कश्मीर के शानदार चिनार वृक्ष, जो इसकी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का प्रतीक माने जाते हैं, शहरीकरण और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं। इन प्रतिष्ठित वृक्षों को संरक्षित और मॉनिटर करने के लिए, जम्मू और कश्मीर वन अनुसंधान संस्थान (JKFRI) ने ‘डिजिटल ट्री आधार’ पहल शुरू की है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जैव विविधता की सुरक्षा, सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण, और इन वृक्षों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।
पहल के मुख्य बिंदु
‘डिजिटल ट्री आधार’ पहल के बारे में
- उद्देश्य: प्रत्येक चिनार वृक्ष के स्वास्थ्य की निगरानी, संरक्षण, और प्रबंधन।
- सिद्धांत: भारत के आधार प्रणाली के मॉडल पर आधारित, प्रत्येक वृक्ष को एक अद्वितीय आईडी दी जाती है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के साथ जियो-टैगिंग।
- क्यूआर (QR) कोड और धातु कार्ड, जिनमें बारकोड होते हैं।
- सार्वजनिक स्कैनिंग के लिए उपलब्ध।
वर्तमान प्रगति और दायरा
- टैग किए गए वृक्ष: अब तक लगभग 10,000 चिनार वृक्षों पर धातु कार्ड लगाए गए हैं।
- चिनार जनगणना: 2021 में शुरू की गई व्यवस्थित सर्वेक्षण प्रक्रिया में 28,560 चिनार वृक्षों का जियो-टैगिंग।
- भविष्य की योजना: चिनाब घाटी और पीर पंजाल घाटी के चिनार वृक्षों को भी शामिल करना।
- शीर्ष वृक्ष: शीर्ष 20 चिनार वृक्षों का रिकॉर्ड, जिसमें गांदरबल जिले का विश्व का तीसरा सबसे बड़ा चिनार (74 फीट व्यास) शामिल है।
महत्व और लाभ
- पर्यटन: पर्यटक क्यूआर कोड स्कैन करके वृक्ष की उम्र, ऊंचाई और इतिहास जान सकते हैं।
- जैव विविधता संरक्षण: चिनार पक्षियों जैसे कौवे और चील के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं।
- कार्बन अवशोषण: जलवायु परिवर्तन को कम करने में चिनार वृक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- सांस्कृतिक धरोहर: कश्मीर की लोककथाओं, साहित्य, धार्मिक प्रथाओं और ऐतिहासिक स्थलों का हिस्सा।
चिनार का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
- उत्पत्ति: 400 साल पहले मध्य एशिया और फारस के इस्लामी प्रचारकों द्वारा कश्मीर में लाए गए।
- सबसे पुराना वृक्ष: बडगाम जिले में एक 700 साल पुराना चिनार, जिसे सूफी संत सैयद कासिम शाह ने लगाया था।
- मुगल विरासत: 16वीं शताब्दी में श्रीनगर के मुगल उद्यान जैसे नसीम बाग, निशात बाग, और शालीमार गार्डन में लगाए गए।
- धार्मिक महत्व: हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा पूजनीय। हजरतबल जैसे दरगाहों और खीर भवानी जैसे मंदिरों में देखा जाता है।
- बॉलीवुड आकर्षण: कई प्रतिष्ठित फिल्मों में दिखाया गया, जो रोमांस और पुरानी यादों का प्रतीक है।
संरक्षण की चुनौतियां
- खतरे: शहरीकरण, बुनियादी ढांचे का विकास, और अवैध कटाई।
- संख्या में गिरावट: कभी 40,000 चिनार वृक्ष थे, लेकिन राजमार्ग विस्तार और अन्य परियोजनाओं के कारण इनकी संख्या में लगातार कमी आई।
भविष्य की योजनाएं
- चिनार एटलस: जम्मू और कश्मीर के चिनार वृक्षों का एक व्यापक डेटाबेस बनाना।
- डिजिटल पहुंच: डिजिटल टूल्स के माध्यम से नागरिकों और पर्यटकों को संरक्षण प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल करना।
मुख्य बिंदु | विवरण |
खबर में क्यों? | जियो-टैगिंग से कश्मीर के प्रतिष्ठित चिनार वृक्षों का संरक्षण। |
पहल का नाम | डिजिटल ट्री आधार |
उद्देश्य | अद्वितीय जियो-टैग्ड आईडी का उपयोग करके चिनार वृक्षों की निगरानी और संरक्षण। |
प्रौद्योगिकी का उपयोग | GIS, QR कोड, मेटल बारकोड कार्ड। |
टैग किए गए चिनार (अब तक) | 28,560 |
सबसे पुराना चिनार | 700 साल पुराना (बडगाम जिला)। |
सबसे बड़ा चिनार | 74 फीट व्यास (गांदरबल जिला)। |
महत्व | सांस्कृतिक धरोहर, जैव विविधता संरक्षण, कार्बन अवशोषण, पर्यटन। |
खतरे | शहरीकरण, राजमार्ग विस्तार, अवैध कटाई। |
भविष्य के लक्ष्य | चिनार एटलस बनाना, चिनाब और पीर पंजाल घाटी के चिनारों को शामिल करना। |
ऐतिहासिक विरासत | मध्य एशियाई प्रचारकों द्वारा लाए गए; मुगल उद्यानों और बॉलीवुड फिल्मों में दर्शाए गए। |
पर्यटन प्रभाव | क्यूआर कोड पर्यटकों को वृक्षों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। |