भारत वैश्विक स्तर पर तीसरी सबसे तेज़ बिजली उत्पादन क्षमता वृद्धि वाला देश बना है — चीन और अमेरिका के बाद — यह जानकारी हाल ही में जारी अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट में सामने आई है। इस तेज़ वृद्धि का कारण है विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती ऊर्जा मांग, नवीकरणीय ऊर्जा (विशेष रूप से सौर ऊर्जा) को लेकर सरकारी प्रोत्साहन, और घरेलू व विदेशी निवेश में आई मजबूती।
IEA की नई ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट में भारत की बिजली क्षेत्र में उपलब्धियों को वैश्विक स्तर पर उजागर किया गया है। ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) और हरित ऊर्जा अर्थव्यवस्था (Green Energy Economy) में भारत की भूमिका तेजी से बढ़ रही है।
2019–2024 की अवधि में बिजली उत्पादन में भारत तीसरे स्थान पर, केवल चीन और अमेरिका से पीछे।
भारत में बिजली की मांग में तेज़ वृद्धि के कारण:
वाणिज्यिक और आवासीय ढांचे का विस्तार
एसी और घरेलू उपकरणों का बढ़ता उपयोग
औद्योगिक विकास
फॉसिल फ्यूल्स, जलविद्युत और नवीकरणीय स्रोतों — सभी क्षेत्रों में वृद्धि।
स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy), विशेषकर सौर पीवी (Solar PV), मुख्य प्रेरक शक्ति रही।
पिछले 5 वर्षों में भारत में गैर-फॉसिल ऊर्जा निवेश का 50% से अधिक हिस्सा सिर्फ सौर पीवी में गया।
2024 में भारत के बिजली क्षेत्र में कुल निवेश का 83% स्वच्छ ऊर्जा में हुआ।
भारत 2024 में क्लीन एनर्जी में सबसे अधिक DFI (Development Finance Institution) प्राप्त करने वाला देश रहा — 2.4 अरब डॉलर।
2023 में बिजली क्षेत्र में FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) बढ़कर 5 अरब डॉलर हुआ — महामारी पूर्व स्तर से लगभग दोगुना।
सरकार ने परमाणु ऊर्जा को छोड़कर बिजली क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में 100% FDI की अनुमति दी है।
पिछले दो वर्षों में ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में गिरावट दर्ज की गई।
इसका कारण वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और उद्योग-विशिष्ट चिंताएँ मानी गई हैं।
फिर भी, दीर्घकालिक निवेश दृष्टिकोण सकारात्मक बना हुआ है।
भारत का ऊर्जा संक्रमण कई सरकारी योजनाओं से प्रेरित है:
राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission)
पीएलआई योजना (PLI Scheme) – नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण निर्माण के लिए
ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (Green Energy Corridors)
नेट ज़ीरो का लक्ष्य 2070 तक और
2030 तक 500 GW गैर-फॉसिल ईंधन क्षमता प्राप्त करने की प्रतिबद्धता
निष्कर्ष:
भारत का ऊर्जा क्षेत्र एक हरित, आत्मनिर्भर और निवेशक-अनुकूल मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जो न केवल घरेलू मांग पूरी करेगा, बल्कि वैश्विक ऊर्जा नेतृत्व में भी अहम भूमिका निभाएगा।
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