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दिल्ली आईआईटी-कानपुर की विशेषज्ञता के साथ पांच क्लाउड-सीडिंग परीक्षण करेगी

वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाते हुए, दिल्ली कैबिनेट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पांच क्लाउड-सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) परीक्षणों के लिए ₹3.21 करोड़ की परियोजना को मंज़ूरी दे दी है। इस पहल का नेतृत्व दिल्ली पर्यावरण विभाग द्वारा किया जा रहा है, जिसमें आईआईटी कानपुर तकनीकी भागीदार के रूप में शामिल है। यह परियोजना गंभीर वायु प्रदूषण की स्थिति में कृत्रिम वर्षा को एक वैकल्पिक समाधान के रूप में परखने के लिए की जा रही है।

समाचार में क्यों?

8 मई 2025 को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता वाली दिल्ली कैबिनेट ने एनसीआर में पायलट आधार पर क्लाउड-सीडिंग के पांच परीक्षणों को हरी झंडी दे दी। पहला परीक्षण मई के अंत या जून 2025 तक होने की संभावना है, जो 13 अंतर-मंत्रालयी एवं एजेंसी अनुमतियों के बाद किया जाएगा।

मुख्य विवरण:

  • कुल बजट: ₹3.21 करोड़

    • ₹2.75 करोड़: पाँच परीक्षणों के लिए

    • ₹66 लाख: एक बार का सेटअप खर्च (विमान अंशांकन, रसायन भंडारण, लॉजिस्टिक्स)

  • कार्यान्वयन एजेंसी: IIT कानपुर

  • लक्ष्य क्षेत्र: दिल्ली के बाहरी इलाके में 100 वर्ग किलोमीटर

  • समयसीमा: पहला परीक्षण मई के अंत या जून 2025 तक

  • निगरानी: एआई-आधारित निगरानी और प्रदूषण वाले क्षेत्रों में 24×7 मॉनिटरिंग

क्लाउड-सीडिंग परियोजना के उद्देश्य:

  • कृत्रिम वर्षा के माध्यम से वायु प्रदूषण को कम करना

  • क्षेत्र में वर्षा की संभावना को बढ़ाना

  • क्लाउड सीडिंग की व्यावहारिकता और पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन

  • आपातकालीन प्रदूषण की स्थिति में बैकअप रणनीति के रूप में काम करना

ज़रूरी अनुमतियाँ (कुल 13 निकायों से):

  • नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA)

  • रक्षा मंत्रालय

  • गृह मंत्रालय

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय

  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)
    (अन्य एजेंसियों में राज्य वायुसेना, मौसम विभाग, नागरिक सुरक्षा इकाइयाँ आदि शामिल हो सकती हैं)

पृष्ठभूमि:

  • क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है जिसमें सिल्वर आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों को बादलों में छोड़ा जाता है जिससे वर्षा को प्रेरित किया जाता है।

  • यह तकनीक दुनियाभर में अपनाई गई है, लेकिन लंबी अवधि के प्रभावों और लागत-प्रभावशीलता को लेकर विवाद बना हुआ है।

महत्व:

  • दिल्ली की पर्यावरणीय आपात स्थितियों से निपटने के लिए तकनीकी नवाचार का प्रतीक

  • अन्य प्रदूषित महानगरों के लिए नज़ीर बन सकता है

  • पर्यावरण विज्ञान और तकनीक के बीच अंतःविषय अनुसंधान को बढ़ावा देगा

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