भारत ने अपनी ऊर्जा आत्मनिर्भरता और नवीकरणीय क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से ₹6.4 ट्रिलियन (लगभग $77 अरब) की एक महत्त्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है, जिसके तहत वर्ष 2047 तक ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन से 76 गीगावाट (GW) जलविद्युत क्षमता विकसित की जाएगी। यह घोषणा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority – CEA) द्वारा 13 अक्टूबर 2025 को की गई। यह योजना ऐसे समय में आई है जब भारत एक ओर तेजी से बढ़ती बिजली मांगों को पूरा करना चाहता है और दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
इस विशाल योजना के तहत भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के 12 उप-बेसिनों में फैले 208 बड़े जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली को देश के बाकी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए ट्रांसमिशन नेटवर्क तैयार किया जाएगा।
इन राज्यों में शामिल हैं —
अरुणाचल प्रदेश
असम
सिक्किम
मिज़ोरम
मणिपुर
मेघालय
नागालैंड
पश्चिम बंगाल
इन क्षेत्रों में भारत की 80% से अधिक अप्रयुक्त जलविद्युत क्षमता निहित है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश अकेले 52.2 GW की संभावित क्षमता प्रदान करता है।
इसके अलावा, योजना में 11.1 GW पंप्ड-स्टोरेज क्षमता भी शामिल है, जो बिजली ग्रिड के उतार-चढ़ाव को संतुलित करने और नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण में मदद करेगी।
इस ₹6.4 ट्रिलियन योजना को दो मुख्य चरणों में विभाजित किया गया है —
चरण 1 (2035 तक): ₹1.91 ट्रिलियन (~$23 अरब)
चरण 2 (2035–2047): ₹4.52 ट्रिलियन (~$54 अरब)
इस परियोजना में प्रमुख सार्वजनिक उपक्रमों की भागीदारी होगी, जिनमें शामिल हैं —
एनएचपीसी (राष्ट्रीय जलविद्युत निगम)
नीपको (उत्तर पूर्वी विद्युत निगम)
एसजेवीएन (सतलुज जल विद्युत निगम)
कई परियोजनाएं पहले से ही विकास के चरण में हैं, जिससे इस बड़े पैमाने की ट्रांसमिशन योजना को प्रारंभिक गति मिली है।
ब्रह्मपुत्र नदी, जो तिब्बत में यारलुंग जांगबो (Yarlung Zangbo) नाम से जानी जाती है, चीन से निकलकर भारत में प्रवेश करती है और आगे बांग्लादेश में बहती है।
यह नदी लंबे समय से भारत-चीन के बीच एक भू-राजनीतिक मुद्दा रही है, क्योंकि चीन ने इसके ऊपरी हिस्से पर एक बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम बनाना शुरू किया है।
भारतीय विशेषज्ञों को आशंका है कि चीन की अपस्ट्रीम गतिविधियाँ शुष्क मौसम में नदी के प्रवाह को 85% तक घटा सकती हैं, जिससे अरुणाचल प्रदेश और असम में जल उपलब्धता और पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
ऐसे परिदृश्य में, भारत की यह हाइड्रो विस्तार योजना रणनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है।
यह योजना भारत को स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ाएगी।
पूर्वोत्तर क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास तेज़ होगा।
जलविद्युत क्षमता में वृद्धि से भारत को ग्रिड स्थिरता और नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण में मजबूती मिलेगी।
यह पहल ‘विकसित भारत 2047’ विज़न का हिस्सा है, जो सतत और हरित ऊर्जा भविष्य की ओर संकेत करता है।
| तथ्य | विवरण |
|---|---|
| घोषणा करने वाला संगठन | केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) |
| घोषणा की तिथि | 13 अक्टूबर 2025 |
| कुल निवेश | ₹6.4 ट्रिलियन (~$77 अरब) |
| कुल लक्ष्य क्षमता | 76 GW जलविद्युत + 11.1 GW पंप्ड स्टोरेज |
| परियोजनाओं की संख्या | 208 जलविद्युत परियोजनाएँ |
| कुल उप-बेसिन | 12 |
| शामिल राज्य | अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, मिज़ोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, पश्चिम बंगाल |
| चरण 1 लागत (2035 तक) | ₹1.91 ट्रिलियन |
| चरण 2 लागत (2035–2047) | ₹4.52 ट्रिलियन |
| मुख्य पीएसयू (PSUs) | NHPC, NEEPCO, SJVN |
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