हर साल 16 जून को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस (IDFR) मनाया जाता है, ताकि उन प्रवासी श्रमिकों के अद्वितीय योगदान को सम्मानित किया जा सके जो अपने परिवारों के भरण-पोषण हेतु विदेशों से धन भेजते हैं। ये प्रेषण केवल आर्थिक लेन-देन नहीं हैं, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए जीवन रेखा और सामुदायिक विकास के आधार हैं।
क्यों है यह समाचारों में?
IDFR 2025 का आयोजन सोमवार, 16 जून को किया गया।
इस वर्ष की थीम है:
“Remittances financing development”
अर्थात् “प्रेषण द्वारा विकास का वित्तपोषण”, जो इस बात पर ज़ोर देती है कि ये धनराशियाँ सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में।
वैश्विक समर्थन की जीवन रेखा
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प्रवासी श्रमिकों द्वारा भेजे गए धन से करोड़ों परिवारों की आजीविका चलती है।
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केवल 2024 में भारत ने इतिहास में सबसे अधिक प्रेषण प्राप्त किए, मुख्यतः UAE, USA, सऊदी अरब और UK जैसे देशों से।
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यह धनराशि अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और छोटे व्यवसायों में खर्च होती है, जिससे आर्थिक आत्मनिर्भरता और स्थिरता आती है।
थीम: “प्रेषण द्वारा विकास”
IDFR 2025 का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि कैसे ये आर्थिक प्रवाह 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति में सहायक हैं:
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गरीबी उन्मूलन (SDG 1)
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लैंगिक समानता (SDG 5)
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उचित कार्य और आर्थिक वृद्धि (SDG 8)
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जलवायु सहनशीलता (SDG 13)
ये प्रेषण स्थानीय बुनियादी ढांचे, जीवन यापन, और आपदा/जलवायु संकट के समय आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
नीतिगत एवं संस्थागत समर्थन
इस दिवस के ज़रिये यह भी उजागर किया गया कि कैसे नीतिगत सुधार और संस्थागत ढाँचे प्रवासियों के लिए:
सुरक्षित, सस्ते और पारदर्शी धन प्रेषण को आसान बना सकते हैं।
प्रेषण की लागत घटाना
औपचारिक बैंकिंग चैनलों को प्रोत्साहन देना
वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना आवश्यक है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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16 जून 2008 को IFAD और विश्व बैंक ने मिलकर इस पहल की शुरुआत की थी।
प्रारंभ में यह केवल कम वेतन वाले प्रवासी श्रमिकों के योगदान को मान्यता देने के लिए था, लेकिन अब यह दिन:
- वैश्विक संवाद,
- नवाचार,
- और सार्वजनिक-निजी सहभागिता का प्रमुख मंच बन चुका है।
निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस 2025 यह याद दिलाता है कि प्रवासी श्रमिकों की मेहनत न केवल परिवारों को सहारा देती है, बल्कि वैश्विक विकास की दिशा भी तय करती है। यह दिन मान्यता, समावेशन, और सशक्तिकरण का प्रतीक है—एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए, जो मूल्य, न्याय और सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित हो।