कश्मीर के निम्न क्षेत्रों में वर्षा और ऊँचाइयों पर बर्फबारी की संभावना है क्योंकि चिल्लई कलां, जो कि सबसे तीव्र सर्दियों का 40 दिन का समय है, 21 दिसंबर से शुरू हो रहा है, जिससे लंबे समय से जारी सूखे में राहत मिलेगी और जल संसाधनों तथा पर्यटन पर इसका प्रभाव होगा।
जम्मू और कश्मीर में बारिश और बर्फबारी का एक नया चरण आने वाला है, और यह क्षेत्र शीत ऋतु के सबसे ठंडे और कष्टदायक समय ‘चिल्लई कलां’ में कदम रख रहा है। 21 दिसंबर से प्रारंभ होने वाली यह 40 दिनों की अवधि पारंपरिक रूप से कश्मीर घाटी में शीत ऋतु की सबसे चरम स्थितियों का संकेत देती है। इस समय तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है, बर्फबारी होती है और बर्फीली हवाएं चलती हैं।
चिल्लई कलां क्या है?
- चिल्लई कलां एक सदियों पुराना कश्मीरी शब्द है जो 21 दिसंबर से 30 जनवरी तक चलने वाली 40 दिनों की भीषण शीत ऋतु को संदर्भित करता है।
- इस दौरान, तापमान अक्सर हिमांक बिंदु से काफी नीचे गिर जाता है, जल निकाय आंशिक रूप से जम जाते हैं, और ऊंचे इलाकों में भारी बर्फबारी आम बात है।
- इस चरण के बाद चिल्लई खुर्द (20 दिनों की हल्की ठंड) और चिल्लई बाचा (10 दिनों की अपेक्षाकृत मध्यम सर्दी) आती है, जिससे चिल्लई कलां मौसम और जल चक्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवधि बन जाती है।
मौसम पूर्वानुमान और आधिकारिक सलाह
- मौसम विभाग के अनुसार, शनिवार रात से घाटी के मैदानी इलाकों में बारिश और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में मध्यम से भारी बर्फबारी होने की संभावना है।
- इसके उत्तर में बारामूला, कुपवारा और बांदीपोरा के जिला अधिकारियों ने सलाह जारी करते हुए निवासियों, विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों से, बर्फबारी के दौरान अनावश्यक यात्रा से बचने का आग्रह किया है।
- चिल्लई कलां के दौरान सड़क अवरोधों, हिमस्खलन और बिजली व्यवधानों के जोखिमों के कारण इस तरह की सलाह जारी करना नियमित प्रक्रिया है।
लंबे समय तक सूखे के बाद राहत
- संभावित वर्षा से दो महीने से अधिक समय से चले आ रहे सूखे का अंत होने की संभावना है, जिससे घाटी भर में वायु गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- चिकित्सा विशेषज्ञों ने श्वसन संबंधी बीमारियों में वृद्धि देखी है, जिसका कारण बारिश और बर्फ की अनुपस्थिति में हवा में निलंबित कणों का जमाव है।
- बारिश और बर्फबारी से प्रदूषक तत्व धुल जाएंगे, जिससे अस्थायी राहत मिलेगी और समग्र वायुमंडलीय स्थितियों में सुधार होगा।
जल संसाधनों पर प्रभाव
- परंपरागत रूप से, चिल्लई कलां के दौरान होने वाली बर्फबारी ग्लेशियरों, जलाशयों और जल निकायों को फिर से भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- गर्मी के महीनों के दौरान पिघला हुआ पानी नदियों, नालों, झरनों और झीलों को जीवित रखता है।
- अधिकारियों ने चिंता व्यक्त की है कि इस मौसम में हिमपात में देरी के कारण कई जल निकायों में पानी का स्तर पहले ही कम हो गया है।
- कम बर्फबारी के मौसम के कारण गर्मियों में पानी की कमी हो सकती है, जिससे कृषि, जलविद्युत उत्पादन और पेयजल आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
मुख्य बिंदु
- चिल्लई कलां 21 दिसंबर से शुरू होकर 40 दिनों तक चलता है।
- कश्मीर में इस समय सर्दियों का सबसे ठंडा दौर चल रहा है।
- दो महीने के सूखे के बाद बारिश और बर्फबारी होने की संभावना है।
- जल सुरक्षा और गर्मियों में नदियों के प्रवाह के लिए हिमपात अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- गुलमर्ग का पर्यटन इस अवधि के दौरान होने वाली बर्फबारी पर काफी हद तक निर्भर करता है।
आधारित प्रश्न
प्रश्न: चिल्लई कलां से तात्पर्य है:
A. कश्मीर में ग्रीष्म ऋतु के पहले 10 दिन
B. कश्मीर में शीत ऋतु के सबसे ठंडे 40 दिन
C. हिमाचल प्रदेश में आने वाला एक प्रकार का हिमपात
D. जम्मू में मनाया जाने वाला एक त्योहार
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