डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन, भारत के परमाणु ऊर्जा विकास के क्षेत्र में एक प्रमुख हस्ती और परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के पूर्व अध्यक्ष, का 20 मई 2025 को उधगमंडलम में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें भारत के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख वास्तुकारों में से एक माना जाता है। उन्होंने देश के पहले अनुसंधान परमाणु रिएक्टर के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और अपने कार्यकाल में भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता का उल्लेखनीय विस्तार किया।
क्यों समाचारों में हैं?
डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन का निधन भारत की परमाणु ऊर्जा यात्रा के एक युग का अंत है। उन्होंने कई आधारभूत परियोजनाओं का नेतृत्व किया और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) में अनेक उच्च पदों पर कार्य किया।
प्रमुख योगदान व करियर मील के पत्थर
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1955: DAE से जुड़े, डॉ. होमी भाभा के साथ कार्य किया। भारत के पहले अनुसंधान रिएक्टर अप्सरा के निर्माण में योगदान (जिसने अगस्त 1956 में क्रिटिकलिटी प्राप्त की)।
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1959: भारत के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के प्रिंसिपल प्रोजेक्ट इंजीनियर बने।
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1967: मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में मुख्य परियोजना इंजीनियर नियुक्त।
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1974: DAE में पावर प्रोजेक्ट्स इंजीनियरिंग डिवीजन के निदेशक बने।
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1984: न्यूक्लियर पावर बोर्ड के अध्यक्ष बने।
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1987: AEC के अध्यक्ष व परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव बने। उन्होंने न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) की स्थापना की।
प्रमुख उपलब्धियाँ
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उनके नेतृत्व में भारत में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयों का विकास हुआ:
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7 इकाइयाँ चालू अवस्था में
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7 निर्माणाधीन
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4 योजना चरण में
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उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
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उन्होंने संस्थानों के निर्माण और परमाणु तकनीक में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाई।
विरासत और प्रभाव
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डॉ. श्रीनिवासन को उनके तकनीकी कौशल और दूरदर्शी नेतृत्व के लिए जाना जाता है।
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उन्होंने भारत की स्वदेशी परमाणु ऊर्जा क्षमता की नींव रखी।
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उन्होंने परमाणु विज्ञानियों और इंजीनियरों की नई पीढ़ी को प्रेरित किया।
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उनके योगदान को उनकी बेटी, प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद शारदा श्रीनिवासन, द्वारा भी सम्मानपूर्वक याद किया गया।