पृष्ठभूमि
- भारत और मालदीव के बीच राजनयिक संबंध औपचारिक रूप से 1965 में स्थापित हुए, ठीक उसी समय जब मालदीव ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी।
- भारत उन पहले देशों में शामिल था, जिन्होंने नवस्वतंत्र मालदीव को मान्यता दी और उसके साथ औपचारिक संबंध स्थापित किए।
- बीते दशकों में दोनों देशों ने व्यापार, सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, बुनियादी ढांचे और जलवायु लचीलापन जैसे क्षेत्रों में मजबूत साझेदारी को विकसित किया है, जिससे द्विपक्षीय संबंध निरंतर सशक्त और बहुआयामी होते गए हैं।
स्मारक डाक टिकटों का महत्व
ये डाक टिकट भारत और मालदीव की साझा समुद्री परंपराओं और हिंद महासागर में ऐतिहासिक व्यापारिक संबंधों का दृश्य रूप प्रस्तुत करते हैं। केरल के बेयपोर से संबंधित पारंपरिक भारतीय नौका ‘उरु’ भारत की समृद्ध जहाज़ निर्माण परंपरा और प्राचीन समुद्री विरासत का प्रतीक है। वहीं, ‘वधु धोनी’, पारंपरिक मालदीवियन मछली पकड़ने वाली नौका, मालदीव की गहराई से जुड़ी समुद्री संस्कृति और द्वीपीय जीवनशैली को दर्शाती है। ये दोनों प्रतीक सदियों से चले आ रहे भारत और मालदीव के परस्पर सहयोग और मित्रता को दर्शाते हैं।
टिकट विमोचन के उद्देश्य
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भारत और मालदीव के बीच 60 वर्षों की राजनयिक साझेदारी का उत्सव मनाना और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराना।
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दोनों देशों को जोड़ने वाली सांस्कृतिक और समुद्री विरासत को प्रदर्शित करना।
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साझा प्रतीकों के माध्यम से लोगों के बीच आपसी जुड़ाव को प्रोत्साहित करना।
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वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत-मालदीव संबंधों की ऐतिहासिक गहराई के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
डाक टिकटों की विशेषताएँ
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इन टिकटों को पारंपरिक कारीगरी और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है।
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उरु: केरल के बेयपोर शिपयार्ड में हाथ से बनाई गई एक बड़ी लकड़ी की नौका (धो), जिसे ऐतिहासिक रूप से हिंद महासागर व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
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वधु धोनी: एक पारंपरिक मालदीवियन नौका, जिसे प्रवाल भित्तियों और तटीय क्षेत्रों में मछली पकड़ने के लिए उपयोग किया जाता है। यह आत्मनिर्भरता और समुद्री विरासत का प्रतीक है।
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टिकटों की कलाकृति और डिज़ाइन में टिकाऊपन, परंपरा और क्षेत्रीय एकता को प्रमुखता से दर्शाया गया है।