एक बड़े नीतिगत बदलाव के तहत भारत सरकार ने स्मार्टफोन निर्माताओं को सभी नए या आयातित मोबाइल फ़ोनों में Sanchar Saathi ऐप प्री-इंस्टॉल करने की अनिवार्य शर्त वापस ले ली है। यह निर्णय 3 दिसंबर 2025 को तब लिया गया जब गोपनीयता, निगरानी (snooping) की आशंकाओं और पूर्व परामर्श की कमी को लेकर जनता व उद्योग जगत में व्यापक विरोध सामने आया।
दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा विकसित यह ऐप साइबर धोखाधड़ी, मोबाइल चोरी और अनधिकृत सिम उपयोग की शिकायत दर्ज करने और उससे निपटने में मदद के लिए बनाया गया था। हालांकि ऐप का उद्देश्य सुरक्षा था, लेकिन इसके अनिवार्य होने पर कड़ी आपत्तियाँ उठीं।
2025 की शुरुआत में लॉन्च किया गया Sanchar Saathi एक मोबाइल सुरक्षा और एंटी-फ्रॉड ऐप है, जिसका लक्ष्य भारतीय उपयोगकर्ताओं को निम्न खतरों से बचाना है:
सिम से जुड़े धोखाधड़ी
मोबाइल चोरी और पहचान की गलत इस्तेमाल
अनधिकृत कनेक्शन
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, इस ऐप के माध्यम से अब तक:
26 लाख चोरी किए गए मोबाइल फ़ोन ट्रेस किए गए
7 लाख फ़ोन उनके मालिकों को लौटाए गए
41 लाख फर्ज़ी मोबाइल कनेक्शन बंद किए गए
6 लाख धोखाधड़ी प्रयास रोके गए
दिसंबर 2025 तक ऐप के 1.5 करोड़ से अधिक डाउनलोड हो चुके हैं, और इसका उपयोग शहरी व अर्ध-शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है।
DoT ने 28 नवंबर 2025 को Apple, Samsung, Xiaomi, Oppo, Vivo जैसे सभी प्रमुख स्मार्टफोन निर्माताओं को यह निर्देश दिया था कि वे Sanchar Saathi ऐप को नए सभी उपकरणों में प्री-इंस्टॉल करें और इसे मौजूदा उपकरणों में भी सॉफ़्टवेयर अपडेट के माध्यम से भेजें।
इस कदम पर तुरंत विरोध शुरू हो गया:
गोपनीयता विशेषज्ञों ने निगरानी के जोखिम बताए
टेक विश्लेषकों ने डेटा सुरक्षा व प्रभावशीलता पर सवाल उठाए
उद्योग संगठनों ने बिना परामर्श नीति लागू करने का विरोध किया
विरोध बढ़ता देखकर दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संसद में स्पष्ट किया कि ऐप के माध्यम से स्नूपिंग न संभव है और न ही इरादा है।
उन्होंने कहा कि ऐप तब तक काम भी नहीं करता जब तक उपयोगकर्ता स्वयं रजिस्टर न करे, और इसे कभी भी हटाया (delete) जा सकता है।
मंत्रालय ने घोषणा की:
“सरकार ने प्री-इंस्टॉलेशन अनिवार्य न करने का निर्णय लिया है।”
सरकार ने यह भी कहा कि ऐप का उपयोग स्वेच्छा से पहले ही बढ़ रहा है।
भारत सेलुलर और इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने इस निर्णय का स्वागत किया। संगठन के चेयरमैन पंकज मोहिंदरू ने कहा: “यह उपभोक्ता संरक्षण और उद्योग की साइबर सुरक्षा लागू करने की क्षमता — दोनों को संतुलित रखने वाला व्यावहारिक फैसला है।”
उन्होंने यह भी कहा कि जल्दबाज़ी में जारी आदेश उद्योग के संचालन और उपयोगकर्ता विश्वास को नुकसान पहुँचा सकते हैं, इसलिए नीति बनाते समय व्यापक परामर्श ज़रूरी है।
SFLC.in की संस्थापक मिशी चौधरी ने इस फैसले को “स्वागत योग्य” बताया, लेकिन सिम-बाइंडिंग नियम को लेकर चिंता जताई, इसे उपयोगकर्ता स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया।
ऐप अब वैकल्पिक रहेगा, डिफ़ॉल्ट रूप से इंस्टॉल नहीं होगा।
सरकारी स्पष्टीकरण के अनुसार निगरानी की कोई चिंता नहीं।
उपयोगकर्ता इसे अपनी इच्छा से इंस्टॉल या हटाने के लिए स्वतंत्र हैं।
उत्पादन चरण में जबरन ऐप जोड़ने के दबाव से राहत।
भविष्य में अधिक स्पष्ट और परामर्श आधारित नीतियों की उम्मीद।
अनिवार्यता नहीं, बल्कि भरोसे और जागरूकता से ऐप अपनाने पर ज़ोर।
विशेषज्ञ व जनता की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखने का सकारात्मक उदाहरण।
उपयोगकर्ता गोपनीयता, डिजिटल अधिकारों और साइबरसुरक्षा जागरूकता के प्रति प्रतिबद्धता को पुनर्स्थापित करता है।
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