भारत और जापान ने संयुक्त ऋण तंत्र (Joint Credit Mechanism – JCM) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.2 के अंतर्गत आता है। इस पहल का उद्देश्य कार्बन ट्रेडिंग को बढ़ावा देना, हरित निवेश आकर्षित करना और सतत नवाचार को प्रोत्साहित करना है। यह समझौता उस समय हुआ है जब अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाया है और चीन ने दुर्लभ मृदा खनिजों पर प्रतिबंध लगाया है। ऐसे में यह भारत के लिए अपनी विनिर्माण क्षमता और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य को मज़बूत करने का एक सामरिक विकल्प बनता है।
JCM पर हस्ताक्षर भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और जापान सरकार के बीच हुए।
यह समझौता लगभग ¥10 ट्रिलियन (₹6 ट्रिलियन) मूल्य के दीर्घकालिक द्विपक्षीय समझौतों का हिस्सा है, जिनमें शामिल हैं:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
रक्षा
सेमीकंडक्टर्स
महत्वपूर्ण खनिज (Critical minerals)
यह साझेदारी भारत को विनिर्माण केंद्र और सतत प्रौद्योगिकी का अग्रणी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
अप्रैल 2025 में चीन ने समेरियम, गेडोलिनियम और टर्बियम जैसे दुर्लभ मृदा खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित हुई।
बाद में भारत के लिए यह प्रतिबंध आंशिक रूप से हटाया गया, लेकिन चीन पर निर्भरता उजागर हुई।
भारत अब घरेलू खनन और प्रसंस्करण को प्रोत्साहित कर रहा है, हालांकि तकनीकी और पर्यावरणीय चुनौतियाँ मौजूद हैं।
JCM भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की अनुमति देता है, जिसके माध्यम से:
बाजार-आधारित तंत्र से ग्रीनहाउस गैसों में कमी।
डीकार्बोनाइजेशन के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।
जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति हेतु क्षमता निर्माण।
यह पहल इसलिए भी अहम है क्योंकि वैश्विक जलवायु वित्त वार्ताएँ ठप पड़ी हैं और अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर हो चुका है।
यह JCM, COP30 (बेलें, ब्राज़ील) से पहले और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
COP30 में वैश्विक कार्बन बाजार के नियमों पर चर्चा होगी।
अब तक केवल 23 देशों ने अपने नए जलवायु लक्ष्यों (NDCs) को प्रस्तुत किया है।
भारत-जापान मॉडल दर्शाता है कि द्विपक्षीय सहयोग वैश्विक जलवायु वार्ताओं को पूरक बना सकता है।
भारत ने कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (2023) शुरू की और इसके लिए राष्ट्रीय नामित प्राधिकरण बनाया।
JCM के तहत जापानी निवेश स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के प्रयोग में मदद करेंगे।
यह भारत की 2070 तक नेट जीरो प्राप्त करने की प्रतिबद्धता को समर्थन देगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि JCM अन्य देशों के लिए भी द्विपक्षीय जलवायु साझेदारी का मॉडल बन सकता है।
अनुच्छेद 6.2 (पेरिस समझौता): देशों को लचीले और द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से अपने NDCs पूरे करने की अनुमति देता है।
यह प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है।
विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर वित्तीय संसाधनों के प्रवाह की सुविधा प्रदान करता है।
यह विकासशील देशों को Internationally Transferred Mitigation Outcomes (ITMOs) उत्पन्न करने और व्यापार करने की अनुमति देता है।
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