये क्षेत्र एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ओशिनिया के कई देशों को शामिल करते हैं, जहाँ जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और शहरीकरण हो रहा है।
लेकिन इनके साथ वनों की कटाई, निवास स्थानों की हानि, प्रदूषण, और सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसी चुनौतियाँ भी हैं।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में भी केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
इस दिवस का उद्देश्य दुनिया का ध्यान उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की संभावनाओं और संकटों की ओर आकर्षित करना है।
यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, शोध साझेदारी और विकास पहलों को बढ़ावा देता है ताकि उष्णकटिबंधीय देश अपने संसाधनों का सतत और न्यायपूर्ण उपयोग कर सकें।
साथ ही यह दिन ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन जैसी समस्याओं की ओर चेताता है और इनके समाधान हेतु समूहगत और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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