रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) लिमिटेड ने सोमवार को देश में बनने वाला “अब तक का सबसे बड़ा” सर्वेक्षण पोत – आईएनएस संधायक – भारतीय नौसेना को सौंप दिया। नौसेना के लिए जीआरएसई द्वारा बनाए जा रहे चार सर्वेक्षण पोतों की श्रृंखला में पहले, आईएनएस संधायक का पांच दिसंबर, 2021 को जलावतरण किया गया था। उसके बाद से इसका परीक्षण चल रहा था।
जीआरएसई अधिकारी ने कहा कि 110 मीटर लंबे जहाज की आपूर्ति चार दिसंबर को की गई, जिसे नौसेना दिवस के रूप में मनाया जाता है। आपूर्ति और स्वीकृति के औपचारिक दस्तावेज पर जीआरएसई के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक, कमोडोर (सेवानिवृत्त) पी.आर. हरि और पोत के कमांडिंग अफसर, कमोडोर आर.एम. थॉमस ने हस्ताक्षर किये। आईएनएस संधायक इसी नाम के एक अन्य सर्वेक्षण पोत का नया अवतार है। अधिकारी ने कहा, उस जहाज को 1981 में नौसेना में शामिल किया गया था और 2021 में सेवा मुक्त किया गया था।
‘संध्याक’ जहाज लगभग 3,400 टन के विस्थापन और 110 मीटर लंबा है। यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा सर्वेक्षण पोत है। अभी इस पोत का काम बंदरगाह या हार्बर तक पहुंचने वाले मार्गों का सम्पूर्ण तटीय और डीप-वॉटर हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करना है। साथ ही नौवहन चैनलों या मार्गों का निर्धारण करना है।
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इसके परिचालन क्षेत्र में ईईजेड (EEZ), एक्सटेंडेड कॉन्टिनेंटल शेल्फ तक की समुद्री सीमाएं शामिल हैं। इस पोत का रक्षा और सिविलियन वर्क जैसे कि समुद्र विज्ञान और भूभौतिकीय डेटा भी एकत्रित करने के लिए किया जाएगा।
‘संध्याक’ अत्याधुनिक हाइड्रोग्राफिक उपकरणों जैसे डेटा अधिग्रहण और प्रसंस्करण प्रणाली, स्वायत्त अंडरवाटर वाहन, रिमोट चालित वाहन, डीजीपीएस लॉन्ग रेंज पोजिशनिंग सिस्टम, डिजिटल साइड स्कैन सोनार से युक्त है। दो डीजल इंजनों द्वारा संचालित यह पोत 18 समुद्री मील से अधिक की गति से चल सकता है। लागत की दृष्टि से संध्याक में 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री है।
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि संध्याक की सुपुर्दगी भारत सरकार और भारतीय नौसेना द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में दिए जा रहे प्रोत्साहन की पुष्टि है। संध्याक के निर्माण के दौरान कोविड और अन्य भू-राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद, इसको शामिल किया जाना, हिंद महासागर क्षेत्र में राष्ट्र की समुद्री ताकत बढ़ाने की दिशा में बड़ी संख्या में हितधारकों, एमएसएमई और भारतीय उद्योग के सहयोगपूर्ण प्रयासों का परिणाम है।
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