सोने ने अब आधिकारिक रूप से वैश्विक भंडार संपत्तियों में दूसरा सबसे बड़ा स्थान हासिल कर लिया है, यूरो को पीछे छोड़ते हुए। यह खुलासा यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) की जून 2025 रिपोर्ट में हुआ है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने भू-राजनीतिक तनाव, महंगाई की चिंता, और प्रमुख मुद्राओं (विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों) की विश्वसनीयता को लेकर संदेह के चलते अपनी स्वर्ण होल्डिंग्स में तेज़ी से वृद्धि की। हालांकि, अब संकेत मिल रहे हैं कि यह खरीदारी की होड़ धीरे-धीरे थम सकती है, जो वैश्विक आरक्षित रणनीतियों में बदलाव को दर्शाता है।
समाचार में क्यों?
यूरोपीय सेंट्रल बैंक की जून 2025 की रिपोर्ट में वैश्विक भंडार संरचना में एक बड़ा बदलाव सामने आया है। परंपरागत रूप से एक सुरक्षित संपत्ति माने जाने वाले सोने ने अब यूरो से अधिक हिस्सेदारी प्राप्त कर ली है। भले ही सोने की मांग अभी भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई है, लेकिन केंद्रीय बैंकों की खरीद में ठहराव आने के संकेत मिलने लगे हैं।
मुख्य बिंदु
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सोने की भंडार हिस्सेदारी:
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2023 में ~16.5% → 2024 में बढ़कर 19%
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यूरो गिरकर 16% पर
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शीर्ष आरक्षित संपत्ति:
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अमेरिकी डॉलर अभी भी 47% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर
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केंद्रीय बैंक मांग:
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अब वैश्विक स्वर्ण मांग का 20% से अधिक, जो एक दशक पहले से दोगुना है
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प्रमुख कारण:
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रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक महंगाई, और अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों से सोने की मांग में तेजी
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पृष्ठभूमि
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
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विश्व में स्वर्ण भंडार अब 1960 के दशक के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर हैं।
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सोने को परंपरागत रूप से मुद्रा जोखिम और महंगाई से बचाव के रूप में देखा जाता है।
सोना क्यों?
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सुरक्षित आश्रय संपत्ति (Safe Haven Asset) के रूप में भरोसा
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तरलता और दीर्घकालिक मूल्य प्रदान करता है, विशेष रूप से आर्थिक अनिश्चितता में
वैश्विक परिदृश्य
उभरती अर्थव्यवस्थाएं आगे:
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रूस, चीन जैसे देश जो मुद्रा प्रतिबंधों से सतर्क हैं, वे सोने को भंडार के रूप में प्राथमिकता दे रहे हैं
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डॉलर और यूरो की निर्भरता को कम करने का प्रयास
लेकिन अब मंदी के संकेत:
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सोने की केंद्रीय मांग ऊंचाई पर पहुँचकर अब धीमी हो सकती है
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कीमतों में अस्थिरता और अमेरिका की टैरिफ नीति में बदलाव ने रुझान को प्रभावित किया है
निष्कर्ष
सोना अब केवल परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के दौर में सुरक्षा और संतुलन का प्रतीक बन चुका है। हालांकि, तेज़ी से बदलती भू-राजनीतिक और मौद्रिक स्थितियाँ यह तय करेंगी कि केंद्रीय बैंक सोने को अपने भंडार में किस हद तक और कितनी तेजी से शामिल करते रहेंगे।