प्रसिद्ध भारतीय मूल के इतिहासकार सुनील अमृत (Sunil Amrith) ने अपनी उत्कृष्ट पुस्तक The Burning Earth: An Environmental History of the Last 500 Years के लिए ब्रिटिश एकेडमी बुक प्राइज़ 2025 जीता है। यह पुरस्कार हर वर्ष एक ऐसी गैर-काल्पनिक (non-fiction) पुस्तक को दिया जाता है, जो वैश्विक इतिहास, संस्कृति और समाज की गहरी समझ प्रस्तुत करती है। पुरस्कार राशि £25,000 (लगभग ₹26 लाख) है।
सुनील अमृत येल विश्वविद्यालय (Yale University) में इतिहास के प्रोफेसर हैं। उनका जन्म केन्या में हुआ, उनका पालन-पोषण सिंगापुर में हुआ, और उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge, England) से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
उनकी बहुसांस्कृतिक पृष्ठभूमि और वैश्विक दृष्टिकोण ने उन्हें पर्यावरणीय इतिहास, प्रवासन (migration) और औपनिवेशिक काल (colonialism) जैसे विषयों पर गहन शोध के लिए प्रसिद्ध बनाया है।
अमृत अपने गहन अकादमिक शोध और सरल, मानवीय कहानी कहने की शैली के लिए जाने जाते हैं, जिससे पाठक समझ पाते हैं कि अतीत की घटनाएँ आज की दुनिया को कैसे प्रभावित करती हैं।
पुस्तक पिछले 500 वर्षों के पर्यावरण और मानव इतिहास का व्यापक अध्ययन प्रस्तुत करती है। यह दिखाती है कि मानव गतिविधियों — जैसे उपनिवेशवाद, औद्योगीकरण और आधुनिक विकास — ने पृथ्वी और समाज दोनों को किस प्रकार रूपांतरित किया है।
न्यायाधीशों (judges) के अनुसार, यह पुस्तक “शक्तिशाली और सुंदर भाषा में लिखी गई एक उत्कृष्ट कृति” है, जो आज के जलवायु संकट (climate crisis) की ऐतिहासिक जड़ों को उजागर करती है।
स्वयं अमृत के शब्दों में, यह पुस्तक “मानव-जनित पर्यावरणीय क्षति के साथ-साथ उन भूले-बिसरे सतत जीवन-शैली के विचारों” को भी दिखाने का प्रयास है जो कभी अस्तित्व में थे।
निर्णायक मंडल की अध्यक्ष प्रोफेसर रेबेका एर्ल (Rebecca Earle) ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा —
“यह एक भव्य (magisterial) और संवेदनशील विवरण है जो दिखाता है कि मानव इतिहास और पर्यावरणीय परिवर्तन कितने गहराई से जुड़े हुए हैं। यह आज के जलवायु संकट को समझने के लिए आवश्यक पठन है।”
न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से कहा कि अमृत की पुस्तक इस पुरस्कार की भावना का सटीक प्रतिनिधित्व करती है — यानी ऐसी रचनाएँ जो दुनिया को नए दृष्टिकोण से समझने में मदद करें।
ब्रिटिश एकेडमी ने अमृत की दशकों की शोध-यात्रा और उनके “वैश्विक दृष्टिकोण” की सराहना की।
पुस्तक में विभिन्न महाद्वीपों और सदियों को समेटते हुए निम्नलिखित विषयों को शामिल किया गया है —
अमेरिका में औपनिवेशिक विजय (colonial conquests)
औद्योगिक विस्तार और प्रकृति पर उसका प्रभाव
ब्रिटिश शासनकाल में दक्षिण अफ्रीका में खनन व वनों की कटाई
द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के पर्यावरणीय परिणाम
अमृत दिखाते हैं कि सदियों पहले शुरू हुए दोहन और विकास के पैटर्न आज के वैश्विक पर्यावरण संकट की नींव हैं।
सुनील अमृत के साथ पाँच अन्य लेखकों को भी ब्रिटिश एकेडमी बुक प्राइज़ 2025 की सूची में शामिल किया गया, जिन्हें प्रत्येक को £1,000 का पुरस्कार मिला —
| पुस्तक का शीर्षक | लेखक |
|---|---|
| द गोल्डन रोड: हाउ एनशिएंट इंडिया ट्रांसफॉर्म्ड द वर्ल्ड | विलियम डालरिम्पल (William Dalrymple) |
| द बैटन एंड द क्रॉस: रशियाज़ चर्च फ्रॉम पैगन्स टू पुतिन | लूसी ऐश (Lucy Ash) |
| अफ्रीकनॉमिक्स: ए हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न इग्नोरेंस | ब्रोनवेन एवरिल (Bronwen Everill) |
| सिक ऑफ इट: द ग्लोबल फाइट फॉर वीमेन हेल्थ | सोफी हार्मन (Sophie Harman) |
| साउंड ट्रैक्स: ए म्यूजिकल डिटेक्टिव स्टोरी | ग्रेम लॉसन (Graeme Lawson) |
ब्रिटिश एकेडमी बुक प्राइज़ की स्थापना 2013 में हुई थी।
यह पुरस्कार मानविकी (Humanities) और सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) के क्षेत्र में लिखी गई उत्कृष्ट गैर-काल्पनिक पुस्तकों को सम्मानित करता है।
इसका उद्देश्य ऐसी रचनाओं को प्रोत्साहन देना है जो —
गहन शोध पर आधारित हों,
विचारोत्तेजक हों, और
आम पाठकों के लिए सुलभ भाषा में लिखी गई हों।
यह पुरस्कार किसी भी राष्ट्रीयता के लेखक को दिया जा सकता है, बशर्ते पुस्तक यूके में अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हुई हो।
निष्कर्ष:
सुनील अमृत की The Burning Earth न केवल पर्यावरणीय इतिहास का गहन अध्ययन है, बल्कि यह मानवता और प्रकृति के बीच के जटिल संबंधों को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी देती है — एक ऐसी पुस्तक जो इतिहास और भविष्य दोनों के लिए चेतावनी और प्रेरणा है।
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