भारत सरकार परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ा नीति परिवर्तन करने जा रही है, जिसके तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों को पहली बार परमाणु संयंत्रों के संचालन की अनुमति दी जाएगी। साथ ही, उनकी देयता (liability) सीमित करने का प्रस्ताव भी है, जिससे निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब अमेरिका ने भी अपनी कंपनियों को भारत में परमाणु उपकरण बनाने और डिज़ाइन कार्य करने की अनुमति दी है, जिससे भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग और गहरा हुआ है।
क्यों है यह खबर में?
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सरकार परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के नियमों में बदलाव की तैयारी में है ताकि निजी ऑपरेटरों को अनुमति दी जा सके।
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यह कदम देयता के जोखिम को कम करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
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यह अमेरिका द्वारा भारत के साथ परमाणु तकनीकी साझेदारी की अनुमति देने के तुरंत बाद हो रहा है।
निजी भागीदारी
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पहली बार, निजी कंपनियों को भारत में परमाणु संयंत्र संचालित करने की अनुमति मिलेगी।
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यह वैश्विक मानकों के अनुरूप है और भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में मदद करेगा।
सीमित देयता प्रावधान
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परमाणु दुर्घटना की स्थिति में निजी ऑपरेटरों की देयता की सीमा तय करने का प्रस्ताव है।
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अब तक उच्च देयता जोखिम के कारण विदेशी और निजी निवेश रुका हुआ था।
कानूनी संशोधन
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सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010 (CLND Act) में संशोधन पर विचार किया जा सकता है।
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अब तक न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) ही एकमात्र ऑपरेटर रहा है।
अमेरिका की भागीदारी
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अमेरिका ने हाल ही में अपनी कंपनियों को भारत में परमाणु उपकरण बनाने और डिज़ाइन करने की अनुमति दी है।
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यह 2008 के भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते की दिशा में एक बड़ा कदम है।
महत्व
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ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा; स्वच्छ और बेस-लोड ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा।
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तकनीकी हस्तांतरण, नवाचार और बुनियादी ढांचा विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
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भारत का लक्ष्य है कि 2031 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 22 गीगावाट तक बढ़ाया जाए।
भारत का वर्तमान परमाणु परिदृश्य
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भारत में 22 परिचालन परमाणु रिएक्टर हैं।
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ये सभी राज्य स्वामित्व वाले हैं और अधिकांश का संचालन NPCIL द्वारा किया जाता है।
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परमाणु ऊर्जा का योगदान भारत की कुल बिजली आपूर्ति में लगभग 3% है।