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प्रख्यात विद्वान दाजी पणशीकर का 92 वर्ष की आयु में निधन

प्रख्यात विद्वान, लेखक और साहित्य समालोचक दाजी पणशीकर, जिन्हें नरहरि विष्णु शास्त्री के नाम से भी जाना जाता है, का निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे और महाराष्ट्र के ठाणे में अल्पकालिक बीमारी के बाद अपने निवास पर अंतिम सांस ली। दाजी पणशीकर महाभारत, एकनाथी भागवत, और भावार्थ रामायण जैसे भारतीय महाकाव्यों के प्रखर अध्येता माने जाते थे। उन्होंने मराठी साहित्य और संस्कृतिक विमर्श को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे महाराष्ट्र के रंगमंच जगत में भी नाट्यसंपदा नाट्य संस्था के माध्यम से एक प्रेरणास्रोत रहे।

क्यों चर्चा में?

  • दाजी पणशीकर का निधन उनके ठाणे स्थित निवास पर हुआ।

  • वे हिंदू महाकाव्यों के विद्वान और मराठी साहित्य के प्रमुख स्तंभ थे।

  • उनके निधन को महाराष्ट्र में सांस्कृतिक, धार्मिक और बौद्धिक क्षेत्र के एक युग का अंत माना जा रहा है।

पृष्ठभूमि एवं योगदान

दाजी पणशीकर को निम्न ग्रंथों के विद्वान व्याख्याकार के रूप में जाना जाता था:

  • महाभारत

  • एकनाथी भागवत

  • भावार्थ रामायण

वे सांस्कृतिक शिक्षा के क्षेत्र में गहराई से जुड़े रहे और उनके सार्वजनिक प्रवचन बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध माने जाते थे।

रंगमंच में योगदान

  • महाराष्ट्र की प्रसिद्ध संस्था नाट्यसंपदा नाट्य संस्था में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।

  • उन्होंने पटकथा लेखन, कलाकारों का मार्गदर्शन और आध्यात्मिक-सांस्कृतिक विषयों पर आधारित नाटकों के निर्माण में सहयोग दिया।

साहित्य और विचारधारा में विरासत

  • दाजी पणशीकर को साहित्यिक विद्वता और दार्शनिक गहराई के संगम के रूप में जाना जाता था।

  • उन्होंने महाकाव्य साहित्य को आम जनमानस तक पहुंचाने का कार्य किया।

  • वे गुरु-शिष्य परंपरा के एक महत्वपूर्ण सूत्रधार माने जाते थे।

श्रद्धांजलियां और अंतिम संस्कार

  • महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उन्हें भारतीय संत परंपरा का दीपस्तंभ बताया।

  • उन्होंने दाजी पणशीकर को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के पुनर्जागरणकर्ता के रूप में वर्णित किया।

  • उनके अंतिम संस्कार उसी दिन जवाहर बाग श्मशान भूमि, ठाणे में संपन्न हुए।

दाजी पणशीकर का निधन मराठी साहित्य और भारतीय सांस्कृतिक चिंतन के लिए अपूरणीय क्षति है।

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