अमेरिका के नए विधेयक “हॉल्टिंग इंटरनेशनल रिलोकेशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट (HIRE) एक्ट 2025” ने भारत के आईटी क्षेत्र में हलचल मचा दी है। यदि यह कानून पारित होता है, तो इसके तहत अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशी संस्थाओं को अमेरिकी उपभोक्ताओं के लाभ के लिए दी जाने वाली सेवाओं के भुगतान पर 25% उत्पाद शुल्क (excise tax) लगाया जाएगा। इससे ऑफशोर आईटी और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग की वास्तविक लागत में भारी वृद्धि हो सकती है। इसका सीधा असर अमेरिका-भारत प्रौद्योगिकी संबंधों पर पड़ेगा और भारत के 100 अरब डॉलर के आईटी निर्यात उद्योग को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
एचआईआरई एक्ट 2025 (Halting International Relocation of Employment) का मूल उद्देश्य आउटसोर्सिंग को हतोत्साहित करना है, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशों में काम भेजना महंगा और कर-अप्रभावी हो जाए।
25% उत्पाद शुल्क (Excise Tax): अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशी संस्थाओं को दिए जाने वाले शुल्क, रॉयल्टी या सेवा शुल्क पर लागू होगा, यदि उसका लाभ अमेरिकी उपभोक्ताओं को मिलता है।
कर कटौती की अनुमति नहीं: ये भुगतान संघीय आयकर नियमों के तहत कटौती योग्य नहीं होंगे, जिससे कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
अपॉर्शनमेंट क्लॉज़: मिश्रित-बाज़ार सेवाओं में कर उसी अनुपात में लागू होगा, जितना हिस्सा अमेरिकी उपभोक्ताओं का होगा।
बढ़ी हुई अनुपालन आवश्यकताएँ: कंपनियों को विस्तृत सूचना रिटर्न दाखिल करना होगा, कॉर्पोरेट अधिकारियों से प्रमाणन लेना होगा और उल्लंघन पर कड़े दंड झेलने होंगे।
घरेलू कार्यबल कोष: वसूला गया कर अमेरिकी श्रमिकों के लिए अप्रेंटिसशिप और पुनःप्रशिक्षण कार्यक्रमों पर खर्च होगा।
प्रभावी तिथि: यदि अधिनियमित हुआ, तो यह प्रावधान 31 दिसंबर 2025 के बाद किए गए सभी भुगतानों पर लागू होंगे।
अमेरिका भारतीय आईटी सेवाओं और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) का सबसे बड़ा ग्राहक है। यह कानून:
लागत में भारी वृद्धि करेगा: 100 डॉलर के भुगतान पर लगभग 46 डॉलर अतिरिक्त कर बोझ (25 डॉलर उत्पाद शुल्क + 21 डॉलर कर कटौती हानि)।
भारत की आईटी प्रभुत्व को चुनौती देगा: टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएलटेक और टेक महिंद्रा जैसी कंपनियाँ अपने मुख्य अमेरिकी बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा खो सकती हैं।
विस्तृत दायरे को प्रभावित करेगा: कैप्टिव सेंटर्स, कॉन्ट्रैक्टर्स और यहां तक कि फ्रीलांसर तक प्रभावित होंगे।
मूल्य निर्धारण और लाभप्रदता दबाव – भारतीय कंपनियों को अनुबंध फिर से तय करने, अतिरिक्त लागत झेलने या ग्राहकों पर बोझ डालने की स्थिति आ सकती है।
अनुपालन और अनुबंध पुनर्गठन – कंपनियों को उपभोक्ता स्थान का रिकॉर्ड रखना होगा और अनुबंधों की भौगोलिक संरचना बदलनी पड़ सकती है।
जीसीसी रणनीति में बदलाव – ग्लोबल कंपनियाँ भारत से काम घटाकर अमेरिका, कनाडा या मैक्सिको में संचालन बढ़ा सकती हैं।
स्वचालन में तेजी – एआई-आधारित समाधान अपनाए जा सकते हैं ताकि मानव संसाधन पर निर्भरता कम हो।
व्यापार और नीति तनाव – अमेरिका-भारत व्यापार संबंध प्रभावित हो सकते हैं, खासकर यदि भारत छूट (carve-out) हासिल नहीं कर पाया।
आईटी सेवाएँ व एप्लीकेशन डेवलपमेंट – सबसे ज्यादा जोखिम, भारी अमेरिकी पोर्टफोलियो के कारण।
बीपीएम और कॉल सेंटर्स – सीधे निशाने पर, क्योंकि इनकी सेवाएँ स्पष्ट रूप से अमेरिकी उपभोक्ताओं को लाभ देती हैं।
प्रोडक्ट इंजीनियरिंग और आरएंडडी – प्रभाव इस पर निर्भर करेगा कि आउटपुट उपभोक्ता-उन्मुख है या नहीं।
फ्रीलांसर और स्टार्टअप्स – छोटे अमेरिकी स्टार्टअप्स को भी वैश्विक फ्रीलांसर रखने पर अधिक लागत झेलनी होगी।
विधेयक का नाम: HIRE Act 2025 (Halting International Relocation of Employment)
कर प्रभाव: 25% उत्पाद शुल्क + कर कटौती की हानि ≈ 46% अतिरिक्त लागत
प्रभावी तिथि: 31 दिसंबर 2025 के बाद के भुगतान
लक्ष्य: विदेशी सेवा प्रदाता जिनकी सेवाओं का लाभ अमेरिकी उपभोक्ता उठाते हैं
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