चीन द्वारा शुरू किया गया ‘आर्कटिक एक्सप्रेस’ मार्ग वैश्विक शिपिंग परिदृश्य को पूरी तरह बदल देने की क्षमता रखता है। यह नया समुद्री मार्ग उत्तरी समुद्री मार्ग (Northern Sea Route—NSR) के माध्यम से एशिया और यूरोप के बीच यात्रा समय को घटाकर सिर्फ 18 दिन कर देता है, जो परंपरागत मार्गों—जैसे स्वेज कालवा या केप ऑफ गुड होप—से कहीं तेज़ और अधिक सुरक्षित है। यह ‘Polar Silk Road’ की चीनी रणनीति का मुख्य हिस्सा है।
भारत के लिए यह बदलाव एक महत्वपूर्ण संकेत है कि उसे अपने समुद्री गलियारों को और मज़बूत करना होगा, रूस जैसे रणनीतिक साझेदारों के साथ सहयोग बढ़ाना होगा, और वैश्विक व्यापार के नए नक्शे में अपनी जगह सुनिश्चित करनी होगी।
‘आर्कटिक एक्सप्रेस’ चीन की पहली वाणिज्यिक आर्कटिक शिपिंग सेवा है, जो Ningbo–Zhoushan बंदरगाह को UK के Felixstowe पोर्ट से जोड़ती है। यह मार्ग:
यात्रा समय को 40+ दिनों से घटाकर 18 दिन कर देता है
लॉजिस्टिक लागत व कार्बन उत्सर्जन में लगभग 50% कमी लाता है
रेड सी, होर्मुज़ जैसे अस्थिर या भीड़भाड़ वाले चोकप्वाइंट्स से बचाता है
स्थिर व ठंडे क्षेत्रों से गुजरता है, जिससे सुरक्षा व विश्वसनीयता बढ़ती है
यदि आर्कटिक शिपिंग तेज़ी से लोकप्रिय होती है, तो पारंपरिक समुद्री मार्गों पर आधारित देश—जैसे भारत—को नुकसान हो सकता है, क्योंकि वैश्विक शिपिंग उनके बंदरगाहों को बाईपास कर सकती है।
उभरते व्यापार गलियारों पर भारत का नियंत्रण कमज़ोर पड़ सकता है।
यदि भारतीय निर्यात पारंपरिक, धीमे मार्गों पर निर्भर रहे तो वे चीन, रूस या यूरोप की तेज़ Arctic-वाली आपूर्ति श्रृंखलाओं से पीछे रह सकते हैं।
रूस के आर्कटिक क्षेत्र से LNG व कच्चे तेल की आपूर्ति भारत के लिए सुलभ हो सकती है—बशर्ते भारत Arctic नेटवर्क में सक्रिय भूमिका निभाए।
भारत–रूस पूर्वी क्षेत्र को जोड़ने वाला 10,300 किमी मार्ग
यात्रा समय 40 दिनों से घटकर 24 दिन
आर्कटिक बंदरगाहों तक संभावित कनेक्शन
भारत–ईरान–रूस–यूरोप को जोड़ने वाला 7,200 किमी कॉरिडोर
स्वेज मार्ग की तुलना में तेज़ और सस्ता
आर्कटिक व्यापार मार्गों तक भारत की रणनीतिक पहुँच मजबूत करता है
भारतीय, खाड़ी और यूरोपीय बंदरगाहों को जोड़ने वाला एक उभरता हुआ बहु-माध्यम कॉरिडोर
चीन की BRI और Arctic रणनीति का प्रतिस्पर्धी विकल्प
भारत 2008 से आर्कटिक में सक्रिय है:
Himadri Research Station (Svalbard)
आर्कटिक परिषद में स्थायी पर्यवेक्षक
India’s Arctic Policy (2022) के छह स्तंभ: अनुसंधान, जलवायु, खनिज, ऊर्जा, समुद्री मार्ग, रणनीतिक साझेदारी
ONGC Videsh की रूस के आर्कटिक LNG प्रोजेक्ट्स में रुचि
चीन का आर्कटिक एक्सप्रेस वैश्विक व्यापार के नियम बदल रहा है।
भारत को तुरंत अपने समुद्री गलियारों—CVMC, INSTC, IMEC—को गति देनी होगी।
आर्कटिक कूटनीति, बंदरगाह इंफ्रास्ट्रक्चर और जहाज़ निर्माण में निवेश अत्यंत आवश्यक है।
भारत की समुद्री दृष्टि 2030 और आर्कटिक नीति 2022 में दिशा स्पष्ट है—अब ज़रूरत तेज़ी से क्रियान्वयन की है।
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