दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, और हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र में यह संकट सबसे गंभीर रूप से देखा जा रहा है। विश्व ग्लेशियर दिवस पर जारी संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2011-2020 के दौरान HKH क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की दर 2001-2010 की तुलना में 65% अधिक थी। यह तीव्र हिमनद ह्रास जल संसाधनों, पारिस्थितिक तंत्र और उन समुदायों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है जो ग्लेशियरों से पोषित नदियों पर निर्भर हैं।
HKH क्षेत्र में 2011-2020 के दौरान ग्लेशियरों के पिघलने की दर 2001-2010 की तुलना में 65% तेज थी।
यदि वैश्विक तापमान 1.5°C से 2°C तक बढ़ता है, तो 2100 तक HKH ग्लेशियरों का 30-50% हिस्सा समाप्त हो सकता है।
यदि तापमान 2°C से अधिक बढ़ता है, तो यह क्षेत्र 2020 के ग्लेशियर आयतन का 45% तक खो सकता है।
HKH क्षेत्र आठ देशों – अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में फैला हुआ है।
यह क्षेत्र दस प्रमुख नदी घाटियों का स्रोत है, जो लगभग दो अरब लोगों के जीवनयापन में सहायक हैं।
लगभग 1.1 अरब लोग पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से दो-तिहाई शहरी क्षेत्रों में हैं।
यदि तापमान 1.5°C से 4°C तक बढ़ता है, तो वैश्विक पर्वतीय ग्लेशियरों का 26-41% द्रव्यमान 2100 तक समाप्त हो सकता है।
“थर्ड पोल” (HKH) अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाहर सबसे अधिक बर्फ भंडारण करता है।
कोलंबिया में कोनेजे़रस ग्लेशियर जैसे ग्लेशियरों का तेजी से लुप्त होना इस संकट की बढ़ती गति को दर्शाता है।
ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs), बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि।
पिछले 200 वर्षों में GLOFs से 12,000 से अधिक मौतें, जिनमें से केवल HKH क्षेत्र में पिछले 190 वर्षों में 7,000 मौतें हुईं।
1990 के दशक से ग्लेशियर झीलों की संख्या में तेजी से वृद्धि, जिससे आपदाओं का खतरा बढ़ा।
जल विद्युत उत्पादन पर संकट, क्योंकि ग्लेशियर पिघलने, वर्षा परिवर्तन और वाष्पीकरण के कारण जल स्रोत प्रभावित हो रहे हैं।
खनन उद्योगों (जैसे, बोलीविया, अर्जेंटीना और चिली में लिथियम खनन) से जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव।
अनियंत्रित जल विद्युत परियोजनाओं (जैसे, जॉर्जिया में) के कारण नदियों के जल स्तर में गिरावट।
पर्वतीय क्षेत्रों में जल प्रबंधन मैदानी इलाकों की तुलना में कमजोर।
HKH देशों के बीच सीमापार सहयोग की कमी, राजनीतिक अविश्वास के कारण।
जल संसाधनों और आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर डेटा साझा करने की अपर्याप्तता।
हर स्तर पर सहयोग को मजबूत करना – सभी हितधारकों के लिए पारस्परिक लाभ सुनिश्चित करने हेतु सहयोग बढ़ाना।
पर्वतीय समुदायों की विशेष आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना – इन क्षेत्रों की विशिष्ट चुनौतियों और जरूरतों को समझकर नीति निर्माण करना।
जलवायु परिवर्तन पर ठोस कदम उठाना – ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित करने के लिए प्रभावी नीतियां अपनाना।
सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में तेजी से कार्य करना – जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और सतत जीवनशैली को बढ़ावा देना।
पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती और जैव विविधता संरक्षण – पर्यावरणीय क्षति को रोकने और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करना।
क्षेत्रीय डेटा साझाकरण और वैज्ञानिक सहयोग को प्रोत्साहित करना – जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन पर अनुसंधान और जानकारी साझा करना।
जल विद्युत, पेयजल और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्रों की सुरक्षा में योगदान देने वाले समुदायों को प्रोत्साहन देना।
पर्वतीय क्षेत्रों में सतत विकास के लिए अधिक सुलभ वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना।
श्रेणी | विवरण |
क्यों चर्चा में है? | वैश्विक हिमनद हानि तेज़ी से बढ़ रही है, हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित। |
HKH में हिमनद हानि | 2011-2020 में 2001-2010 की तुलना में 65% अधिक तेजी से बर्फ पिघली। |
2100 तक संभावित प्रभाव | यदि तापमान 2°C से कम रहा तो 30-50% हिमनद मात्रा घट सकती है; यदि 2°C से अधिक बढ़ा तो 45% तक हानि संभव। |
खतरे | ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs), अचानक बाढ़, भूस्खलन; HKH क्षेत्र में पिछले 190 वर्षों में 7,000+ मौतें। |
वैश्विक प्रभाव | 2100 तक पर्वतीय हिमनदों का 26-41% तक द्रव्यमान कम हो सकता है। |
आर्थिक जोखिम | जलविद्युत, कृषि, खनन और जल आपूर्ति को खतरा। |
शासन से जुड़ी समस्याएं | सीमापार सहयोग की कमी, डेटा साझा करने की असमानता। |
नीति सिफारिशें | सहयोग को बढ़ावा देना, स्थानीय समुदायों को प्राथमिकता देना, जलवायु कार्रवाई को मजबूत करना, डेटा साझा करना। |
वित्तीय आवश्यकताएँ | पर्वतीय क्षेत्रों में सतत विकास और आपदा न्यूनीकरण के लिए अधिक वित्तीय सहायता। |
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