दुनिया भर में शनिवार, 5 जुलाई 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारी दिवस (CoopsDay) मनाया जा रहा है। इस वर्ष का आयोजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष (IYC2025) के दौरान पड़ रहा है। यह दिन इस बात को रेखांकित करता है कि सहकारी संस्थाएं कैसे समावेशी, टिकाऊ और जन-केन्द्रित समुदायों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। CoopsDay का उद्देश्य सहकारिता के सिद्धांतों को बढ़ावा देना और दुनिया भर में उनके सामाजिक व आर्थिक योगदान को पहचान देना है।
अंतर्राष्ट्रीय सहकारी दिवस हर वर्ष जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में सहकारी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना है। वर्ष 2025 की थीम है — “सहकारिताएं: समावेशी और टिकाऊ समाधान द्वारा एक बेहतर विश्व की ओर”।
यह आयोजन दो प्रमुख वैश्विक पहलों से जुड़ा हुआ है — संयुक्त राष्ट्र का उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (जो वैश्विक लक्ष्यों की प्रगति की समीक्षा करता है) और आगामी द्वितीय विश्व सामाजिक विकास शिखर सम्मेलन। ये कार्यक्रम दिखाते हैं कि सहकारी संस्थाएं केवल स्थानीय व्यवसाय नहीं, बल्कि एक वैश्विक आंदोलन का हिस्सा हैं जो सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम कर रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (ICA) के अनुसार, सहकारिताएं लोगों को सशक्त बनाती हैं, लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देती हैं, और स्वास्थ्य सेवा, आवास, कृषि, वित्त और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में वास्तविक समाधान प्रदान करती हैं।
वर्ष 2025 में अंतर्राष्ट्रीय सहकारी दिवस के चार प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं:
सतत विकास में सहकारी संस्थाओं की भूमिका के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना।
सहकारिता के विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देना।
ऐसे कानूनी और नीतिगत वातावरण को समर्थन देना जो सहकारी संस्थाओं को फलने-फूलने में मदद करे।
नेतृत्व और युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना ताकि सहकारी मॉडल को नई ऊर्जा मिले।
सहकारिता के प्रभाव को दर्शाने वाले कुछ चौंकाने वाले तथ्य:
दुनिया की 12% से अधिक जनसंख्या किसी न किसी सहकारी संस्था से जुड़ी हुई है।
शीर्ष 300 सहकारी संस्थाओं का संयुक्त वार्षिक राजस्व 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
सहकारी संस्थाएं 28 करोड़ लोगों को रोजगार या आय प्रदान करती हैं, जो कि दुनिया की कुल कार्यबल का 10% हिस्सा है।
भारत में सहयोग की भावना सदियों पुरानी है, जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” (सारा विश्व एक परिवार है) की सोच से प्रेरित रही है। आधुनिक कानूनों के अस्तित्व में आने से पहले ही भारतीय गांवों में जल, भूमि और वनों के प्रबंधन के लिए सामूहिक सहयोग की परंपरा प्रचलित थी।
आधुनिक सहकारी आंदोलन की शुरुआत 19वीं सदी के उत्तरार्ध में ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाली कठिनाइयों के समाधान के रूप में हुई। उस समय खराब फसलें, ऊँचे ब्याज दरों पर ऋण और ज़मीन से जुड़े मुद्दों ने किसानों को संकट में डाल दिया था। ऐसे समय में सहकारी संस्थाएं एक जीवनरेखा बनकर सामने आईं — उन्होंने सस्ते ऋण, उचित मूल्य और सामुदायिक समर्थन प्रदान किया।
आज भारत में विभिन्न प्रकार की सहकारी संस्थाएं कार्यरत हैं, जैसे:
उपभोक्ता सहकारिताएं – जैसे केंद्रीय भंडार
उत्पादक सहकारिताएं – जैसे एपीपीसीओ (APPCO)
विपणन सहकारिताएं – जैसे अमूल (AMUL)
क्रेडिट सहकारिताएं – जैसे शहरी सहकारी बैंक
कृषि सहकारिताएं – जो साझा खेती और संसाधन उपयोग में मदद करती हैं
आवास सहकारिताएं – जो सस्ती और सामूहिक आवास उपलब्ध कराती हैं
भारत की कुछ प्रमुख सहकारी संस्थाएं, जिनका कारोबार सबसे अधिक है, इनमें शामिल हैं – इफको (IFFCO), अमूल (AMUL), कृभको (KRIBHCO) और सरस्वत बैंक। ये संस्थाएं न केवल ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देती हैं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
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